शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

आईये मृत्यु को जानें ..?

जिस प्रकार जोंक तिनके से तिनके का सहारा लेकर आगे बडती है । उसी प्रकार जीवात्मा एक शरीर के बाद दूसरे शरीर का आश्रय लेती है । जीवात्मा को मृत्यु के बाद यम की यातनाओं को भोगना पडता है । उसके बाद उसे दूसरे शरीर की प्राप्ति होती है ।
एक बार विनता पुत्र गरुण को ब्रह्माण्ड के सभी लोक देखने की इच्छा हुयी । उन्होनें पाताल । प्रथ्वी । तथा स्वर्गलोक को देखा । बैकुन्ठ में न रजोगुण की प्रवृति है । न तमोगुण । रजोगुण और तमोगुण से मिश्रित
सत्वगुण प्रवृति भी वहां नहीं है । केवल शुद्ध सत्वगुण ही वहां है । माया भी नहीं है । वहां किसी का विनाश नहीं होता । राग द्वेश आदि छह विकार भी नहीं हैं । गरुण ने त्रिलोकी का भ्रमण किया और उनमें स्थित जगत के सभी स्थावर और जंगम प्राणियों को देखा ।
सब लोकों की अपेक्षा भूलोक प्राणियों से अधिक परिपूर्ण है । सभी योनियों में मानव योनि में ही भोग और मोक्ष का आश्रय है ।
मनुष्य अनित्य है । और समय पूरा होने पर मृत्यु को प्राप्त होता है । परन्तु मृत्यु के समय जीव कहां से बाहर निकलता है । प्राणी के शरीर में किस छेद से । प्रथ्वी । जल । वायु । अग्नि । आकाश । और मन निकलते हैं । इसी तरह पांच कर्मेंद्रियां । पांच ग्यानेन्द्रियां । पांच वायु । कहां से निकलते है ? अहंकार । लोभ । मोह । तृष्णा । काम ये शरीर के पांच चोर कहां से निकलते है ।
** गोबर आदि से विना लिपी हुयी भूमि पर लिटाये गये मरणासन्न व्यक्ति में यक्ष । पिशाच । राक्षस कोटि के क्रूर कर्मी प्रविष्ट हो जाते हैं । अतः जल मन्डल वाली भूमि पर लिटाना चाहिये । ये लिपी पुती पूजा वाली भूमि होती है । मण्डल विहीन भूमि पर प्राण त्याग करने पर जीवात्मा किसी भी उमर का हो । उसको अन्य योनि प्राप्त नहीं होती । ये जीवात्मा वायु के साथ भटकती रहती है । इसके लिये श्राद्ध या जल तर्पण का भी विधान नहीं है ।
*** यदि ब्राह्मण क्षत्रिय । वैश्य शूद्र । स्त्री । आतुर व्यक्ति के प्राण निकलने में कठिनाई हो रही हो । तो नमक का दान करना चाहिये ।
** जब सामान्य रूप में मृत्यु आती है । उसके कुछ समय पूर्व दैव योग से शरीर में कोई रोग उत्पन्न हो जाता
है । इन्द्रिया विकल हो जाती है । बल । ओज । गति । शिथिल हो जाते हैं । जीव को करोडो बिच्छुओं के एक साथ काटने का अनुभव होता है । यह मृत्यु के लक्षण हैं । इसके बाद चेतनता समाप्त होकर जडता आ जाती है । यमदूत आकर उसके पास खडे हो जाते हैं । और उसके प्राणों को जबरदस्ती अपनी और खींचते हैं । उस समय प्राण कन्ठ में आ जाते हैं । मरने वाले का रूप वीभत्स होने लगता है । मुंह लार से भर जाता है और मुंह से झाग सा निकलने लगता है । इसके बाद शरीर के भीतर रहने वाला अंगूठे के आकार का पुरुष हाहाकार करता हुआ । अपने घर आदि को देखता हुआ । यमदूतों द्वारा यमलोक ले जाया जाता है ।
मृत्यु के समय शरीर में बहने वाला वायु प्रकुपित होकर तीव्र गति हो जाता है । वायु के सहारे से अग्नि भी
प्रकुपित हो जाता है । ये बिना भोजन आदि के पैदा हुयी अतिरिक्त गर्मी जीव के मर्म स्थानों को भेदना शुरू कर देती है । इससे प्राणी को अत्यधिक कष्ट होता है । परन्तु भक्त और भोगों से विरक्त रहे जीव में अधोगति का निरोध करने वाला । उदान वायु ऊर्ध्व गति वाला होता है ।
सत्य बोलने वाले । प्रीति का भेदन न करने वाले । आस्तिक । श्रद्धावान ।इनकी सुखपूर्वक मृत्य होती है । ईर्ष्या । काम । द्वेश । की वजह से भी जो अपने धर्म का त्याग नहीं करते । वे सुख से मरते हैं । मोह । अग्यान का उपदेश करने वाले मृत्यु के समय महा अंधकार में फ़ंस जाते हैं । झूठी गवाही । झूठ बोलने वाले । विश्वासघाती । वेदों की निंदा करने वाले । मूर्छा रूपी मृत्य को प्राप्त करते हैं । ऐसे जीव को लेने लाठी । मुगदर लिये । दुर्गन्ध वाले । दुरात्मा यमदूत आते हैं । इन्हें देखकर जीव भय से कांपता है । उस समय रक्षा के लिये । माता । पिता । पुत्र आदि को पुकारता है । पर आवाज नहीं निकलती । सांस तेज हो जाती है । आंखे नाचने लगती हैं । मुंह सूखने लगता है । बेहद वेदना से शरीर का त्याग करता है । इसके वाद ही उसे देखकर घृणा होने लगती है ।
ब्राह्मण की हत्या करने वाले को हिरन । घोडा । सूअर । ऊंट की योनि प्राप्त होती है । सोने की चोरी करने वाला । कीडा ( कृमि ) कीट । पतंगा योनि में जाता है ।
गुरुपत्नी के साथ सहवास करने वाला । तृण । लता । और गुल्म योनि में जाता है । ब्रह्मघाती । टी.वी का रोगी । शरावी । विकृत दांत । सोने का चोर । कुनखी । गुरुपत्नी गामी । चर्मरोगी । इसके अतिरिक्त जैसे पापी की संगति करता है । वैसा ही रोग होता है । एक वर्ष पापी का साथ करने से । वार्तालाप । स्पर्श । निश्वांस । साथ आवागमन । साथ बैठना । साथ भोजन । अध्यापन तथा योनि सम्बन्ध से । बिना पाप किये ही पाप लग जाते हैं । पराई स्त्री के साथ सहवास और ब्राह्मण का धन चुराने से । अगले जन्म में वन अथवा निर्जन देश में रहने वाले ब्रह्मराक्षस की योनि प्राप्त होती है । रत्न की चोरी करने वाला नीचयोनि में । वृक्ष के पत्तों और गन्ध की चोरी वाला । छछूंदर वनता है । अनाज की चोरी करने वाला चूहा । यान चुराने वाला ऊंट । फ़ल चुराने वाला बन्दर । बिना मन्त्रोचार के भोजन करने वाला । कौआ । घर का सामान चुराने वाला गिद्ध । शहद की चोरी करने पर मधुमक्खी । फ़ल की चोरी गिद्ध ।
गाय की चोरी करने पर गोह । अग्नि की चोरी पर बगुला । स्त्रियों का वस्त्र चुराने पर सफ़ेद कुष्ठ रोग । और रस चुराने पर भोजन में अरुचि । कांसे की चोरी करने वाला हंस । दूसरे का धन हरण करने वाला अपस्मार का रोगी । गुरुहन्ता क्रूरकर्मी बौना । पत्नी का त्याग करने वाला शब्दवेधी । देवता । ब्राह्मण का धन चुराने वाला एवं दूसरे का मांस खाने वाला पान्डु रोगी होता है । भक्ष्य अभक्ष्य का विचार न करने वाला गण्डमाला नामक महारोग से पीडित होता है । दूसरे की धरोहर अपहरण करने वाला काना ।
स्त्री के बल पर जीने वाला लंगडा । पति परायण पत्नी का परित्याग करने वाला । दुर्भाग्यशाली । अकेले मिठाई खाने वाला वातगुल्म का रोगी । ब्राह्मण पत्नी के साथ सहवास करने वाला सियार । शय्या चुराने वाला दरिद्र । वस्त्र चुराने वाला पतंगा । ईर्ष्यालु जन्म से अन्धा । दीपक चुराने वाला कपाली । मित्र का हत्यारा उल्लू । पिता आदि श्रेष्ठ जनों का निदक टी . वी का मरीज । झूठ बोलने वाला हकला । झूठी गवाही देने वाला जलोदर का रोगी । विवाह में विघ्न पैदा करने वाला मच्छर ।
इसको पुनः मनुष्य योनि प्राप्त होने पर होठ कटा । चौराहे पर मल मूत्र त्याग करने वाला अपशूद्र । कन्या को दूषित करने वाला । मूत्रकृच्छ और नपुंसक । वेद बेचने वाला व्याघ्र । अयाज्य का यग्य कराने वाला सूअर । अभक्ष्य खाने वाला बिलौटा । वन जलाने वाला जुगनू । बासी भोजन करने वाला कीडा । ईर्ष्यालु भौंरा । घर आदि जलाने वाला कोढी । गाय की चोरी सर्प । अन्न की चोरी अजीर्ण रोग । जल की चोरी मछली । दूध की चोरी बलाकिका । ब्राह्मण को बासी भोजन दान करना कुबडा । फ़ल चुराने वाले की संतान मर जाती है । अकेले ही खानेवाला संतानहीन । सन्यास आश्रम का त्याग करने वाला पिशाच । जल की चोरी चातक । पुस्तक चोरी जन्म से अन्धा । देने की प्रतिग्या कर न देने वाला सियार । झूठी निंदा करने वाला कछुआ । फ़ल बेचने वाला भाग्यहीन । शूद्र कन्या से विवाह करने वाला ब्राह्मण भेडिया । अग्नि को पैर से स्पर्श करने वाला बिलौटा । जीवों का मांस खाने वाला रोगी । जल के स्रोत को नष्ट करने वाला मछली । हरि चर्चा । साधु वाणी न सुनने वाला । कर्णमूल रोगी । दूसरे का भोजन छीनने वाला मन्दबुद्धि । घमण्ड से धर्माचरण करने वाला । गज चर्म का रोगी । शिव के धन और निर्माल्य का सेवन करने वाला शिश्न रोग । ऐसा करने वाली स्त्रियां पाप की भागी और ऐसे जीवों की पत्नी बनती हैं । ऐसे कर्मों से प्राप्त हुआ नरक भोगने के बाद ये योनियां मिलती हैं ।

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