शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

आईये मृत्यु को जानें ..?

जिस प्रकार जोंक तिनके से तिनके का सहारा लेकर आगे बडती है । उसी प्रकार जीवात्मा एक शरीर के बाद दूसरे शरीर का आश्रय लेती है । जीवात्मा को मृत्यु के बाद यम की यातनाओं को भोगना पडता है । उसके बाद उसे दूसरे शरीर की प्राप्ति होती है ।
एक बार विनता पुत्र गरुण को ब्रह्माण्ड के सभी लोक देखने की इच्छा हुयी । उन्होनें पाताल । प्रथ्वी । तथा स्वर्गलोक को देखा । बैकुन्ठ में न रजोगुण की प्रवृति है । न तमोगुण । रजोगुण और तमोगुण से मिश्रित
सत्वगुण प्रवृति भी वहां नहीं है । केवल शुद्ध सत्वगुण ही वहां है । माया भी नहीं है । वहां किसी का विनाश नहीं होता । राग द्वेश आदि छह विकार भी नहीं हैं । गरुण ने त्रिलोकी का भ्रमण किया और उनमें स्थित जगत के सभी स्थावर और जंगम प्राणियों को देखा ।
सब लोकों की अपेक्षा भूलोक प्राणियों से अधिक परिपूर्ण है । सभी योनियों में मानव योनि में ही भोग और मोक्ष का आश्रय है ।
मनुष्य अनित्य है । और समय पूरा होने पर मृत्यु को प्राप्त होता है । परन्तु मृत्यु के समय जीव कहां से बाहर निकलता है । प्राणी के शरीर में किस छेद से । प्रथ्वी । जल । वायु । अग्नि । आकाश । और मन निकलते हैं । इसी तरह पांच कर्मेंद्रियां । पांच ग्यानेन्द्रियां । पांच वायु । कहां से निकलते है ? अहंकार । लोभ । मोह । तृष्णा । काम ये शरीर के पांच चोर कहां से निकलते है ।
** गोबर आदि से विना लिपी हुयी भूमि पर लिटाये गये मरणासन्न व्यक्ति में यक्ष । पिशाच । राक्षस कोटि के क्रूर कर्मी प्रविष्ट हो जाते हैं । अतः जल मन्डल वाली भूमि पर लिटाना चाहिये । ये लिपी पुती पूजा वाली भूमि होती है । मण्डल विहीन भूमि पर प्राण त्याग करने पर जीवात्मा किसी भी उमर का हो । उसको अन्य योनि प्राप्त नहीं होती । ये जीवात्मा वायु के साथ भटकती रहती है । इसके लिये श्राद्ध या जल तर्पण का भी विधान नहीं है ।
*** यदि ब्राह्मण क्षत्रिय । वैश्य शूद्र । स्त्री । आतुर व्यक्ति के प्राण निकलने में कठिनाई हो रही हो । तो नमक का दान करना चाहिये ।
** जब सामान्य रूप में मृत्यु आती है । उसके कुछ समय पूर्व दैव योग से शरीर में कोई रोग उत्पन्न हो जाता
है । इन्द्रिया विकल हो जाती है । बल । ओज । गति । शिथिल हो जाते हैं । जीव को करोडो बिच्छुओं के एक साथ काटने का अनुभव होता है । यह मृत्यु के लक्षण हैं । इसके बाद चेतनता समाप्त होकर जडता आ जाती है । यमदूत आकर उसके पास खडे हो जाते हैं । और उसके प्राणों को जबरदस्ती अपनी और खींचते हैं । उस समय प्राण कन्ठ में आ जाते हैं । मरने वाले का रूप वीभत्स होने लगता है । मुंह लार से भर जाता है और मुंह से झाग सा निकलने लगता है । इसके बाद शरीर के भीतर रहने वाला अंगूठे के आकार का पुरुष हाहाकार करता हुआ । अपने घर आदि को देखता हुआ । यमदूतों द्वारा यमलोक ले जाया जाता है ।
मृत्यु के समय शरीर में बहने वाला वायु प्रकुपित होकर तीव्र गति हो जाता है । वायु के सहारे से अग्नि भी
प्रकुपित हो जाता है । ये बिना भोजन आदि के पैदा हुयी अतिरिक्त गर्मी जीव के मर्म स्थानों को भेदना शुरू कर देती है । इससे प्राणी को अत्यधिक कष्ट होता है । परन्तु भक्त और भोगों से विरक्त रहे जीव में अधोगति का निरोध करने वाला । उदान वायु ऊर्ध्व गति वाला होता है ।
सत्य बोलने वाले । प्रीति का भेदन न करने वाले । आस्तिक । श्रद्धावान ।इनकी सुखपूर्वक मृत्य होती है । ईर्ष्या । काम । द्वेश । की वजह से भी जो अपने धर्म का त्याग नहीं करते । वे सुख से मरते हैं । मोह । अग्यान का उपदेश करने वाले मृत्यु के समय महा अंधकार में फ़ंस जाते हैं । झूठी गवाही । झूठ बोलने वाले । विश्वासघाती । वेदों की निंदा करने वाले । मूर्छा रूपी मृत्य को प्राप्त करते हैं । ऐसे जीव को लेने लाठी । मुगदर लिये । दुर्गन्ध वाले । दुरात्मा यमदूत आते हैं । इन्हें देखकर जीव भय से कांपता है । उस समय रक्षा के लिये । माता । पिता । पुत्र आदि को पुकारता है । पर आवाज नहीं निकलती । सांस तेज हो जाती है । आंखे नाचने लगती हैं । मुंह सूखने लगता है । बेहद वेदना से शरीर का त्याग करता है । इसके वाद ही उसे देखकर घृणा होने लगती है ।
ब्राह्मण की हत्या करने वाले को हिरन । घोडा । सूअर । ऊंट की योनि प्राप्त होती है । सोने की चोरी करने वाला । कीडा ( कृमि ) कीट । पतंगा योनि में जाता है ।
गुरुपत्नी के साथ सहवास करने वाला । तृण । लता । और गुल्म योनि में जाता है । ब्रह्मघाती । टी.वी का रोगी । शरावी । विकृत दांत । सोने का चोर । कुनखी । गुरुपत्नी गामी । चर्मरोगी । इसके अतिरिक्त जैसे पापी की संगति करता है । वैसा ही रोग होता है । एक वर्ष पापी का साथ करने से । वार्तालाप । स्पर्श । निश्वांस । साथ आवागमन । साथ बैठना । साथ भोजन । अध्यापन तथा योनि सम्बन्ध से । बिना पाप किये ही पाप लग जाते हैं । पराई स्त्री के साथ सहवास और ब्राह्मण का धन चुराने से । अगले जन्म में वन अथवा निर्जन देश में रहने वाले ब्रह्मराक्षस की योनि प्राप्त होती है । रत्न की चोरी करने वाला नीचयोनि में । वृक्ष के पत्तों और गन्ध की चोरी वाला । छछूंदर वनता है । अनाज की चोरी करने वाला चूहा । यान चुराने वाला ऊंट । फ़ल चुराने वाला बन्दर । बिना मन्त्रोचार के भोजन करने वाला । कौआ । घर का सामान चुराने वाला गिद्ध । शहद की चोरी करने पर मधुमक्खी । फ़ल की चोरी गिद्ध ।
गाय की चोरी करने पर गोह । अग्नि की चोरी पर बगुला । स्त्रियों का वस्त्र चुराने पर सफ़ेद कुष्ठ रोग । और रस चुराने पर भोजन में अरुचि । कांसे की चोरी करने वाला हंस । दूसरे का धन हरण करने वाला अपस्मार का रोगी । गुरुहन्ता क्रूरकर्मी बौना । पत्नी का त्याग करने वाला शब्दवेधी । देवता । ब्राह्मण का धन चुराने वाला एवं दूसरे का मांस खाने वाला पान्डु रोगी होता है । भक्ष्य अभक्ष्य का विचार न करने वाला गण्डमाला नामक महारोग से पीडित होता है । दूसरे की धरोहर अपहरण करने वाला काना ।
स्त्री के बल पर जीने वाला लंगडा । पति परायण पत्नी का परित्याग करने वाला । दुर्भाग्यशाली । अकेले मिठाई खाने वाला वातगुल्म का रोगी । ब्राह्मण पत्नी के साथ सहवास करने वाला सियार । शय्या चुराने वाला दरिद्र । वस्त्र चुराने वाला पतंगा । ईर्ष्यालु जन्म से अन्धा । दीपक चुराने वाला कपाली । मित्र का हत्यारा उल्लू । पिता आदि श्रेष्ठ जनों का निदक टी . वी का मरीज । झूठ बोलने वाला हकला । झूठी गवाही देने वाला जलोदर का रोगी । विवाह में विघ्न पैदा करने वाला मच्छर ।
इसको पुनः मनुष्य योनि प्राप्त होने पर होठ कटा । चौराहे पर मल मूत्र त्याग करने वाला अपशूद्र । कन्या को दूषित करने वाला । मूत्रकृच्छ और नपुंसक । वेद बेचने वाला व्याघ्र । अयाज्य का यग्य कराने वाला सूअर । अभक्ष्य खाने वाला बिलौटा । वन जलाने वाला जुगनू । बासी भोजन करने वाला कीडा । ईर्ष्यालु भौंरा । घर आदि जलाने वाला कोढी । गाय की चोरी सर्प । अन्न की चोरी अजीर्ण रोग । जल की चोरी मछली । दूध की चोरी बलाकिका । ब्राह्मण को बासी भोजन दान करना कुबडा । फ़ल चुराने वाले की संतान मर जाती है । अकेले ही खानेवाला संतानहीन । सन्यास आश्रम का त्याग करने वाला पिशाच । जल की चोरी चातक । पुस्तक चोरी जन्म से अन्धा । देने की प्रतिग्या कर न देने वाला सियार । झूठी निंदा करने वाला कछुआ । फ़ल बेचने वाला भाग्यहीन । शूद्र कन्या से विवाह करने वाला ब्राह्मण भेडिया । अग्नि को पैर से स्पर्श करने वाला बिलौटा । जीवों का मांस खाने वाला रोगी । जल के स्रोत को नष्ट करने वाला मछली । हरि चर्चा । साधु वाणी न सुनने वाला । कर्णमूल रोगी । दूसरे का भोजन छीनने वाला मन्दबुद्धि । घमण्ड से धर्माचरण करने वाला । गज चर्म का रोगी । शिव के धन और निर्माल्य का सेवन करने वाला शिश्न रोग । ऐसा करने वाली स्त्रियां पाप की भागी और ऐसे जीवों की पत्नी बनती हैं । ऐसे कर्मों से प्राप्त हुआ नरक भोगने के बाद ये योनियां मिलती हैं ।

विभिन्न नरकों का वर्णन

लेखकीय - अक्सर इंसान कहता है कि नरक स्वर्ग जो कुछ है । यहीं है । आईये देखते हैं । नरक क्या है ?
*****रौरव नरक । अन्य नरकों की अपेक्षा प्रधान है । झूठी गवाही देने वाला । झूठ बोलने वाला रौरव नरक मेंजाता है । इसका विस्तार दो हजार योजन यानी चौबीस हजार किलोमीटर है । एक योजन में चार कोस होते हैं । एक कोस में दो मील होते हैं । एक मील में डेढ किलोमीटर होता है । इस तरह एक योजन में बारह किलोमीटर हुये । शास्त्रों में लोकों की दूरी का वर्णन योजन में किया गया है । तीन चार फ़ुट की गहराई में वहां दहकते हुये अंगारो से भरा गढ्ढा है । वहां की भूमि भी अत्यन्त तप्त है । उस जलती आग में पापी इधर उधर भागता है ।पैरों में छाले पड जाते हैं । इस प्रकार वह पैर उठा उठाकर चलता है । इस प्रकार हजार योजन यानी बारह हजार किलोमीटर पार करने के बाद पाप शुद्धि के लिये दूसरे नरक में ले जाते हैं ।
महारौरव नरक । पांच हजार योजन यानी साठ हजार किलोमीटर में फ़ैला हुआ है । भूमि की बिजली के समान तांबे जैसी दिखने वाली इसकी भूमि है । जिसके नीचे सदा आग जलती है । यह महा डरावनी दिखती है । इसमें पापी के हाथ पैर बांधकर लुढका दिया जाता है । इसमें लुढककर ही चलना पडता है । रास्ते में कौआ । बगुला । भेडिया । उल्लू मच्छर । बिच्छू । आक्रमण करते हैं । इससे पापी की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है । और वह घबराकर बार बार चिल्लाता है । इसी स्थिति में हजारों वर्ष बीत जाने पर उसकी यहां से मुक्ति होती है ।
अतिशीत । नामका नरक अत्यन्त शीतल है । अत्यन्त अंधकार से युक्त इस नरक में पापिओं को यमदूतों द्वारा लाकर बांध दिया जाता है । वहां लाये गये पापी एक दूसरे का आलिंगन करके ठंड से बचने का प्रयास करते हैं । यहां भूख प्यास अधिक लगती है । वहां पर्वतों को उडा सके ऐसी वायु चलती है । जो शरीर की हड्डियों को तोड देती है । प्राणी भूख लगने पर मज्जा । रक्त । और गली हड्डियां खाता है । इस प्रकार के और भी अनेकों कष्ट हैं ।
निकृन्तन । इस नरक में कुम्हार के चाक के समान चक्र चलते रहते हैं । इनके ऊपर पापियो को खडा करके
यमदूतों द्वारा उंगली में स्थित कालसूत्र द्वारा सिर से पैर तक छेदा जाता है । उनके शरीर के सैकडों भाग हो जाते हैं ।फ़िर वापस जुड जाते हैं पर उनका प्राणान्त नहीं होता । इस प्रकार हजारों वर्ष तक चक्कर लगाने के बाद जब जीव के पापों का विनाश हो जाता है । तब उसे नरक से मुक्त करते हैं ।
अप्रतिष्ठ । इस नरक में चक्र और रहट लगा रहता है । वह हजारों वर्ष बाद ही रुकता है । पापी इस पर बांध दिये जाते हैं । वे घट की भांति घूमते रहते हैं । खून की उल्टी करते हुये उनकी आंते मुख की ओर से बाहर आ जाती हैं । और नेत्र आंतो में घुस जाते हैं ।
असिपत्रवन । ये नरक एक हजार योजन में फ़ैला हुआ है । इसकी भूमि अग्नि से व्याप्त होकर निरंतर जलती
है । इस भयंकर नरक में सात सूर्य निरंतर तीव्रता के सात तपते हैं । जिसके संताप से पापी जलते रहते हैं ।
इसी नरक के मध्य एक चौथाई भाग में " शीतस्निग्धपत्र " नाम का वन है । उसमें वृक्षों से टूटकर गिरे पत्ते और फ़ल पडे रहते हैं । इस वन में मांसाहारी बलबान कुत्ते विचरण करते रहते हैं । अत्यन्त शीत और छायायुक्त उस स्थान को देखकर भूख प्यास और ताप से पीडित प्राणी रोते हुये वहां जाते हैं । जलती हुयी प्रथ्वी से पापियों के दोनों पैर जल जाते हैं । अत्यन्त शीतल वायु बहने लगती है । जिसके कारण उन पापियों के ऊपर तलवार की धार के समान पत्ते गिरते हैं । इससे उनके शरीर छिन्न भिन्न हो जाते हैं । और फ़िर कुत्ते आक्रमण कर देते हैं । और उन का मांस नोच नोचकर खाने लगते हैं ।
तप्तकुम्भ । इस नरक में चारों ओर अत्यन्त गरम घडे हैं । जिनके चारों ओर अग्नि जलती रहती है । इसमें
उबलता हुआ तेल ओर लोहे का चूर्ण पडा होता है । पापी को ओंधा मुख करके डाल दिया जाता है । जिस से पापिओं की मज्जा गलती है । और अंग फ़ूटने लगते हैं । इस तरह पापियों का काडा सा बना दिया जाता है । यमदूत नुकीले हथियारों से उनकी खोपडी । आंख । तथा हड्डियों को छेदते हैं । गिद्ध झपट्टा मारकर पापियों को नोचते हैं और फ़िर उसी में छोड देते हैं । इसी स्थिति में यमदूत कष्ट देते रहते हैं ।
इस प्रकार ये सात मुख्य नरक हैं । अन्य नरकों के नाम इस प्रकार हैं ।
रोध । सूकर । ताल । महाज्वाल । शवल । विमोहन । कृमि । कृमिभक्ष । लालाभक्ष । विषज्जन । अधःशिर ।
पूयवह । रुधिरान्ध । विडभुज । वैतरणी । अग्निज्वाल । महाघोर ।संदंश । अभोजन ।तमस । कालसूत्र ।
लौहतापी । अभिद । अवीचि आदि ।

सोमवार, जुलाई 26, 2010

बहुत से सवाल हैं जिनका कोई जवाब नहीं देता..1

मार्च 2010 में जब मैंने अध्यात्म के गूढ रहस्यों के आदान प्रदान के उद्देश्य से ब्लागिंग शुरू की थी और अपने ऐसे ही विचार वाले इंटरनेटी मित्रों की तलाश में सर्फ़िंग कर रहा था । मुझे एक ब्लाग मिला । जिसका नाम " नास्तिकों का ब्लाग " था । जिसमें नास्तिक लोगों को आमन्त्रित किया गया था । और उस समय दस के लगभग उसमें (शायद ) सदस्य भी बन चुके थे । जिनमें मैं किसी से भी वाकिफ़ न था ।
उस समय तक ब्लाग में सिर्फ़ एक आमन्त्रण वाली पोस्ट ही प्रकाशित हुयी थी । खैर..पढकर बेहद हंसी आयी । ये लोग नास्तिकता का क्या अर्थ लगाते हैं और आगे क्या धमाका करने वाले हैं । इसकी कल्पना मेरे लिये बेहद दिलचस्प थी । मैंने इसी पहली पोस्ट में विपक्ष यानी आस्तिकता
के रूप में अपना पक्ष रखने हेतु comment किया । इसके बाद जीवन की आपाधापी और अपने दस ब्लाग्स पर काम करने के कारण मैं " नास्तिकों का ब्लाग " को लगभग भूल ही गया । लेकिन पिछली 20 july को सर्फ़िंग के समय ये ब्लाग अक्समात मेरे सामने आ गया । और मैंने april to july इसको पोस्ट और कमेंट के साथ पूरा पढा । ज्यादातार धर्म और अध्यात्म विषयक चर्चा के रूप में इस ब्लाग में मैंने क्या पाया और उस पर मेरा नजरिया क्या है । आईये आपके साथ बांटता हूं । कोई संजय ग्रोवर जी है । जिन्हें मैं इसी ब्लाग @ नास्तिकों का ब्लाग , के लेखों द्वारा ही जितना जान पाया । जानता हूं । लेकिन मेरी बात संजय जी को लेकर नहीं तथ्यों को लेकर हैं । और तथ्य ब्लाग में स्पष्ट हैं । अतः भ्रम की स्थिति का कोई प्रश्न ही नहीं है । मैंने इस ब्लाग से मुख्य प्रश्नों या तथ्यों को छांटा और अपनी मोटी बुद्धि से उनको समझने की कोशिश की । आईये आप भी देखें ... संजय जी को जब अपनी नास्तिकता का अहसास हुआ और...
प्रश्न - जब मैने ईश्वर और धर्म की सत्ता को मानने से इंकार किया तो कुछ लोगों ने कहा भ्रमित हो गया ।ईश्वर के अस्तित्व को साबित करने के लिए लोग तमाम तर्क - बितर्क करने लगे.फिर मेरे न मानने पर कहा - धार्मिक हउवे बिना आदमी अच्छा इन्सान नहीं हो सकता ?
उत्तर - संजय जी आप एक नास्तिक के तौर पर । और आपको समझाने वाले आस्तिक के तौर पर । दोनों की ही स्थिति एक जैसी है । और दोनों को ही आस्तिक या नास्तिक होने का कोई लाभ नहीं है । हां थोडा सा तो है । पर वो ना के बराबर है । लेकिन एक आश्चर्य की भांति विपरीत स्थिति होते हुये भी फ़ल में समान ही है ? जरा सोचिये ?
आपने ईश्वर को देखा नहीं । उसकी कहीं किसी प्रकार की कोई भूमिका आपको नजर नहीं आती । उसका
मानवीय जीवन में आपको कोई सहयोग नजर नहीं आता । ऐसे ही कुछ और मिलते जुलते कारण है । जिनकी वजह से आप नास्तिक हैं । जरा सोचिये ? ठीक यही स्थिति क्या तमाम आस्तिकों की नहीं है । उन्होंने कौन सा ईश्वर को देखा है । वे किसी कार्य में ईश्वर की भूमिका के वारे में कोई ठोस दावा किस बिना पर कर सकते हैं । ईश्वर वास्तव में है । इस बात का प्रमाणिक सबूत वे क्या दे सकते हैं । यानी ईश्वर को लेकर जितना अंधेरे में आप ( नास्तिक ) हैं । उतने ही तमाम आस्तिक ? आप उसके न होने को साबित नहीं कर सकते । और आस्तिक उसके होने को साबित नहीं कर सकते । "धार्मिक हउवे बिना आदमी अच्छा इन्सान नहीं हो सकता ? " यह बात काफ़ी हद तक सत्य है । संजय जी मुझे नहीं मालूम आप सज्जन स्वभाव के हैं । या खलनायक ? जरा फ़िर से सोचिये ? एक सीधे साधे बच्चे को नियन्त्रण में रखने के लिये मां बाप को कोई कोशिश नहीं करनी पडती । कोई परेशानी नहीं होती । वहीं एक शरारती और उदंड बच्चे को काबू में रखने के लिये मां बाप को क्या क्या पापड बेलने पडते हैं ? ये धार्मिक हउवा । कर्मों का दन्ड । और समय समय पर इसके प्रत्यक्ष प्रमाण । दुष्ट स्वभाव के लोगों को नियन्त्रण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । जरा सोचिये । भगवान की वो " अदृश्य लाठी " काम न कर रही होती । और आप जैसे विचार के लोग । जो मृत्यु के बाद जीवन नहीं मानते । पाप पुण्य नहीं मानते । खुद को ही सब कुछ मानते हैं ।
यानी ऐसे ही विचार और पक्की धारणा किसी दुष्ट स्वभाव के व्यक्ति की हो जाय । तो वो निर्भय होकर सीधे सरल और निर्बल लोगों का जीना मुश्किल कर देगा । क्योंकि भरपूर ऐशोआराम । कामक्रीडा हेतु अनेकों बालाएं । बेशुमार धन दौलत । मनमर्जी से जीना । बिना मेहनत के मजे लूटना । कौन नहीं चाहता ? अब जबकि उसे पहले से मालूम हो कि बाद में इसका अच्छा बुरा कोई फ़ल ही नहीं होगा और ये एक ही जिंदगी है । यानी जितने मजे लूट सको लूटो । तो सोचिये वो किस स्तर की मनमानी करेगा ? इसलिये आप व्यवहारिक तौर पर ये परीक्षण करके देखिये । कि इस " धार्मिक हउवा " की समाज को नियन्त्रण करने में कितनी महत्वपूर्ण और प्रभावशाली भूमिका है ।
प्रश्न - कुछ का कहना है ब्राह्मणों ने हिन्दू धर्म में कई बुराइयों का प्रवेश कराया है. तर्क था कि ईश्वर है बस उसेखोजो । धर्म को जानने की जरुरत है,कुछ लोगों ने इस गन्दा बनाया है ।
उत्तर - यह बात एकदम सत्य है । पर उस रूप में नहीं जिस रूप में सब जानते हैं । " वास्तविक ब्राह्मण क्या होता है ? " बुराई क्या है । इस विषय पर मैं अपने लेखों में काफ़ी लिखा है । फ़िर भी " वास्तविक ब्राह्मण क्या होता है ? " इस विषय पर मैं एक विस्त्रत लेख समय मिलने पर आने वाले समय में लिखूंगा ।
लेकिन फ़िलहाल...ब्राह्मणों ने हिन्दू धर्म में कई बुराइयों का प्रवेश ..पर बात करते हैं । बुराई किस क्षेत्र में नहीं है और कब नहीं थी । चलिये गिनते हैं । दूध वाला भेंस को " आक्सीटोक्सिन " लगाकर आपको बुरा दूध पिला रहा है । किसान मानव के लिये अत्यधिक जहरीले कीटनाशकों और हानिकारक खादों का प्रयोग करते हुये । अनाज । सब्जी आदि के माध्यम से बुराई की सप्लाई कर रहा है । वैश्यावृति को अपना चुकी " नगरवधुएं " समाज का निरंतर पतन कर रही हैं । तो ये सब तो आपके जीवन को वास्तविक रूप में हानि पहुंचा रहे है । धर्म आप खाते पीते तो नहीं है । नहीं पसन्द आ रहा । मत अपनाइये । कोई आपको वाध्य तो नहीं कर रहा । आप लोगों को बताते हैं कि मैं नास्तिक हूं । किसी पूजा करने वाले ने आपसे जाकर वोला कि वो आस्तिक है ? अगर वोला होगा तो वो व्यक्ति दुर्लभ ही कहलायेगा ? पुलिस । शासन । प्रशासन । केन्द्रीय शासन । समाज । घर । परिवार । वातावरण । मन्दिर । तीर्थ । गंगा । यमुना । हिन्दू । मुसलमान । सिख । ईसाई । अमेरिकन । रसियन । देवी । देवता । भूत । प्रेत । जितने आप जानते हैं । और जिन्हें नहीं जानते । कोई ऐसा क्षेत्र बता सकते हैं जो एकदम पाक साफ़ हो । या भूतकाल में कभी रहा हो । ग्यान - अग्यान । प्रकाश - अंधकार । दिन - रात । दुष्ट - सज्जन । ये एक दूसरे के पूरक हैं । एक के होने से दूसरे का अस्तित्व है । इसी तरह अच्छाई - बुराई का हमेशा का साथ है । अतः सब में सब तरह के लोग हैं । तो ये कहना कि " ब्राह्मणों ने हिन्दू धर्म में कई बुराइयों का प्रवेश कराया है । " सभी ब्राह्मणों के लिये नहीं कहा जा सकता । अच्छा बुरा आदमी तो हो सकता है । पर इसको ब्राह्मण । यादव । वैश्य । कायस्थ । इस तरह कहना मेरे हिसाब से तो उचित नहीं हैं । फ़िर आपकी मर्जी ?

बहुत से सवाल हैं जिनका कोई जवाब नहीं देता..2

प्रश्न - धर्म को जानने की जरुरत है । कुछ लोगों ने इस गन्दा बनाया है ?
उत्तर - जिसने भी आपको ये उत्तर दिया है । ये एकदम सटीक उत्तर है । दरअसल धर्म को लेकर आपका नजरिया स्थूल और सतही ग्यान पर आधारित है । जैसा कि पूजा पाठ करने वाले आस्तिको का भी होता है । वास्तविक धर्म को जानना कोई हंसी खेल नहीं है ? पहले " धर्म " को जानिये । धर्म का अर्थ है । धारण करना । यदि आप शादीशुदा हैं तो ये ग्रहस्थ धर्म है । यदि आप लडाका की भूमिका में है । तो ये क्षत्रिय धर्म है । पत्नी धर्म । पति धर्म । विध्या धर्म । संतान धर्म । मित्र धर्म । शत्रु धर्म । ये सब धर्म ही है ।
जिस कर्म से आप संयुक्त होते हो । वही धर्म हो जाता है । ये सब " देहधर्म " के अन्तर्गत आते हैं । इनमें मत भिन्नता और विभिन्नता ही तकरार का कारण है । परन्तु आत्मा का धर्म या सनातन धर्म सबके लिये समान है । इसमें राग । द्वेश । ऊंच । नीच । जाति । पांति । भगवान । देवी । देवता । कर्मकांडी पूजा पद्धित आदि का कोई स्थान नहीं है । बल्कि इसमें खुद को जानना । मैं कौन हूं । इस चमत्कारिक सृष्टि के पीछे क्या रहस्य है । मृत्यु के बाद जीवन है या नहीं ? स्वर्ग नरक की सत्यता क्या है । जीवन का सच क्या है ? जीवन का वास्तविक लक्ष्य क्या है ? जैसी चीजों को । जैसे प्रश्नों को " आत्मविग्यान " द्वारा प्रत्यक्ष किया जाता है । वैसे ही जैसे आप प्रकृति को देखते है । सांसारिक पदार्थों को देखते उपयोग करते हैं । आप
माया के " परदे के पीछे " का रहस्य जानने लगते हैं और वहां की चीजों का उपयोग करते हैं ।
कुछ लोगों ने इस गन्दा बनाया है ?..एक चमचमाता शीशा ( धर्म ) किसी की नादानी या अग्यानतावश धुंधला । मैला ( धर्म में मिलाबट ) हो जाय और आप उसमें अपना स्वरूप नहीं देख पा रहे । तो कुछ गलती आपकी भी है । उस पर ( ग्यान रूपी ) कपडा फ़िराइये । शीशा अपनी पूर्व अवस्था में चमकने लगेगा । और आप अपने को ठीक से देख पायेंगे । 2 - दूध ( धर्म ) में मक्खी ( धर्म में मिलाबट ) गिर गयी । आप दूध का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे । सीधी सी बात है । अक्ल का इस्तेमाल करें । मक्खी को निकालकर फ़ेंक दे । आप धर्म ( दूध ) का लाभ निश्चित उठा सकते हैं । फ़िर आपकी मर्जी ?
प्रश्न -जब ईश्वर निरंकारी है तो आकार वाली धरती और इंसान जानवर बनाने की जरुरत क्या थी ?
उत्तर - लगता है । यहां आप निरंकार शब्द का अर्थ निराकार समझ बैठे है । जो पूर्णतया गलत है ।निरंकार शब्द आकाश तक की सत्ता को बताता है । अर्थात निरंकार को जानने वाला । प्रथ्वी । जल । अग्नि । वायु । आकाश । इन पांचो तत्वों को तत्व से जानने वाला साधु निरंकारी कहलाता है । निरंकार । ररंकार । ये दो योग की उच्च स्थितियां है । जिनमें निरंकार आकाश का घोतक है । और ररंकार । रमता राम का । इन शब्दों को साधारण ग्यान रखने वाले प्रायः नहीं जानते । जैसे रसायन बिग्यान का विध्यार्थी घर में नमक मांगने के लिये सोडियम क्लोराइड या Nacl कहने लगे । तो भला कौन समझ पायेगा ?
आकार वाली धरती और इंसान जानवर बनाने की जरुरत ...? जरा सोचिये कि मिट्टी का आकार क्या है ? बिजली का आकार क्या है ? बिजली क्या बल्ब है ? टयूबलाइट है । फ़ैन है । ए सी है । टेलीविजन है ? इनमें से कुछ नहीं है । लेकिन जिसके साथ संयुक्त हो जाती है । उसी को गति देने लगती है । मिट्टी का आकार क्या है ? घर । घडा । खिलौने । सकोरे । खेत । क्यारी । गमला । और अन्य उपयोग । अर्थात जहां जैसी जरूरत होती है । वहां वैसा आकार हो जाता है । यही सिद्धांत हर चीज पर लागू होता है । आप इसी उदाहरण के आधार पर अन्य चीजों के वारे में विचार करें ।
प्रश्न -जब खुदा, ईश्वर या भगवान निरंकारी है तो अपने समारोहों में क्यों एक आदमी को सफ़ेद धोती कुरता पहना के और सफ़ेद चादर ओढा कर पूजा करते है ?
उत्तर - निरंकारी निराकार नहीं होता । ये बात मैंने ऊपर ही स्पष्ट कर दी है । रही किसी आदमी को कपडे पहना के बैठाने की बात । तो वो उस ग्यान का प्रतिनिधित्व करता है । जो परम्परा से चला आ रहा है । अगर कोई बताने वाला शिक्षक के रूप में मौजूद नहीं होगा । तो नये अथवा पुराने लोगों की शंका का समाधान कैसे होगा । नये जुडने वाले लोग ग्यान के बारे में कैसे जानेंगे ?
प्रश्न -क्या ईश्वर चापलूस है जो इंसान को केवल पूजा पाठ के लिए बनाया है ? जब निरंकारी की पूजा करते हैं तो साकार भगवान राम,कृष्ण और शंकर की स्तुति क्यों करते हैं ?
उत्तर - मैंने एक 10 + 2 में पढने वाले student से कहा । क्या तुम्हें मालूम है । कि सरकार तुम्हारी पढाई पर लगभग डेढ लाख रुपया खर्च कर चुकी है । उसने हैरत से मुझे देखा । और बोला । क्या बात कर रहे हो ? सरकार ने मुझे एक रुपया तक नहीं दिया । ऐसा ही कुछ अग्यान का मामला ईश्वर सत्ता को लेकर लोगों में होता है । अनंत ब्रह्माण्ड । अनन्त सृष्टि का शासन । प्रशासन कैसे चल रहा है । ये मजाक की बात नहीं है । ये चारों तरफ़ खाने पीने की वस्तुओं से लेकर । धूप । हवा । पानी आदि सारी व्यवस्था उसके आदेश से ही कार्य कर रही है ।फ़िर भी मैंने आज तक ऐसा नहीं सुना कि ईश्वर ने किसी से कहा हो कि तुम मेरी पूजा करो ? राम । कृष्ण । ये दोनों वास्तव में एक ही सत्ता के दो रूप हैं । जिसे ररंकार कहते हैं । इस त्रिलोकी सत्ता । जिसमें कि यह प्रथ्वीलोक है । का आधिपत्य राम का ही है । इसलिये वृन्दावन मे रहोगे । तो राधे राधे कहोगे । और फ़िर राम,कृष्ण और शंकर किसकी भेंस खोल ले गये । जो लोग इनसे नफ़रत करें । एक परम्परा के रूप में जो पूजा चली आ रही है । वही है । ये पूजा एक अदृश्य रहस्यमय संतुलन करती हैं । जिसे विशेष ग्यान के द्वारा जाना जा सकता है ।
प्रश्न - पता नहीं कितने करोड़ भगवानो को ढ़ोने वाली अपनी गधों वाली पीठ पे एक और भगवान को लादने की जरुरत क्या है ?
उत्तर - आप करोड छोडिये । सिर्फ़ दो सौ भगवान के नाम मुझे बता दीजिये । वैसे कितने नहीं " तैतीसकरोड " हैं । पर कैसे हैं ? ये मैं अपने लेख " क्या है तैतीस करोड देवताओं का रहस्य " में विस्तार से लिख चुका हूं । अतः उसको बार बार लिखने से कोई फ़ायदा नहीं ।

सोमवार, जुलाई 19, 2010

आपके फ़ोन

हाय । मैं नवीन अग्रवाल चन्दौसी । मुरादाबाद से हूं । मैंने आपका लेख " काली चिडिया का रहस्य " पडा । उसी में मुझे आपका फ़ोन न. मिला है । मैं आपसे कुछ बात करना चाहता हूं । क्या आप कुछ समय मेरे लिये निकालकर बात कर सकते हैं ? आपका जो भी जबाब हो प्लीज मेरे फ़ोन न. पर sms या मिस काल करें । ( sms )
*हलो । मैं पीलीभीत से बोल रहा हूं । मैंने सर्पों पर आपका लेख " क्या है बायगीरी का रहस्य " पडा । यदि किसी को सर्प काट ले तो उसका इलाज नहीं कराना चाहिये ? यदि कराना चाहिये तो क्या ? आपके ख्याल से भूत प्रेत होते हैं ? यह सब अफ़वाह है । साधु संत अफ़वाह फ़ैलाकर जनता को लूटते हैं । आपकी एजूकेशन क्या है । बी . ए . मैं कौन कौन से subject थे । हां मैंने आपके लेख ज्यादा तो नहीं पडे । मैं आपको एडवाइज देना चाहता हूं । कि ये भूत प्रेत कुछ नहीं होते । बताइये आपने कभी भूत देखे हैं । खैर आपसे परिचय हो गया । बात हो गयी । अब आगे आपसे बात कर लिया करूंगा । बी. ए . में चार ही subject थे ? आप को अपने subject भी याद नहीं हैं ?
** मैं दीप्ति लखनऊ से बोल रही हूं । मेरे पति को अक्सर दौरे से आते हैं । इलाज का लाभ नहीं हुआ । कभी कभी ऐसी स्थिति मेरी भी हो जाती है । क्या ये भूत प्रेत वाली कोई बात है । या अन्य कोई बात । क्या आप मेरी सहायता कर सकते हैं । क्या मुझे पति को लेकर आना होगा ?
*****
मेरी बात - कृपया sms न करें । मैंने disturb से बचने के लिये sms की ringtone आफ़ कर रखी है । इसलिये मुझे sms की सूचना नहीं हो पाती । आप सुबह 7.00 am to 10.00 am और दोपहर 3.00 pm to 6.00 pm पर मेरे फ़ोन न. पर बात कर सकते हैं । यदि कोई खास परेशानी है । तो 24 घंटे में कभी भी बात कर सकते हैं ।
अक्सर मेरे किसी भी एक या दो लेख को पडकर पाठक प्रायः उत्तेजना सी महसूस करते हैं और हडबडाहट में फ़ोन द्वारा । sms द्वारा । या email द्वारा अपनी प्रतिक्रिया देने लगते हैं । किसी भी प्रतिक्रिया को पाना सुखद तो लगता है । पर उनकी आधी जिग्यासाओं के उत्तर यकायक देना संभव नहीं हो पाता । मेरे दस ब्लाग्स में से आपने कोई लेख पडा । और अचानक सवाल करने लगे । जरा सोचिये ? इंसान एकदम से कैसे समझ सकता है कि आप किस विषय पर और किस दृष्टिकोण से क्या बात करना चाहते हैं ?
नवीन जी भूत प्रेतों को नहीं मानते और मानते भी हैं । उन्हें मेरा लेख काफ़ी अच्छा लगा । और अब वे एक नियमित पाठक के तौर पर मेरे सभी लेखों का अध्ययन करेंगे । पीलीभीत से जिन सज्जन का फ़ोन आया । जल्दी में मैं उनका नाम तो नहीं पूछ पाया । पर उनकी भी मिश्रित प्रतिक्रिया थी । वे मेरे " बायगीरी ..." वाले लेख की तारीफ़ करना चाह रहे थे । पर जल्दवाजी में शब्दों का चयन नहीं कर पा रहें थे । एक तरफ़ वे मेरे बायगीरी लेख के पूर्ण समर्थक थे । तो दूसरी तरफ़ भूतिया लेखों की आलोचना भी कर रहे थे । उनके अनुसार मुझे ऐसा अंधविश्वास नहीं फ़ैलाना चाहिये था ? उन्होंने मेरी एजूकेशन के बारे में इसलिये पूछा कि शायद में कम पडा लिखा होऊं । इसलिये मेरे विचार ऐसे हों । बी. ए . में चार subject जानकर उन्हें हैरानी हुयी । पर आज से बीस साल पहले चार ही होते थे ।
दीप्ति जी को मैं कोई तान्त्रिक लगा था । जिससे वो एक चमत्कार की तरह इलाज कराना चाहती थीं । मैं आप सब लोगों से कई बार कह चुका हूं और फ़िर वही बात कहता हूं । मेरे बारे में कोई भी राय एकदम बना लेने से पहले आप मेरी कुछ और रचनाओं का अध्ययन करेंगे तो आधे से ज्यादा बात आपको उसी समय पता चल जायेगी । आप फ़ोन पर चार सवाल लेकर आते हैं । ब्लाग्स में आपको चालीस प्रश्नों के उत्तर मिल जायेंगे । इसलिये कृपया यदि आपके मन में कोई प्रश्न उठ रहा है । तो फ़ोन करने से पहले ब्लाग के लेखों पर एक निगाह डालें । अपने विषय से सम्बंधित और लेखों को पडें । फ़िर आश्वस्त होकर अच्छी या बुरी राय दें । मैं आपका हरसंभव सहयोग करूंगा ।

शनिवार, जुलाई 17, 2010

मृतक का अंतिम संस्कार..?

मृतक का अंतिम संस्कार क्या होना चाहिये ? आदिकाल से ही मृतक के संस्कार की अनेक रीति प्रचलन में है । जलाना । दफ़नाना । जल प्रवाह और उसे सङने से बचाने के लिये कोई लेप लगाकर यूँ ही सुखा लेना । किसी विशेष स्थान जिसको बहुत सी जगह मृतक चौरा कहते हैं । वहाँ ऐसी ही लाश रखकर छोङ आना । ममी आदि बना देना । ये कुछ प्रमुख तरीके हैं । जो हमारे समाज में प्रचलित हैं । उस दिन ऐसी
ही बात चल रही थी कि श्री महाराज जी ने मृतक का सबसे उचित अंतिम संस्कार बताकर हमें चौंका दिया । हाँलाकि इस बात से कुछ लोग ऐसे नाखुश हुये कि सतसंग छोङकर चले गये । महाराज जी ने जो तरीका बताया । वो भी कोई नया और स्पेशल नहीं था । कैलाश पर्वत के आसपास के लोग वही
तरीका अपनाते हैं ।अभी का तो मालूम नहीं लेकिन कुछ समय पहले जापान में तो मरने से पूर्व ही वृद्ध ( एक निश्चित उमर के बाद ) लोगों के लिये ये तरीका कानून की तरह लागू था । कैलाश पर्वत के निकट ही एक ऊँचा पर्वत है । जिस पर पत्थर आदि की सीङिया बनाकर पर्वत के ऊपर चौरस स्थान पर लाश को रख आते है । जिसे चील कौवा आदि माँसाहारी पक्षी व अन्य माँस भोजी उसे आहार बना लेते हैं ।
सुनने में यह बात कितनी अटपटी लगती है । मगर ये तरीका एकदम उचित है । आईये इससे जुङे सामाजिक सरोकार और भावनात्मक पहलू पर नजर डालते हैं । सबसे पहले तो ये बात विचार करें कि जो आपका सम्बन्धी था । वो तो चला गया । अब जो शेष रह गया है । वो सिर्फ़ मुर्दा ही है । मुर्दा यानी मिट्टी । और इस मिट्टी के लिये आप लाख जतन करो । ये मिट्टी मिट्टी में ही मिल जानी है । आप लाश को जलाते हो । तो भी पंचतत्व तत्वों में मिल जाते हैं । आप दफ़नाते हो तो भी जमीन के कीङे उसको खाते हैं और शेष मिट्टी हो जाती है । आप जलप्रवाह करते हो । तो भी जलीय जीव जन्तु उसे आहार बनाते हैं ।
अब जलाने । दफ़नाने । और जलप्रवाह और ममी आदि जैसे तरीकों पर विचार करें । सबसे पहले यह सोचें कि एक दिन में विश्व के अन्दर कितने लोग मरते होगें ? जलाने पर जीवन के लिये बहुमूल्य वन सम्पदा ( लकङी ) तथा अन्य पदार्थों का अपव्यय । दफ़नाने पर जमीन का गैर उपयोगी हो जाना । दफ़नाने की क्रिया भी कम खर्चीली नहीं होती । जल प्रवाह में नदी का पानी दूषित होना । क्योंकि लाश पानी में फ़ूलकर सङ जाती है । मृतक चौरा जैसे स्थानों पर छोङ देने पर लाश के सङने पर बीमारी फ़ैलने का खतरा होता है । इस सबके विपरीत माँसाहारी पक्षियों के लिये लाश छोङने पर पक्षी ऐसे स्थान पर तैयार रहते हैं । और कुछ ही घन्टो में लाश का कुदरती ढंग से सफ़ाया हो जाता है । इसका सबसे बङा आध्यात्मिक रहस्य जो महाराज जी ने बताया । वो ये कि मृतक पक्षी आदि अन्य जीवों द्वारा भोजन के रूप में उदरस्थ हो जाने पर मृतक के ऊपर से काफ़ी रिण उतर जाता है । जो कि जाने अनजाने में उसके ऊपर चढा हुआ था । भले ही मृतक ने जीवन भर किसी को पानी के लिये न पूछा हो । पर मरते मरते वह कई जीवों का पेट भर गया । इसका लाभ उसे बारह तेरह दिन की उस यात्रा में मिलता है । जो मरने के बाद " यमपुरी " पहुँचने में होती है । ( प्राण निकलने से लेकर यम दरबार में पेशी होने
तक बारह तेरह दिन का समय लग जाता है । इस बीच मृतक के कर्मों के अनुसार उसकी यात्रा होती है ।
मान लो उसने भूखों प्यासों को भोजन पानी दिया हो तो वो उसे रास्ते में प्राप्त हो जाता है । अन्यथा नहीं । अगर उसने दूसरे के रास्ते से काँटे हटाये हैं । तो उसका भी रास्ता साफ़ होता है । कहने का मतलब जैसा उसने यहाँ किया । ठीक वही उसे प्राप्त होता है । चाहे वो अच्छा हो अथवा बुरा । ) तो इस तरह मान लो अपने स्वभाववश या परिस्थितिवश आदमी कोई परोपकार जीवन में नहीं कर सका । तो मरते मरते ये परोपकार फ़ोकट में हो जाता है । और फ़िर लाश का किसी भी तरह संस्कार करो । उसका अंतिम परिणाम तो उस शरीर का नष्ट होना ही है । अब मान लो कोई व्यक्ति जीवन में माँसाहारी रहा हो । तो विधान के अनुसार आने वाला समय में वो शिकार बनेगा और जिनको उसने खाया था । वो किसी न किसी रूप में उससे बदला लेंगे । यानी खायेंगे । तो इस तरह भी कुछ पाप कम हो जाता है ।
मैंने अक्सर एक बङी विचित्र बात देखी है । कोई भी व्यक्ति जीवन में परोपकार या सदव्यवहार करने से बचता रहता है । और मरने पर अपनी अच्छी स्थिति के लिये बङे बङे उपाय करता है । ये उपाय उसके पुत्रादि द्वारा भी किया जाता है । एक कहावत यू. पी . में बेहद प्रचलित है । " जीयत न दये कौरा । मरे बुझाय चौरा । " इसको मैंने सत्य के रूप में चरितार्थ होते हुये देखा है । और इसका सम्बन्ध अमीरी या गरीबी से न होकर स्वभाव से अधिक है । अधिकांश घर के सम्मानित बुजुर्ग जिन्होंने अपना सारा जीवन उस घर के लिये कुरबान कर दिया । अंतिम समय में आकर उपेक्षित । बीमार और एक वक्त के अच्छे खाने के लिये तरसते रहे । घर में चार लोगों को खाना बिगङकर फ़िंक जाता था । पर उन्हें उनकी बहुओं को दो सूखी रोटी अचार के साथ भी देने पर एतराज था । लेकिन बाद में इनकी मृत्यु होने पर एक लाख से लेकर दो लाख का खर्च करते हुये लोग आराम से देखे गये । भरे हुये
को जबर्दस्ती बुलाकर खिला रहे हो । और वो बेचारा सालो रोटी के लिये । तुम्हारे प्रेम के दो बोल सुनने के लिये तरसता हुआ चला गया । कार्ड में लिख दिया । पिताजी स्वर्गवासी हो गये । और खुद ने ही स्वर्ग से पहले ही " नरक " कैसा होता है । यह अच्छी तरह दिखा दिया । दन्डवत प्रणाम और मृतक शरीर को भोजन के रूप में अर्पित कर देना । दो बेहद रहस्यमय पर अनोखे चमत्कारी फ़ल देने वाले कार्य हैं ।
मृतक के मामले में आप शायद इस आचरण का परिणाम प्रत्यक्ष न देख पायें ( वैसे कुछ लोगों को स्वप्न आदि या किसी अन्य तरीके से अनुभूति हो जाती है ) पर दन्डवत में तो हाथ कंगन को आरसी क्या । पढे लिखे को फ़ारसी क्या । जैसा सीधा मामला है ही ।दन्डवत प्रणाम उसे कहते हैं । जो अपने किसी भी आदरणीय को जमीन पर पेट के बल लेटकर किया जाता । इसमें हाथ जुङे हुये नमस्कार की मुद्रा में सिर के ऊपर एकदम सीधे होते हैं । इसका फ़ल क्या है ? प्रभु के विधान के अनुसार गुरु या अन्य आदरणीय जनों को इस भाँति प्रणाम करने से इस आदर भावना के फ़लस्वरूप तुम्हारे शरीर से पाप ताप प्रथ्वी ले लेती है । ये एक सीधा सरल उपाय मैंने कई लोगों को बताया । और वे अमल में लाये तो उन्होंने अपने जीवन में चमत्कारी अनुकूल परिवर्तन महसूस किये । आजकल के बालक युवक चरण स्पर्श करने के बजाय घुटने छू लेते हैं । माथे आदि से लगाना तो बहुत बङी बात है । वैसा ही हो रहा है । बङों के अनमोल आशीर्वाद से वंचित रहतें हैं । तो बात मृतक संस्कार की हो रही थी । ऊपर मैंने मुख्य मुख्य तथ्य लिख दिये हैं । आप हर पहलू से विचार करेंगे । तो आप कहेंगे । निश्चित ही श्री महाराज जी का बताया तरीका मानव हित और कई अन्य पहलूओं से श्रेष्ठ ही है ।

गुरुवार, जुलाई 15, 2010

गुरुपूर्णिमा उत्सव पर आप सभी सादर आमन्त्रित हैं ।


गुर्रुब्रह्मा गुर्रुविष्णु गुर्रुदेव महेश्वरा । गुरुः साक्षात पारब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ।श्री श्री 1008 श्री स्वामी शिवानन्द जी महाराज " परमहँस "
अनन्तकोटि नायक पारब्रह्म परमात्मा की अनुपम अमृत कृपा से ग्राम - उवाली । पो - उरथान । बुझिया के पुल के पास । करहल । मैंनपुरी । में सदगुरुपूर्णिमा उत्सव बङी धूमधाम से सम्पन्न होने जा रहा है । गुरुपूर्णिमा उत्सव का मुख्य उद्देश्य इस असार संसार में व्याकुल पीङित एवं अविधा
से ग्रसित श्रद्धालु भक्तों को ग्यान अमृत का पान कराया जायेगा । यह जीवात्मा सनातन काल से जनम मरण की चक्की में पिसता हुआ धक्के खा रहा है व जघन्य यातनाओं से त्रस्त एवं बैचेन है ।
जिसे उद्धार करने एवं अमृत पिलाकर सदगुरुदेव यातनाओं से अपनी कृपा से मुक्ति करा देते हैं ।
अतः ऐसे सुअवसर को न भूलें एवं अपनी आत्मा का उद्धार करें । सदगुरुदेव का कहना है । कि मनुष्य यदि पूरी तरह से ग्यान भक्ति के प्रति समर्पण हो । तो आत्मा को परमात्मा को जानने में सदगुरु की कृपा से पन्द्रह मिनट का समय लगता है । इसलिये ऐसे पुनीत अवसर का लाभ उठाकर आत्मा की अमरता प्राप्त करें ।
नोट-- यह आयोजन 25-07-2010 को उवाली ( करहल ) में होगा । जिसमें दो दिन पूर्व से ही दूर दूर से पधारने वाले संत आत्म ग्यान पर सतसंग करेंगे ।
विनीत -
राजीव कुलश्रेष्ठ । आगरा । पंकज अग्रवाल । मैंनपुरी । पंकज कुलश्रेष्ठ । आगरा । अजब सिंह परमार । जगनेर ( आगरा ) । राधारमण गौतम । आगरा । फ़ौरन सिंह । आगरा । रामप्रकाश राठौर । कुसुमाखेङा । भूरे बाबा उर्फ़ पागलानन्द बाबा । करहल । चेतनदास । न . जंगी मैंनपुरी । विजयदास । मैंनपुरी । बालकृष्ण श्रीवास्तव । आगरा । संजय कुलश्रेष्ठ । आगरा । रामसेवक कुलश्रेष्ठ । आगरा । चरन सिंह यादव । उवाली ( मैंनपुरी । उदयवीर सिंह यादव । उवाली ( मैंनपुरी । मुकेश यादव । उवाली । मैंनपुरी । रामवीर सिंह यादव । बुझिया का पुल । करहल । सत्यवीर सिंह यादव । बुझिया का पुल । करहल । कायम सिंह । रमेश चन्द्र । नेत्रपाल सिंह । अशोक कुमार । सरवीर सिंह ।

रविवार, जुलाई 11, 2010

यहीं का यहीं ..है भाई ।

इस घटना का जिक्र स्वयं श्री महाराज जी ने एक प्रवचन के दौरान किया था । ये घटना उनके सामने ही हुयी थी । महाराज जी वैसे भी अक्सर यह बात कहते हैं । कि जिन घटनाओं या ऐतिहासिक प्रसंगो से वे स्व अनुभव के तौर पर सच्चाई से परिचित होते हैं । उन्हीं का उल्लेख करते हैं । महाराज जी का
कहना है । कि तमाम इतिहास और धार्मिक साहित्य अनजाने में ही झूठ का पुलंदा बन चुका है । ये घटना इटावा साइड के एक गाँव के दबंग परिवार की है । यह परिवार पहले ही काफ़ी समृद्ध था । पर कहते हैं ना । पैसे वाले को पैसे की भूख ज्यादा होती है । इसी गाँव से लगी हुयी एक बेनामी जमीन थी । जिस पर गाँव के लोग किसी तरह कब्जा करना चाहते थे । क्योंकि जमीन मौके की थी और कीमती भी थी । पर अङचन ये थी । कि ये जमीन पशुओं की विश्राम स्थली थी । और पालतू और गैर पालतू 60-70 गायें इस जमीन पर अक्सर डेरा डाले रहते थीं । गाँव के कुछ लोगों ने उस जमीन को बाङ लगाकर अहाता का रूप दे दिया था । जिससे सर्दी आदि से पशुओं की रक्षा होती थी । इसलिये जो भी इस
जमीन पर कब्जे की सोचता । पूरा गाँव एक होकर इसका विरोध करता । और बद नीयती करने वाले को शान्त रह जाना पङता । इसलिये वे मूक और सीधे सरल पशु उस जमीन को कब्जाने में एक बङा रोङा साबित हो रहे थे । तब गाँव के इस दबंग परिवार ने एक युक्ति सोची । और सभी पशुओं को बाङे में अच्छी तरह बन्द करके रात के समय आग लगा दी । जिससे सभी गाय जलकर मर गयी । और थोङे विरोध के बाद जमीन कब्जाकर आलीशान हवेली बनबा दी । सबने कहा । कि इसका दन्ड अब ईश्वर हीदेगा ।
लेकिन हैरत की बात । परिवार दिन दूना रात चौगुना । समृद्धि की राह पर बढ रहा था ? परिवार के ज्यादातर सदस्य सरकारी नौकरी करते थे और आमतौर पर एक साथ इकठ्ठा नहीं हो पाते थे ? लोग कहने लगे कि कलियुग में ईश्वर भी अन्यायी हो गया है । पर उसके न्याय करने का तरीका एकदम ही अलग है ?
आखिरकार वो घङी आ ही गयी । जिसका प्रकृति को या दन्ड देने वाली शक्तियों को बेसब्री से इंतजार था । होली दीवाली जैसे किसी बङे पर्व पर पूरा परिवार सजा धजा हवेली के हाल में खाने के लिये इकठ्ठा हो गया । एक दो साल के बच्चे से लेकर सबसे बङे बुर्जुग भी हाल में उस समय मौजूद थे कि उसी समय बेहद मजबूत दोमंजिला हवेली किसी चमत्कार की तरह भरभराकर ढह गयी । और पाँच मिनट के अन्दर ही पूरे परिवार का जङ से सफ़ाया हो गया । तब लोगों को ईश्वर के इस न्याय का तरीका पता चला ।
ये घटना भी मुझे स्वयं मुख्य किरदार की साठ वर्षीय पत्नी ने सुनाई । ये एक सक्सेना परिवार था । जो एटा का रहने वाला था । उसके पति सिंचाई विभाग में थे । और माँसाहार के बेहद शौकीन थे । यह हँसता खेलता मध्यम वर्गीय बङा परिवार था । तो सक्सेना साहब एक बार जब ड्यूटी पर थे । सोनापतारी ( बगुला जैसी एक चिङिया होती है । जिसमें काफ़ी मात्रा में माँस निकलता है । और इसको खाने वाले बताते हैं यह काफ़ी स्वादिष्ट होता है । यह चिङिया आसमान में क्वाक क्वाक की तेज आवाज निकालती हुयी झुन्ड की झुन्ड निकलती है ) चिङिया का एक झुन्ड उनके सामने फ़ील्ड में उतर गया ।
वाल्मीक रिषी जैसा किस्सा हो गया । एक सोना पतारी का युगल जोङा तालाब के पास एक दूसरे के सामने भाव पूर्ण मुद्रा में बैठा था । कि माँस के शौकीन सक्सेना साहब ने उनकी बेख्याली का पूरा फ़ायदा उठाते हुये एक बङा तेज चाकू नर पक्षी की " दांई टांग " पर मारा । पक्षी की टांग तुरन्त कट गयी । और वह वहीं गिरकर तङपने लगा । एक पल को तो सक्सेना बहुत हर्षित हो गये लेकिन दूसरे ही पल आश्चर्यचकित और भौंचक्के रह गये । मादा पक्षी इस यकायक आक्रमण से घबरा तो गयी । पर न उङी ।
और न ही वहाँ से हिली । यह सक्सेना साहब के लिये आश्चर्य की बात थी । उनके जीवन में आज दिन तक ऐसा नहीं हुआ था । उन्होंने देखा कि अविचल खङी मादा पक्षी की आँखों से आँसू बह रहे हैं । अब सक्सेना को धार्मिक स्तर पर अपराध बोध हुआ । पर अब क्या हो सकता था । घटना तो घट चुकी थी । कुछ ही देर में सक्सेना को दूसरा झटका लगा । जब नर पक्षी की हालत से दुखी मादा ने अचानक गिरकर प्राण त्याग दिये । नर अभी भी बुरी तरह से पीङा से तङप रहा था । और सक्सेना का दिल हाहाकार कर रहा था । सक्सेना दिल ही दिल में यह चाह रहे थे कि किसी तरह बीस मिनट का समय फ़िर से घूमकर वापस आ जाय । तो वो इस पक्षी की हत्या से बच जाँय । पर ऐसा कहीं होता है ? यह पाप उनकी जीवन किताब में पूरी मजबूती से लिख गया । आखिरकार कुछ देर तङपने के बाद नर ने भी प्राण त्याग दिये । जाहिर था कि सक्सेना इस घटना के बाद उसे कैसे खा सकते थे ? उन्होंने अति अपराध बोध के साथ रोते हुये दोनों पक्षियों को गढ्ढा खोदकर दबा दिया । और घर आकर यह घटना सबको बतायी ।
तीन साल बाद । after three year .
सक्सेना साहब को गले में केंसर हो गया । उनकी पत्नी को " दाँई टांग " में लकवा मार गया । इलाज में काफ़ी पैसा खर्च हो गया ।कुछ समय बाद । सक्सेना अस्पताल में भर्ती थे । और पता नहीं उन्हें क्या बोध हो रहा थे । कि वे रोने लगते थे । बोल तो पाते ही नही थे । लगभग दस बजे सुबह उनकी पत्नी अस्पताल से उन्हे देखकर घर खाना आदि के लिये जाने लगी ।( उनकी पत्नी लकङी और किसी के सहारे से एक पैर से चल लेती थीं ) उनकी पत्नी दरबाजे की ओर मुङी । सक्सेना की तरफ़ उनकी पीठ थी । सक्सेना ने हाथ उठाकर उन्हें बुलाना चाहा । इसी वक्त उनके प्राण निकल गये । नर्स ने आवाज देकर उन्हें रोका । और बताया । कि वे कुछ कहना चाहते हैं ( थे ) । सक्सेना की पत्नी ने उन्हें झकझकोरा । मगर सक्सेना का प्राण पंक्षी अब अंतिम यात्रा हेतु उङ चुका था ।
मुझे कुछ नहीं बताना पङा । सक्सेना की पत्नी खुद ही जाने किस प्रेरणा से बताती थी । मुँह के स्वाद के लिये हत्या की । थोङे ही दिन बाद केंसर की बजह से रोटी खाने से भी मोहताज हो गये । और अंतिम समय तक रोटी नहीं मिली । उस जोङे की एक टांग काटी । भगवान ने तेरे जोङे की एक टांग काट दी । जैसे अंत समय में वह जोङा वियोग पीङा में मरा । सक्सेना भी अपनी पत्नी से मन की बात नहीं कह सके ?

रविवार, जुलाई 04, 2010

आपके पत्र..

लेखकीय-- ये उन फ़ोनकाल्स और ई मेल का विवरण है । जो लगभग प्रतिदिन मुझे प्राप्त होते हैं । * मैं रोहतक से बोल रहा हूँ । मेरा नाम सुरेश है । कृपया बताईये मोक्ष क्या है ? मैं मोक्ष के बारे में जानना चाहता हूँ । और आजकल मेरा मन ज्यादा अशान्त रहता है । क्या करूँ ? मेरे पास पैसे आदि की कोई कमी नहीं है । पर शान्ति नहीं है ?
* मेरा नाम अलका है । मैं लखीमपुर से बोल रही हूँ । घर में बेहद अशान्ति रहती है । पहले सब कुछ ठीक था । क्या ये ग्रह नक्षत्रों की कोई बात है । मेरा जन्म....हुआ था । मैं कानपुर में पैदा हुयी थी । पति से सम्बन्ध भी तनावपूर्ण हैं ? कृपया मार्ग सुझायें । बेहद परेशान हूँ । क्या मुझे जनम कुन्डली भेजनी होगी ? * मेरा नाम विजयदास है । मैं आत्महत्या करने की स्थिति में आ गया हूँ । मेरे ऊपर काफ़ी कर्जा हो गया है । और अभी एक एक पैसे का मोहताज हूँ । आपका नम्बर मुझे दिल्ली के मेरे परिचित सुशील राठोर ने दिया था । समझ में नहीं आता । क्या करूँ ? आप मेरी समस्या किस प्रकार हल कर सकते हैं ?
* मैं वैष्णवी बोल रही हूँ । मैं काफ़ी टेंशन में रहती हूँ । इनफ़ेक्ट..........? क्या आप मेरी सहायता कर सकते हैं ?
* मैंने आपका ब्लाग पढा । पढकर कुछ शान्ति सी मिली । बङी आशा से यह पत्र ( मेल ) लिख रही हूँ । ( लिख रहा हूँ ) आजकल मेरी स्थिति ठीक नहीं है । कभी कभी.....? अब तो बङी ऊब सी होती है । क्या यही जीवन है ? मुझे आशा है । आप कुछ समाधान करेंगे ?
* मैंने आज दिन तक बहुत सतसंग सुने । बहुत साधु संतो के सम्पर्क में आया । पर तसल्ली नहीं हुयी । आपके ब्लाग में मुझे कुछ सच्चाई सी नजर आयी । क्या आप अध्यात्म से जुङी मेरी कुछ शंकाओं का समाधान करेंगें ?
* हेय ..बाबाजी..क्या आप वाकई गाड से मिलने का तरीका जानते हैं ?
* राजीव जी ! गाड वगैरा कुछ नहीं है । जो कुछ है । यही जीवन है । इसलिये मेरी आपको सलाह है । मस्ती से जीवन काटो । देखो दुनियाँ में कितनी हरियाली ( इनका मतलब लेडी ) फ़ैली हुयी है । आप रेगिस्तान में क्यूँ भटक रहे हैं ?
* बाबाजी क्या संसार में एक तुम ही ग्यानी हो । या ग्यान का पूरा ठेका तुम्हारे ही पास है । आपकी बातें पङकर तो ऐसा लगता है । भगवान रोज तुम्हारे घर चाय पीने आतें हों ?
* राजीव जी मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ । क्योंकि मुझे spirituality में बेहद रुचि है । मुझे भारत में भी बेहद रुचि है.... । ( विदेशों से प्रायः 3 पत्र प्रतिदिन ) ।
* my name is monika...wants to say..hi..चलो मौज करते हैं । i am easily going with...?
* I should confess that I’m a very romantic person whose heart is filled with a big desire to create a nice family with all the warmth and coziness in the world. I’m dreaming about such a nice family where everything will have only one reason – deep love….
** * मैंने एक बात अपने जीवन में देखी है । आप कुछ भी क्यों न हों । आप कुछ भी क्यों न कहें । लोग आपसे अपने ही अंदाज में बात करते हैं ? कबीर साहब ने कितना लोगों को समझाया । और एक बार तो उनको पढकर ऐसा लगता है । कि मानों वे समझा समझाकर हार गये हों । तब उन्होंने कहा था ।
" कहे हूँ कह जात हूँ । कहूँ बजाकर ढोल । स्वांसा खाली जात है । तीन लोक का मोल । "
" रात गंवायी सोय के । दिवस गंवाया खाय । हीरा जनम अमोल था । कौङी बदले जाय । "
कभी कभी मुझे लगता है । कि मेरा भी हाल internet पर कुछ ऐसा न हो जाय कि " आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास " कभी कभी ऐसा भी लगता है कि " काजल की कोठरी में कैसो हू सयानो जाय " तीन सालों के अन्दर आंशिक प्रलय होने वाली है । और संसार अपनी मस्ती में मस्त है । और प्रलय की बात थोङी देर को छोङ भी दें । तो ये मानव जीवन बङा अनमोल है । देवताओं को दुर्लभ है । इसमें हमें " वो " प्राप्ति हो सकती है । जिसके लिये हम करोंङो सालों से न जाने कौन कौन सी योनियों में भटके थे । " कौन जोनि जामें भरमे नाहीं । "
इस तरह के प्राप्त होने वाले प्रायः सभी संदेशो का संतुष्टिजनक उत्तर मैं देने की कोशिश करता हूँ । सिवाय शादी । चैटिंग । सेटिंग और डेटिंग को छोङकर । मेरा आप लोगों से यही कहना है । सतसंग करो । आध्यात्म चर्चा करो । प्रभु भक्ति करो । इससे आप भी सुखी होंगे । और आपके द्वारा दूसरों को भी सुख प्राप्त होगा । रहना नहीं देश विराना है । यह संसार कागद की पुङिया बूँद परे गल जाना है । जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । "
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...