रविवार, नवंबर 20, 2011

और अकेलापन तकलीफ देता है

सदियों से यह बार बार कहा जाता है । सारे धार्मिक लोग यह कहते रहे हैं । हम इस जगत में अकेले आए हैं । और हम अकेले जाएंगे ।  सारा साथ होना माया है । साथ होने का विचार ही इस कारण आता है । क्योंकि हम अकेले हैं । और अकेलापन तकलीफ देता है । हम अपने अकेलेपन को रिश्ते में डुबो देना चाहते हैं । इसी कारण हम प्रेम में इतना उलझ जाते हैं । इस बिंदु को देखने की कोशिश करो । सामान्यतया तुम सोचते हो कि तुम पुरुष या स्त्री के प्रेम में पड़ गए । क्योंकि वह सुंदर है । यह सत्य नहीं है । सत्य इसके ठीक विपरीत है । तुम प्रेम में पड़े । क्योंकि तुम अकेले नहीं रह सकते । तुम्हें गिरना ही पड़ेगा । तुम अपने को इस या उस तरह से टालने ही वाले थे । और यहां ऐसे लोग हैं । जो स्त्री या पुरुष के प्रेम में नहीं पड़ते । तब वे धन के प्रेम में पड़ते हैं । वे धन की तरफ या शक्ति की तरफ जाने लगते हैं । वे राजनेता बन जाते हैं । वह भी तुम्हारे अकेलेपन को टालना है । यदि तुम मनुष्य को देखो । यदि तुम स्वयं को गहराई से देखो । तुम आश्चर्यचकित होओगे । तुम्हारी सारी गतिविधियों को 1 अकेले स्रोत में सिकोड़ा जा सकता है । स्रोत यह है कि तुम अपने अकेलेपन से डरते हो । बाकी सारी बातें तो बहाने मात्र हैं । वास्तविक कारण यह है कि तुम अपने को बहुत अधिक अकेला पाते हो ।
किसी मोहित करने वाली शाम को आप अपने हमसफर से मिलने वाले हैं । 1 पूर्ण व्यक्ति जो आपकी सारी जरूरतों को तृप्त करेगा । और आपके सपनों को पूरा करेगा । ठीक ? गलत । गीत लिखने वाले । और कवि जो फंतासी पालते हैं । उसकी जड़ें गर्भ में होती हैं । जहां हम बहुत सुरक्षित । और मां के साथ एक थे ।  इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि हम अपने पूरे जीवन में उसी स्थल पर जाने की चाह रखते हैं । लेकिन । यदि कोरा सच कहा जाए । तो यह बचकाना सपना है । और यह विस्मयकारी है कि हम हकीकत के सामने बड़ी ज़िद से अडे रहते हैं । कोई भी वह वर्तमान में आपका साथी हो । या भविष्य में होने वाला सपनों का राजकुमार ।  आपको थाल में खुशियां परोसने के लिए बाध्य नहीं है । और न ही वे चाहकर भी ऐसा कर नहीं सकते । असली प्रेम हमारी जरूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर होने से नहीं आता । बल्कि हमारी अपनी भीतरी समृद्धि और प्रौढ़ता को विकसित करने से आता है । तब हमारे पास इतना प्रेम होता है । देने के लिए कि हम स्वतः ही प्रेमियों को अपनी तरफ खींचते हैं ।
परमात्मा पर 1 छलांग और लगानी पड़ेगी । वहां तर्क सारा तोड़ देना पड़ेगा । परमात्मा यानी अस्तित्व, जो है । सिर्फ है । इज़नेस होना जिसका गुण है । हम कुछ भी करें । उसके होने में कोई अंतर नहीं पड़ता । इसे वैज्ञानिक किसी और ढंग से कहते हैं । वे कहते हैं । हम किसी चीज को नष्ट नहीं कर सकते । इसका मतलब हुआ कि हम किसी चीज को है पन के बाहर नहीं निकाल सकते । अगर हम 1 कोयले के टुकड़े को मिटाना चाहें । तो हम राख बना लेंगे । लेकिन राख रहेगी । हम उसे चाहे सागर में फेंक दें । वह पानी में घुलकर डूब जाएगी । दिखाई नहीं पड़ेगी । लेकिन रहेगी । हम सब कुछ मिटा सकते हैं । लेकिन उसकी इज़नेस । उसके होने को नहीं मिटा सकते । उसका होना कायम रहेगा । हम कुछ भी करते चले जाएं । उसके होने में कोई अंतर नहीं पड़ेगा । होना बाकी रहेगा । हां । होने को हम शकल दे सकते हैं । हम हजार शकलें दे सकते हैं । हम नए नए रूप । और आकार दे सकते हैं । हम आकार बदल सकते हैं । लेकिन जो है । उसके भीतर । उसे हम नहीं बदल सकते । वह रहेगा । कल मिट्टी थी । आज राख है । कल लकड़ी थी । आज कोयला है । कल कोयला था । आज हीरा है । लेकिन है में कोई फर्क नहीं पड़ता ।  है कायम रहता है । परमात्मा का अर्थ है । सारी चीजों के भीतर जो है पन । वह जो इज़नेस । जो एक्झिस्टेंस है । जो अस्तित्व है । होना है - वही । कितनी ही चीजें बनती चली जाएं । उस होने में कुछ जुड़ता नहीं । और कितनी ही चीजें मिटती चली जाएं । उस होने में कुछ कम होता नहीं । वह उतना का ही उतना । वही का वही । अलिप्त । और असंग । अस्पर्शित । नहीं । पानी पर भी हम रेखा खींचते हैं । तो कुछ बनता है । मिट जाता है । बनते ही । लेकिन परमात्मा पर । इस सारे अस्तित्व से । इतनी भी रेखा नहीं खिंचती । इतना भी नहीं बनता है । इसलिए उपनिषद का यह वचन कहता है कि पूर्ण से । उस पूर्ण से । यह पूर्ण निकला । उस पूर्ण से । यह पूर्ण निकला । वह अज्ञात है । यह ज्ञात है । जो हमें दिखाई पड़ रहा है । वह उससे निकला । जो नहीं दिखाई पड़ रहा है । जिसे हम जानते हैं । वह उससे निकला । जिसे हम नहीं जानते हैं । जो हमारे अनुभव में आता है । वह उससे निकला । जो हमारे अनुभव में नहीं आता है । ओशो । ईशावास्य उपनिषद पुस्तक से ।

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