गुरुवार, सितंबर 23, 2010

एक भी बूंद तेल छलकना नहीं चाहिये ।


एक बार नारद जी को ऐसा भृम हो गया कि विष्णु की भक्ति करने वालों में उनका नाम सबसे ऊपर है । लेकिन इस विचार की पुष्टि कौन करता ? इस बात का सटीक उत्तर कौन देता ? जाहिर है । स्वयं विष्णु ही इस बारे में सही बता सकते थे । सो अपने मन मैं उठी इस जिग्यासा को शांत करने के लिये नारद क्षीरसागर में विष्णु के पास पहुंच गये । और बोले । प्रभु आपके भक्तों में आपकी सबसे ज्यादा भक्ति कौन करता है ? नारद को आशा थी कि विष्णु उनका ही नाम लेंगे । पर विष्णु नारद का अहं समझ गये । और बोले । नारद जी । मेरी सबसे ज्यादा भक्ति प्रथ्वी वासी स्त्री पुरुष करते हैं । नारद को बडा आश्चर्य हुआ । और बोले । प्रभु । इंसान तो भक्ति से बेहद दूर है । वह अपने घर संसार में ही लगा रहता है । और आप कहते है कि वो सबसे ज्यादा भक्ति करता है । विष्णु ने तुरन्त ही इस बात का कोई उत्तर नहीं दिया । पर उन्हें नारद की जिग्यासा शान्त तो करनी ही थी । कुछ देर बाद विष्णु को जैसे कुछ याद आया । वह नारद के साथ एक मन्दिर के निकट पहुंच गये । और अचानक कुछ सोचते हुये से बोले । नारद जी । मेरा एक कार्य कर सकोगे । नारद ने कहा । आग्या करें प्रभु । तब विष्णु ने तेल से लबालब भरे कटोरे को उन्हें देते हुये कहा । ये कटोरा लेकर इस मन्दिर के सात चक्कर लगा लो । मगर ध्यान रहें । चक्कर लगाते समय कटोरे से एक भी बूंद तेल छलकना नहीं चाहिये । नारद ने सोचा कि ये कौन सी बडी बात है ? मगर जब चक्कर लगाना शुरू किया । तो पता चला कि ये तो बहुत बडी बात है । अगर कटोरा जरा सा भी इधर उधर हुआ । तो बूंद गिरना निश्चित थी । लिहाजा नारद एक एक पैर संभालकर रखते हुये उस मन्दिर का चक्कर लगभग दो घन्टे में लगा पाये । फ़िर इस कार्य को सफ़लतापूर्वक सम्पन्न करके नारद विष्णु के पास आकर बोले । हो गया प्रभु । विष्णु बोले । वैसे आप हर समय । नारायण हरि । नारायण हरि । बोलते रहते हो । मगर मन्दिर के चक्कर लगाते समय । आपने कितने बार मेरा नाम लिया । नारद सकुचाकर बोले । प्रभु एक भी बार नहीं । तब दरअसल मेरा पूरा ध्यान इस बात पर अटका हुआ था कि तेल की एक भी बूंद फ़ैल न जाय । इस पर विष्णु हंसकर बोले । जरा सोचिये नारद जी । मनुष्य कितने चक्करों में फ़ंसा हुआ है । फ़िर भी मेरा नाम ले लेता है । और आप कुछ देर के लिये सात चक्करों में ही फ़ंसकर मेरा नाम तक भूल गये । इससे सिद्ध होता है । कि इंसान आपसे अधिक पूजा करते हैं । इस बात पर नारद को कुछ कहते न बना । और वे लज्जित हो गये ।
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