tag:blogger.com,1999:blog-19490307361053595212024-03-13T09:35:26.320-07:00दिव्यसाधना power of godमनुष्य जीवन अनमोल है । अगर इसको पाकर जीव खुद अपने आपको नहीं पहचान सका । तो वह पशुओं की भांति ही है । अजीव सपने । अजीव दुनिया । अजीव लोग । अजीव धरती । अजीव आकाश । अजीव इंसान । अजीव भगवान । इसलिये ??? दिव्यसाधना यदि बहुत आसान नहीं ? तो बहुत कठिन भी नहीं ?? बस सही आचरण और सही मार्गदर्शन होना चाहिये । साधना के बारे में जानने हेतु सम्पर्क करें । CONTECT ME - 0 94564 32709 GURUJI - 0 96398 92934मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.comBlogger52125tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-39497802262992870132012-04-06T07:04:00.001-07:002012-04-06T07:47:00.028-07:00क्या दुख का अंत हो सकता है ?माना कि मैं किसी वस्तु या व्यक्ति से जुड़ गया हूँ । लेकिन क्या मैंने उस विषय । वस्तु । या व्यक्ति से जुड़ने से एकदम पूर्व के हालातों को देखा ? इस जुड़ने में क्या क्या शामिल था ? और यह जुड़ाव कैसे पैदा हुआ । क्यों हुआ ? क्या मैंने इस जुड़ने की घटना की सम्पूर्ण प्रकृति को देखा ?
क्या मैं किसी वस्तु या व्यक्ति से इसलिए जुड़ा । क्योंकि मैं अकेला था । मैं सुविधा चाहता था । मैं किसी पर निर्भर होना मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-6805360324656970502012-04-06T07:02:00.001-07:002012-04-06T07:53:17.747-07:00प्रेम के बिना जीवन का कोई अर्थ नहींअपनी सम्पूर्ण ऊर्जा को । किसी विशेष बिन्दु पर । फोकस करना एकाग्रता है । ध्यान में कोई बिन्दु विशेष नहीं होता । जिस पर फोकस किया जाये । हम एकाग्रता से भली भांति परिचित हैं । पर हमें ध्यान की खबर नहीं । जब हम अपनी देह पर ध्यान देते हैं । तब देह पूर्णतः शांत हो जाती है । जो कि उसका अपना अनुशासन है । तब देह विश्राम अवस्था में होती है । लेकिन निष्क्रिय नहीं । तब वहां पर समरसता की ऊर्जा होती है । जहाँ मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-73942214338212661452012-04-06T07:00:00.001-07:002012-04-06T07:59:02.754-07:00नियंत्रक आखिरकार है कौन ?पारंपरिक शास्त्रीय । सामान्य ध्यान में किसी गुरू द्वारा उपजायी प्रक्रिया । और जिसमें नियंत्रक और नियंत्रित से सरोकार होता है । गुरू कहता है । आपको अपने विचारों पर नियंत्रण करने को कहता है कि जिससे आप विचार को खत्म कर सकें । या आखिरकार कोई एक विचार रह जाये । लेकिन हम इस बारे में पूछताछ गवेषणा कर रहे हैं कि - नियंत्रक आखिरकार है कौन ? आप कह सकते हैं कि यह उच्चतम स्व या आत्म है । यह प्रत्यक्षदर्शी मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-74436799621313895002012-04-06T06:57:00.001-07:002012-04-06T08:04:24.498-07:00यह आश्चर्यजनक रूप से सुन्दर हैआप अपनी जिन्दगी को ही एक पर्यवेक्षक के दृष्टिकोण से देखते हैं । किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में । जो आपकी जिन्दगी से अलग है । इस प्रकार आप खुद को दो हिस्सों - पर्यवेक्षक यानि देखने वाले । और पर्यवेक्षण यानि देखे जाने वाले के बीच बांट लेते हैं । यूं अपने आपको दो हिस्सों में बांट लेना । आपके सभी द्वंद्वों । संघर्षों । दुखों । भयों । निराशाओं की जड़ बन जाता है ।
इसी प्रकार आपकी ये बांटने की प्रवृत्ति मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-10871567281402895132012-04-06T06:55:00.001-07:002012-04-06T08:09:18.175-07:00वह प्रेम जो नदी की तरह हैजब तक कि अहं की कोई भी गतिविधि है । ध्यान संभव नहीं । यह शाब्दिक रूप से नहीं । बल्कि असलियत में जानना समझना बहुत ही जरूरी है । ध्यान मन को अहं की सारी गतिविधियों । स्व । मैं मेरे की सारी गतिविधियों से खाली करने की प्रक्रिया है । यदि आप अपने अहं की गतिविधियों । क्रिया । कार्य । कलापों को नहीं समझते । तो आपका ध्यान आपको आत्म वंचना ( खुद ही अपने को ही धोखा देना ) और विक्षिप्तता की ओर ले जायेगा । तो मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-77526523187662346362012-01-31T03:30:00.000-08:002012-01-31T03:30:40.598-08:00भविष्य में चीजों के रेट बताने वाली साधनामुक्तानन्द स्वामी जी ! प्रणाम ! कृपया मेरा मार्गदर्शन कीजिये । मैं शिवजी और हनुमान जी की पूजा करता हूँ । मैं एक बिजनेस शुरू करने वाला हूँ । क्या कोई ऐसी साधना है । जिससे मैं भविष्य में किसी चीज के रेट में कमी या बङोतरी को जानकर उसका लाभ उठा सकूँ । आपकी अति कृपा होगी । मेरी आयु 26 वर्ष है । दीपक ।
****************
उत्तर इसी स्थान पर शीघ्र जुङेगा ।
मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-35086552736760895732012-01-31T02:54:00.000-08:002012-01-31T02:54:15.095-08:00जहां सुख आनन्द और खुशी का असीम भण्डार मौजूद है76 प्रश्न - महाराज जी ! भजन के अभ्यास में बैठने पर अक्सर ऐसा होता है कि मन तरह तरह के विचारों में उलझ जाता है । और भजन नहीं हो पाता । बाहर से देखने वाले तो यह समझते हैं कि मैं भजन कर रहा हूं । पर असलियत यह है कि जैसे मैं कपास ही औंटता रह जाता हूं । इस उलझन से कैसे मुक्ति मिले । कृपा कर उपाय बतलाइये ।
उत्तर - बहुधा अभ्यासियों को यह कहते हुए सुना गया है कि भजन, सुमिरन और ध्यान में मन कम लगता है । मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-31334887470371724552011-11-20T06:09:00.000-08:002011-11-21T04:38:58.512-08:00नाचो गाओ संगीत बजाओ और सेक्स को मानसिक मत होने दोशिक्षा की स्थिति देख कर हृदय में बहुत पीड़ा होती है । शिक्षा के नाम पर जिन परतंत्रताओं का पोषण किया जाता है । उनसे एक स्वतंत्र और स्वस्थ मनुष्य का जन्म संभव नहीं है । मनुष्य जाति जिस कुरूपता और अपंगता में फंसी है । उसके मूलभूत कारण शिक्षा में ही छिपे हैं । शिक्षा ने प्रकृति से तो मनुष्य को तोड़ दिया है । लेकिन संस्कृति उससे पैदा नहीं हो सकी है । उलटे पैदा हुई है - विकृति । इस विकृति को ही मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-82583015282935136522011-11-20T06:07:00.000-08:002011-11-21T04:40:26.152-08:00जब तक तुम स्वयं एक कमल की तरह ही न खिलोतुमने बहुत सी स्वतंत्रताओं के बारे में सुना होगा । राजनीतिक स्वतंत्रता । मनोवैज्ञानिक स्वतंत्रता । आर्थिक स्वतंत्रता । स्वतंत्रताएं कई तरह की होती हैं । लेकिन अंतिम स्वतंत्रता है । झेन ।, स्वयं स्वतंत्र होना । इसे एक विश्वास की भांति स्वीकार नहीं करना है । इसका अनुभव करना है । केवल तभी तुम उसे जानोगे । यह एक स्वाद है । कोई भी व्यक्ति चीनी का वर्णन करते हुए कह सकता है कि वह मीठी होती मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-7534209729998187082011-11-20T06:05:00.000-08:002011-11-21T05:02:14.147-08:00और एक बार तुम शून्यता में प्रवेश कर जाओडी. टी. सुजूकी पश्चिम में । अस्तित्व के प्रति एक नए दृष्टिकोण के साथ आया । उसने बुद्धिजीवियों को आकर्षित किया । क्योंकि वह बहुत विद्वान था । गहरी विद्वत्ता थी उसके पास । और उसने पश्चिम के मन को धर्म की एक पूरी नई तरह की अवधारणा दी । लेकिन यह केवल अवधारणा तक सीमित रही । यह केवल मन के तर्क तक ही सीमित रही । इससे अधिक गहराई में वह कभी प्रविष्ट नहीं हुई ।
इसी के समानांतर स्थिति चीन में भी थी । चीन मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-58267812514708127602011-11-20T06:03:00.000-08:002011-11-21T05:05:11.630-08:00क्योंकि हमारा रोम रोम भी सूर्य से ही निर्मित हैसबसे पहले तो यह बात जान लेनी जरूरी है कि वैज्ञानिक दृष्टि से सूर्य से समस्त सौर परिवार का । मंगल का । बृहस्पति का । चंद्र का । पृथ्वी का जन्म हुआ है । ये सब सुर्य के ही अंग है । फिर पृथ्वी पर जीवन का जन्म हुआ । पौधों से लेकर मनुष्य तक । मनुष्य पृथ्वी का अंग है । पृथ्वी सूरज का अंग है । अगर हम इसे ऐसा समझें । एक मां है । उसकी 1 बेटी है । उन तीनों के शरीर का निर्माण । 1 ही तरह के मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-82849333048911039602011-11-20T06:01:00.001-08:002011-11-21T05:07:44.725-08:001 पति की पत्नी होना भी कितना मुश्किल है1 छोटे से मजाक से महाभारत पैदा हुआ । 1 छोटे से व्यंग से । द्रौपदी के कारण । जो दुर्योधन के मन में तीर की तरह चुभ गया । और द्रौपदी नग्न की गई । नग्न की गई । हुई नहीं । यह दूसरी बात है । करने वाले ने कोई कोर कसर न छोड़ी थी । करने वालों ने सारी ताकत लगा दी थी । लेकिन फल आया नहीं । किए हुए के अनुकूल नहीं आया फल । यह दूसरी बात है ।
असल में । जो द्रौपदी को नग्न करना चाहते थे । उन्होंने ख्याल रख छोड़ा मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-75715106889268426612011-11-20T06:00:00.000-08:002011-11-21T05:10:56.829-08:00सागर में डूब कर ही मोती पाये जाते हैंमन भयभीत है । और उसका डरना स्पष्ट और तर्कपूर्ण प्रतीत होता है । इसका सार क्या है ? ऐसा कुछ क्यों करना चाहिए । जिसमें वह मिट जाए ?
गौतम बुद्ध से बारबार पूछा जाता था - आप बहुत अजीब व्यक्ति हैं । हम तो यहां अपने आत्म अनुभव के लिए आए थे । और आपका ध्यान आत्मा का अनुभव न कराना है ।
सुकरात एक महान प्रज्ञावान पुरुष था । लेकिन वह मन तक सीमित था । स्वयं को जानो । लेकिन जानने के लिए कोई स्वयं है ही नहीं । मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-50320160639601297902011-11-20T05:58:00.000-08:002011-11-21T05:13:27.554-08:00फिर वह सत्य कैसे जाना जा सकता हैहर व्यक्ति प्रेम चाहता है और यही गलत शुरुआत है । यह शारीरिक नहीं है । इसका नाता कहीं विश्रांति से है । पिघलने से है । पूरा मिट जाने से है । उन पलों में यह मिट जाता है । अत: निश्चित ही यह शारीरिक नहीं । तुम्हें अधिक प्रेम देना सीखना होगा । यह केवल तुम्हारी समस्या नहीं है । थोड़ी या ज़्यादा । यह समस्या सभी की है । एक बच्चा । एक छोटा बच्चा प्रेम नहीं कर सकता । कुछ कह नहीं सकता । कुछ कर नहीं सकता । मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-71640582927888701302011-11-20T05:55:00.000-08:002011-11-21T05:16:44.145-08:00कब्र ऐसी बनाई ही नहीं जातीअगर एटम । एटम बहुत छोटी ताकत है । हमारे लिए बहुत बड़ी ताकत है । एक एटम 1 लाख 20000 आदमियों को मार पाया । हिरोशिमा और नागासाकी में । वह बहुत छोटी ताकत है । सूर्य के ऊपर जो ताकत है । उसका हम इससे कोई हिसाब नहीं लगा सकते । जैसे अरबों एटम बम एक साथ फूट रहे हों । उतनी रेडियो एक्टिविटी सूरज के ऊपर है । और असाधारण है यह । क्योंकि सूरज 4 अरब वर्षों से तो पृथ्वी को ही गर्मी दे रहा है । और उससे पहले से है मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-69981484506458461382011-11-20T05:53:00.000-08:002011-11-21T05:18:49.389-08:00तुम ऐसे घर में रह रहे थे जो था ही नहींसदगुरु 1 मित्र की भांति कार्य करता है । वह तुम्हारा हाथ पकडकर । तुम्हें ठीक मार्ग पर ले जाता है । तुम्हारी आंखें खोलने में । तुम्हारी सहायता करता है । और वह तुम्हें । मन के पार । जाने में सहायता देता है । तभी तुम्हारी । तीसरी आंख खुलती है । तब तुम । अपने अंदर । देखना शुरू करते हो । 1 बार तुम । अपने अंदर । देखने लगते हो । फिर । सदगुरु का कार्य । समाप्त हो जाता है । अब यह । तुम पर ही । निर्भर करता मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-90069382802751780272011-11-20T05:52:00.000-08:002011-11-21T05:19:59.151-08:00जो व्यक्ति वर्तमान में होना चाहता हैअतीत जा चुका । और भविष्य अभी आया नहीं । दोनों ही दिशाओं को अस्तित्व नहीं है । उधर जाना बेवजह है । कभी एक दिशा होती थी । लेकिन अब नहीं है । और एक अभी होना शुरू भी नहीं हुई है । सही व्यक्ति सिर्फ वही है । जो क्षण क्षण जीता है । जिसका तीर क्षण की तरफ होता है । जो हमेशा अभी और यहां है । जहां कहीं वह है । उसकी संपूर्ण चेतना । उसका पूर्ण होना । यहां के यथार्थ । और अभी के यथार्थ में होता है । यही मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-35541763427389342002011-11-20T05:50:00.000-08:002011-11-21T05:21:38.097-08:00और अकेलापन तकलीफ देता हैसदियों से यह बार बार कहा जाता है । सारे धार्मिक लोग यह कहते रहे हैं । हम इस जगत में अकेले आए हैं । और हम अकेले जाएंगे । सारा साथ होना माया है । साथ होने का विचार ही इस कारण आता है । क्योंकि हम अकेले हैं । और अकेलापन तकलीफ देता है । हम अपने अकेलेपन को रिश्ते में डुबो देना चाहते हैं । इसी कारण हम प्रेम में इतना उलझ जाते हैं । इस बिंदु को देखने की कोशिश करो । सामान्यतया तुम सोचते हो कि तुम मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-4176930943379642822011-11-20T05:48:00.000-08:002011-11-21T05:23:29.399-08:0090 वर्ष में सूर्य बिलकुल बूढ़ा हो जाता हैअगर वृक्ष इतने संवेदनशील हैं । और sun पर होती हुई कोई भी घटना को इतनी व्यवस्था से अंकित करते हैं । तो क्या आदमी के चित्त में भी कोई पर्त होगी ? क्या आदमी के शरीर में भी कोई संवेदना का सूक्ष्म रूप होगा ? क्या आदमी भी कोई रिंग और वर्तुल निर्मित करता होगा । अपने व्यक्तित्व में ?
अब तक साफ नहीं हो सका । अभी तक वैज्ञानिकों को साफ नहीं है कोई बात कि आदमी के भीतर क्या होता है । लेकिन यह असंभव मालूम मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-22247792482207612382011-11-20T05:47:00.000-08:002011-11-21T05:25:48.688-08:00दुनिया में केवल 3 अदभुत किताबें हैंP D आस्पेंस्की ने 1 किताब लिखी है । किताब का नाम है - टर्शियम आर्गानम । किताब के शुरू में उसने 1 छोटा सा वक्तव्य दिया है । P D आस्पेंस्की रूस 1 एक बहुत बड़ा गणितज्ञ था । बाद में पश्चिम के 1 बहुत अदभुत फकीर गुरजिएफ के साथ वह 1 रहस्यवादी saint हो गया । लेकिन उसकी समझ math की है । गहरे गणित की । उसने अपनी इस अदभुत किताब के पहले ही 1 वक्तव्य दिया है । जिसमें उसने कहा है कि दुनिया में केवल 3 अदभुत मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-62723088016914075362011-08-13T23:26:00.000-07:002011-08-13T23:26:44.309-07:00भविष्य के सपनों का रहस्यकाफ़ी पहले की बात है । कौशल राज्य के राजा बिम्बसार ने 1 रात को कुछ विचित्र सपने देखे । राजा को उन विचित्र सपनों का अर्थ बिलकुल भी समझ में नहीं आया । और उन्हें बेहद डर लगा कि कहीं इन अशुभ जैसे लगते सपनों का अर्थ भयंकर विपत्तिसूचक और विनाशकारी न हो । इसलिए सुबह होते ही उन्होंने अपने राज्य के सभी विद्वान दरबारियों को उन खास सपनों का रहस्य जानने के लिये बुलाया ।
तब वे सभी दरबारी राजा का भय जानकर बहुतमुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-1335180894141882972011-04-28T20:14:00.000-07:002011-04-28T20:14:35.167-07:00मैं तो बस सपनों में जी रहा हूँबात सुन ले लाला ! मैं मजाक नहीं कर रहा । मैं तेरे को 1 फोटो भेज रहा हूँ । ये फोटो कल तक मेरे ई-मेल के उत्तर के साथ लेख में छपनी चाहिये । अगर फ़ोटो के साथ काट-छाँट की । तो { अपशब्द } तोड दूँगा । छोङूँगा नहीं । पूरी फ़ुल फोटो छापना । ताकि लोगो को पता चले कि " श्री विनोद त्रिपाठी जी " की पसन्द कितनी धमाकेदार और पटाकेदार है ।
अब मैं आता हूँ । असली पोइन्ट पर । मेरा सवाल ये है बनारसी बाबू कि ये जो फोटोमुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-45892155024812840472011-01-06T21:11:00.000-08:002011-01-06T21:11:14.661-08:00मैं आपकी बात से सहमत हूं ।अजय दुबे पोस्ट शंकराचार्य को कामकला का ग्यान कैसे हुआ ?? पर । @राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ । भाईसाहब आपने कहा कि सिकंदर कबीर के आगे झुका था ! ये गलत है । क्योंकि सिकंदर चाणक्य ,पुरु के समय आया था । और कबीर मुग़लकाल के समय । तो दोनो की मुलाकात कैसे संभव है ? (डेढ़ हज़ार वर्षो को आप खा गये क्या ? ) और अब कुछ बात लेखक जी से । जिन्होंने लिखा है । शंकराचार्य को कामकला का ग्यान कैसे हुआ ?? लेखक मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-13569507207514593382010-12-30T20:51:00.000-08:002010-12-30T20:54:52.718-08:00परमात्मा की खोज1 युवा सन्यासी परमात्मा की खोज में था । वह किसी सच्चे ग्यानी की तलाश में था । जो उसे जीवन का सत्य बता सके । आखिर उसे 1 वृद्ध सन्यासी मिला । वह वृद्ध सन्यासी के साथ हो गया । सन्यासी ने कहा । मेरी 1 शर्त है । मैं कुछ भी करूं । तुम धैर्य रखोगे । और प्रश्न नहीं करोगे । में कुछ भी करूं । तुम पूछ न सकोगे । अगर इतना धैर्य और संयम रख सको । तो मेरे साथ चल सकते हो । युवक ने शर्त स्वीकार कर ली । और वेमुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1949030736105359521.post-35187922957207480872010-09-23T06:29:00.000-07:002010-12-28T03:56:36.582-08:00एक भी बूंद तेल छलकना नहीं चाहिये ।एक बार नारद जी को ऐसा भृम हो गया कि विष्णु की भक्ति करने वालों में उनका नाम सबसे ऊपर है । लेकिन इस विचार की पुष्टि कौन करता ? इस बात का सटीक उत्तर कौन देता ? जाहिर है । स्वयं विष्णु ही इस बारे में सही बता सकते थे । सो अपने मन मैं उठी इस जिग्यासा को शांत करने के लिये नारद क्षीरसागर में विष्णु के पास पहुंच गये । और बोले । प्रभु आपके भक्तों में आपकी सबसे ज्यादा भक्ति कौन करता है ? नारद को आशा थी कि मुक्तानन्द http://www.blogger.com/profile/10919357279307419244noreply@blogger.com2