बुधवार, जून 23, 2010

सतगुरु से कैसे मिलें .??.

संतो के सानिंध्य में विचित्र और चमत्कारी अनुभवों का होना कोई ज्यादा बङी बात नहीं है । सौभाग्यवशमेरा पाला कभी ऐसे संतो से नहीं पङा । जो सिर्फ़ बातों का ही ढोल पीटना जानते हैं । और अंतरजगत
में जिनकी कोई पहुँच नहीं है । मैंने अपने जीवन में अनेक साधनाओं का प्रक्टीकल किया । और इस हेतु जो भी मार्गदर्शक साधु संतों से मेरी मुलाकात हुयी । वो अलग अलग स्तर पर प्रक्टीकली कम या अधिक
पहुँच रखते थे । निम्न दरजे की और निकृष्ट कोटि की साधनाओं के ढेरों साधु आपको मिल जायेंगे । जो सिद्धि आदि के द्वारा छोटे मोटे चमत्कार करने में सक्षम होते हैं । बिलकुल प्रारम्भिक दौर में मैं ऐसे साधुओं के सम्पर्क में आया । और उनकी गहराई और पहुँच पता चलते ही शीघ्र ही मैंने ऐसे साधुओं से किनारा कर लिया । इसके ऊपर यन्त्र तन्त्र मन्त्र , और विभिन्न पन्थ और पन्थियों का सिलसिला शुरू हो जाता है । जिनमें अघोर पन्थ , नागा पन्थ , हठयोगी , सिद्ध पन्थ , शिव साधना , शव साधना , जैसे नाना प्रकार के पन्थ और पन्थी आते है । इससे ऊपर की श्रेणी में द्वैतभाव भक्ति शुरू हो जाती है । जिनमें शंकर , दुर्गा , काली , हनुमान , राम , कृष्ण , तथा कुन्डलिनी योग और अन्यान्य योग क्रियायें , मुद्रिकाएं महाशक्तियाँ , ईश्वर और प्रकृति , माया , महामाया , योगमाया , आदि का आधार होता है । इनमें ईश्वर या भगवान इष्ट के रूप में होता है । मैंने अपने दीर्घ अनुभवों से जाना कि इक्का दुक्का साधकों को छोङकर द्वैत का साधक एक आम आदमी से अधिक भ्रमित और अशान्त होता है । क्योंकि द्वैत में अनेक लक्ष्य और अनेक लालच होते हैं । इसलिये ज्यादातर साधु या साधक " आधी छोङ सारी को धावे..आधी मिले न सारी पावे..। " दुबिधा में दोऊ गये..माया मिली न राम..। " वाली स्थिति का शिकार हो जाते है । मेरे ऊपर शायद ये प्रभु की विशेष कृपा ही रही । कि द्वैत में दस साल तक भटकने ( हालाँकि बहुत कुछ प्राप्त भी हुआ । पर वो नहीं जिसकी तलाश थी ? ) के बाद " अद्वैत " के सच्चे संत ( और सतगुरु भी ) मुझे मिल गये । और विगत सात सालों से मैं अद्वैत का सारा कचरा ( जो मैंने जमा कर लिया था । ) फ़ेंककर मैं " आत्म ग्यान " की । अद्वैत की । एकमात्र साधना " सुरती शबद साधना " करने लगा । अक्सर लोगों का एक प्रश्न होता है ? कि सतगुरु वाली बात उन्हें समझ तो आती है । पर आज के " विचित्र समय " में सतगुरु मिले कैसे ? हर जगह तो पाखंडियों की भरमार है ?
मैंने अपनी कई पोस्टों में इसका उपाय लिखा है । आप किसी के भी द्वारा सुझाये गुरु को मत मानिये ? गुरु बताने बाला गुरु स्वयं आपके अन्दर है । बस आप वो उपाय नहीं जानते । जिसके द्वारा सच्चे गुरु या परमात्मा की प्राप्ति होती है । इस उपाय में मैं अपनी ही style में तीन उदाहरंण देता हूँ । जो अक्सर कटु आलोचना का शिकार होते हैं ।
1-- जिस प्रकार " पहले प्रेम " में प्रेमी प्रेमिका हर समय एक दूसरे के बारे में सोचते हैं कि कब अपने प्रेमी से मिले । ऐसे । 2-- जिस प्रकार काम आतुर नारी पति या पुरुष की चाहना करती है । ऐसे ।
3-- जिस प्रकार माँ से किसी कारणवश उसका एक से तीन साल का ( या बङा भी हो । छोटे की ज्यादा लगती है । ) बच्चा (भले ही )कुछ घन्टों के लिये बिछुङ ( जैसे स्कूल या किसी के साथ चला गया हो ) जाय । तो उस माँ को जो उस की याद सताती है । ऐसे । ऐसे भावों से आप निरंतर यही सोचे..कि मैं कौन हूँ..और मुझे शाश्वत ग्यान या परमात्मा की प्राप्ति कैसे होगी । कोई वजह नहीं । कि आपको सत्य मार्ग न मिले ।
अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।

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