रविवार, नवंबर 20, 2011

नाचो गाओ संगीत बजाओ और सेक्स को मानसिक मत होने दो

शिक्षा की स्थिति देख कर हृदय में बहुत पीड़ा होती है । शिक्षा के नाम पर जिन परतंत्रताओं का पोषण किया जाता है । उनसे एक स्वतंत्र और स्वस्थ मनुष्य का जन्म संभव नहीं है । मनुष्य जाति जिस कुरूपता और अपंगता में फंसी है । उसके मूलभूत कारण शिक्षा में ही छिपे हैं । शिक्षा ने प्रकृति से तो मनुष्य को तोड़ दिया है । लेकिन संस्कृति उससे पैदा नहीं हो सकी है । उलटे पैदा हुई है - विकृति । इस विकृति को ही प्रत्येक पीढ़ी नई पीढ़ियों पर थोपे चली जाती है । और फिर जब विकृति ही संस्कृति समझी जाती हो । तो स्वभावतः थोपने का कार्य पुण्य की आभा भी ले लेता हो । तो आश्चर्य नहीं है । और जब पाप पुण्य के वेश में प्रकट होता है । तो अत्यंत घातक हो ही जाता है । इसलिए ही तो शोषण । सेवा की आड़ में खड़ा होता है । और हिंसा अहिंसा के वस्त्र ओढ़ती है । और विकृतियां संस्कृति के मुखौटे पहन लेती हैं । अधर्म का धर्म के मंदिरों में आवास अकारण नहीं है । अधर्म सीधा और नग्न तो कभी उपस्थित ही नहीं होता है । इसलिए यह सदा ही उचित है कि मात्र वस्त्रों में विश्वास न किया जाए । वस्त्रों को उघाड़ कर देख लेना अत्यंत ही आवश्यक है । मैं भी शिक्षा के वस्त्रों को उघाड़ कर ही देखना चाहूंगा । इसमें आप बुरा तो न मानेंगे ? विवशता है । इसलिए ऐसा करना आवश्यक है । शिक्षा की वास्तविक आत्मा को देखने के लिए उसके तथाकथित वस्त्रों को हटाना ही होगा । क्योंकि अत्यधिक सुंदर वस्त्रों में । जरूर ही कोई अस्वस्थ और कुरूप आत्मा वास कर रही है । अन्यथा मनुष्य का जीवन इतनी घृणा । हिंसा । और अधर्म का जीवन नहीं हो सकता था । जीवन के वृक्ष पर कड़वे और विषाक्त फल देख कर क्या गलत बीजों के बोए जाने का स्मरण नहीं आता है ? बीज गलत नहीं । तो वृक्ष पर गलत फल कैसे आ सकते हैं ? वृक्ष का विषाक्त फलों से भरा होना बीज में प्रच्छन्न विष के अतिरिक्त और किस बात की खबर है ? मनुष्य गलत है । तो निश्चय ही शिक्षा सम्यक नहीं है । यह हो सकता है कि आप इस भांति न सोचते रहे हों । और मेरी बात का आपकी विचारणा से कोई मेल न हो । लेकिन मैं माने जाने का नहीं । मात्र सुने जाने का निवेदन करता हूं । उतना ही पर्याप्त भी है । सत्य को शांति से सुन लेना ही काफी है । असत्य ही माने जाने का आगृह करता है । सत्य तो मात्र सुन लिए जाने पर ही परिणाम ले आता है । सत्य का सम्यक श्रवण ही स्वीकृति है । लेकिन यह जड़ता किसने पैदा की है ? निश्चित ही शिक्षा ने । और शिक्षक ने । शिक्षक के माध्यम से मनुष्य के चित्त को परतंत्रताओं की अत्यंत सूक्ष्म जंजीरों में बांधा जाता रहा है । यह सूक्ष्म शोषण बहुत पुराना है । शोषण के अनेक कारण हैं - धर्म हैं । धार्मिक गुरु हैं । राजतंत्र हैं । समाज के न्यस्त स्वार्थ हैं । धनपति हैं । सत्ताधिकारी हैं । सत्ताधिकारी ने कभी भी नहीं चाहा है कि मनुष्य में विचार हो । क्योंकि जहां विचार है । वहां विद्रोह का बीज है । विचार मूलतः विद्रोह है । क्योंकि विचार अंधा नहीं है । विचार के पास अपनी आंखें हैं । उसे हर कहीं नहीं ले जाया जा सकता । उसे हर कुछ करने और मानने को राजी नहीं किया जा सकता है । उसे अंधानुयायी नहीं बनाया जा सकता है । इसलिए सत्ताधिकारी विचार के पक्ष में नहीं हैं । वे विश्वास के पक्ष में हैं । क्योंकि विश्वास अंधा है । और मनुष्य अंधा हो । तो ही उसका शोषण हो सकता है । और मनुष्य अंधा हो । तो ही उसे स्वयं उसके ही अमंगल में संलग्न किया जा सकता है ।
सभी आत्मीयता से डरते हैं । यह बात और है कि इसके बारे में तुम सचेत हो या नहीं । आत्मीयता का मतलब होता है कि किसी अजनबी के सामने स्वयं को पूरी तरह से उघाड़ना । हम सभी अजनबी हैं । कोई भी किसी को नहीं जानता । हम स्वयं के प्रति भी अजनबी हैं । क्योंकि हम नहीं जानते कि - हम हैं कौन ? आत्मीयता तुम्हें अजनबी के करीब लाती है । तुम्हें अपने सारे सुरक्षा कवच गिराने हैं । सिर्फ तभी  आत्मीयता संभव है । और भय यह है कि यदि तुम अपने सारे सुरक्षा कवच । तुम्हारे सारे मुखौटे गिरा देते हो । तो कौन जाने कोई अजनबी तुम्हारे साथ क्या करने वाला है । एक तरफ आत्मीयता अनिवार्य जरूरत है । इसलिए सभी यह चाहते हैं । लेकिन हर कोई चाहता है कि दूसरा व्यक्ति आत्मीय हो कि दूसरा व्यक्ति अपने बचाव गिरा दे । संवेदनशील हो जाए । अपने सारे घाव खोल दे । सारे मुखौटे । और झूठा व्यक्तित्व गिरा दे । जैसा वह है । वैसा नग्न खड़ा हो जाए । यदि तुम सामान्य जीवन जीते । प्राकृतिक जीवन जीते । तो आत्मीयता से कोई भय नहीं होता । बल्कि बहुत आनंद होता । दो ज्योतियां इतनी पास आती हैं कि लगभग एक बन जाए । और यह मिलन बहुत बड़ी तृप्तिदायी । संतुष्टिदायी । संपूर्ण होती है । लेकिन इसके पहले कि तुम आत्मीयता पाओ । तुम्हें अपना घर पूरी तरह से साफ करना होगा । सिर्फ ध्यानी व्यक्ति ही आत्मीयता को घटने दे सकता है । आत्मीयता का सामान्य सा अर्थ यही होता है कि तुम्हारे लिए हृदय के सारे द्वार खुल गए । तुम्हारा भीतर स्वागत है । और तुम मेहमान बन सकते हो । लेकिन यह तभी संभव है । जब तुम्हारे पास हृदय हो । और जो दमित कामुकता के कारण सिकुड़ नहीं गया हो । जो हर तरह के विकारों से उबल नहीं रहा हो । जो कि प्राकृतिक है । जैसे कि वृक्ष । जो इतना निर्दोष है । जितना कि एक बच्चा । तब आत्मीयता का कोई भय नहीं होगा । विश्रांत होओ । और समाज ने तुम्हारे भीतर जो विभाजन पैदा कर दिया है । उसे समाप्त कर दो । वही कहो । जो तुम कहना चाहते हो । बिना फल की चिंता किए । अपनी सहजता के द्वारा कर्म करो । यह छोटा सा जीवन है । और इसे यहां और वहां के फलों की चिंता करके नष्ट नहीं किया जाना चाहिए । आत्मीयता के द्वारा । प्रेम के द्वारा । दूसरें लोगों के प्रति खुलकर । तुम समृद्ध होते हो । और यदि तुम बहुत सारे लोगों के साथ गहन प्रेम में । गहन मित्रता में । गहन आत्मीयता में । जी सको । तो तुमने जीवन सही ढंग से जीया । और जहां कहीं तुम हो । तुमने कला सीख ली । तुम वहां भी प्रसन्नतापूर्वक जीओगे । लेकिन इसके पहले कि तुम आत्मीयता के प्रति भय रहित होओ । तुम्हें सारे कचरे से मुक्त होना होगा । जो धर्म तुम्हारे ऊपर डालते रहे हैं । सारा कबाड़ जो सदियों से तुम्हें दिया जाता रहा है । इस सबसे मुक्त होओ । और शांति । मौन । आनंद । गीत । और नृत्य का । जीवन जीओ । और तुम रूपांतरित होओगे । जहां कहीं तुम हो । वह स्थान स्वर्ग हो जाएगा । अपने प्रेम को उत्सव पूर्ण बनाओ । इसे भागते दौडते किया हुआ । कृत्य मत बनाओ । नाचो । गाओ । संगीत बजाओ । और सेक्स को मानसिक मत होने दो । मानसिक सेक्स प्रामाणिक नहीं होता है । सेक्स सहज होना चाहिए । माहौल बनाओ । तुम्हारा सोने का कमरा ऐसा होना चाहिए । जैसे कि मंदिर हो । अपने सोने के कमरे में । और कुछ मत करो । गाओ । और नाचो । और खेलो । और यदि स्वतः प्रेम होता है । सहज घटना की तरह । तो तुम अत्यधिक आश्चर्यचकित होओगे कि जीवन ने तुम्हें ध्यान की झलक दे दी । पुरुष और स्त्री के बीच रिश्ते में बहुत बड़ी क्रांति आने वाली है । पूरी दुनिया में विकसित देशों में ऐसे संस्थान हैं । जो सिखाते हैं कि प्रेम कैसे करना । यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जानवर भी जानते हैं कि प्रेम कैसे करना । और आदमी को सीखना पड़ता है । और उनके सिखाने में बुनियादी बात है । संभोग के पहले की क्रीडा । और उसके बाद की क्रीडा । फोर प्ले और ऑफ्टर प्ले । तब प्रेम पावन अनुभव हो जाता है । इसमें क्या बुरा है । यदि आदमी उत्तेजित हो जाए । और कमरे से बाहर नंगा निकाल आए ? दरवाजे को बंद रखो । सारे पड़ोसियों को जान लेने दो कि यह आदमी पागल है । लेकिन तुम्हें अपने चरमोत्कर्ष के अनुभव की संभावना को नियंत्रित नहीं करना है । चरमोत्कर्ष का अनुभव मिलने और मिटने का अनुभव है । अहंकार विहीनता । मन विहीनता । समय विहीनता का अनुभव है । इसी कारण लोग कंपते हुए जीते हैं । भला वो छिपाएं । वे इसे ढंक लें । वे किसी को नहीं बताएं । लेकिन वे भय में जीते हैं । यही कारण है कि लोग किसी के साथ आत्मीय होने से डरते हैं । भय यह है कि हो सकता है कि यदि तुमने किसी को बहुत करीब आने दिया । तो दूसरा तुम्हारे भीतर के काले धब्बे देख ना ले । इंटीमेसी ( आत्मीयता ) शब्द लातीन मूल के इंटीमम से आया है । इंटीमम का अर्थ होता है । तुम्हारी अंतरंगता । तुम्हारा अंतरतम केंद्र । जब तक कि वहां कुछ न हो । तुम किसी के साथ आत्मीय नहीं हो सकते । तुम किसी को आत्मीय नहीं होने देते । क्योंकि वह सब कुछ देख लेगा । घाव और बाहर बहता हुआ पस । वह यह जान लेगा कि तुम यह नहीं जानते कि तुम हो कौन । कि तुम पागल आदमी हो । कि तुम नहीं जानते कि तुम कहां जा रहे हो कि तुमने अपना स्वयं का गीत ही नहीं सुना कि तुम्हारा जीवन अव्यवस्थित है । यह आनंद नहीं है । इसी कारण आत्मीयता का भय है । प्रेमी भी शायद ही कभी आत्मीय होते हैं । और सिर्फ सेक्स के तल पर किसी से मिलना आत्मीयता नहीं है । ऐंद्रिय चरमोत्कर्ष आत्मीयता नहीं है । यह तो इसकी सिर्फ परिधि है आत्मीयता इसके साथ भी हो सकती है । और इसके बगैर भी हो सकती है ।

जब तक तुम स्वयं एक कमल की तरह ही न खिलो

तुमने बहुत सी स्वतंत्रताओं के बारे में सुना होगा । राजनीतिक स्वतंत्रता । मनोवैज्ञानिक स्वतंत्रता ।  आर्थिक स्वतंत्रता ।  स्वतंत्रताएं कई तरह की होती हैं । लेकिन अंतिम स्वतंत्रता है । झेन ।, स्वयं स्वतंत्र होना । इसे एक विश्वास की भांति स्वीकार नहीं करना है । इसका अनुभव करना है । केवल तभी तुम उसे जानोगे । यह एक स्वाद है । कोई भी व्यक्ति चीनी का वर्णन करते हुए कह सकता है कि वह मीठी होती है ।, लेकिन यदि तुमने कभी चीनी को चखा नहीं है  । तो तुम  मीठा शब्द तो सुनते हो  । लेकिन तुम समझते नहीं  कि वह क्या होता है । केवल एक ही उपाय है कि कोई आदमी तुम्हारे मुंह में बरबस कोई मीठी चीज डाल दे ।
झेन में सदगुरु का कार्य होता है । तुम्हारे अनुभव में शून्यता को शामिल करना ।  या दूसरे शब्दों में कहा जाए । तो तुम्हें तुम्हारी शून्यता के सम्मुख लाना । सदगुरु विधियां खोजता है ।  और जब वे पुरानी और घिसी पिटी हो जाती हैं । तो वह उन्हें छोडकर फिर नए उपाय और नई विधियां तलाशता है ।
लेकिन इस बात को हुए 25 शताब्दियां गुजर गई । जब गौतम बुद्ध ने बिना एक शब्द कहे महाकाश्यप को कमल का फूल दिया था । और उस सभा में कहा था ।  जो कुछ कहा जा सकता था । वह मैंने तुमसे कह दिया । जो नहीं कहा जा सकता था ।  यद्यपि मैं उसे भी अभिव्यक्त करना चाहता हूं ।  लेकिन जो कतई संभव नहीं है ।  वह मैं महाकाश्यप को हस्तांतरित कर रहा हूं ।
वह कमल का फूल तो केवल एक प्रतीक था ।  जब तक तुम स्वयं एक कमल की तरह ही न खिलो ।  जिसके पत्तों पर सुबह के सूरज में ओस कण मोतियों की भांति चमकते हैं ।  यह एक जलते दीये का हस्तांतरण है ।  इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता । महाकाश्यप पहली बार बुद्ध के निकट आया ।  उनके चरण स्पर्श किए ।  उनसे कमल का फूल लिया । और लौटकर वृक्ष के नीचे जाकर मौन बैठा रहा । महाकाश्यप ही झेन का प्रथम कुलपति है । इसलिए झेन की परंपरा ।  झेन का परिवार एक शाखा है ।  बौद्ध धर्म की एक मौन शाखा । वे लोग गौतम बुद्ध से प्रेम करते हैं ।  क्योंकि वास्तव में झेन का जन्म उनकी शून्यता से हुआ । उन्होंने उसे महाकाश्यप को हस्तांतरित किया । और फिर यह महाकाश्यप का दायित्व हो गया कि वह उन लोगों को खोजे । जिन्हें यह संपदा सौंपी जा सकती हो ।
इसलिए 25 शताब्दियों पूर्व ।  उस क्षण से वह हस्तांतरित होती रही । बिना किन्हीं सुनिश्चित साधनों के ।  बिना किसी भाषा के ।  सदगुरु से शिष्य को ।  किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा । जो अपने घर वापस लौट आया था ।  उस व्यक्ति को । जो चारों ओर भटकता हुआ । अपना मार्ग नहीं खोज पा रहा था ।

और एक बार तुम शून्यता में प्रवेश कर जाओ

डी. टी. सुजूकी पश्चिम में । अस्तित्व के प्रति एक नए दृष्टिकोण के साथ आया । उसने बुद्धिजीवियों को आकर्षित किया । क्योंकि वह बहुत विद्वान था । गहरी विद्वत्ता थी उसके पास । और उसने पश्चिम के मन को धर्म की एक पूरी नई तरह की अवधारणा दी । लेकिन यह केवल अवधारणा तक सीमित रही । यह केवल मन के तर्क तक ही सीमित रही । इससे अधिक गहराई में वह कभी प्रविष्ट नहीं हुई ।
इसी के समानांतर स्थिति चीन में भी थी । चीन में बोधि धर्म के जाने से पूर्व ही । चीन बौद्ध धर्म को स्वीकर कर चुका था । बोधि धर्म वहां 14 वर्ष पूर्व गया । जबकि बुद्ध का धर्म । और दर्शन । बोधिधर्म के चीन पहुंचने के 600 वर्षों पूर्व ही । अर्थात 2000 वर्ष पूर्व ही चीन पहुंच गया था । इन 600 वर्षों में बौद्ध धर्म के विद्वानों ने पूरे चीन को बौद्ध धर्म में रूपांतरित कर दिया था ।
उन दिनों पूरे देश को किसी धर्म में दीक्षित करना बहुत सरल था । तुम्हें केवल सम्राट का धर्म परिवर्तन करना होता था । और तब उसके दरबारियों का भी रूपांतरण हो जाता था । फिर उसकी पूरी सेना का । फिर सभी सरकारी कर्मचारियों का भी । धर्म परिवर्तन हो जाता था । और जब सम्राट । और पूरी नौकरशाही । और सेना । और दरबार के तथाकथित बुद्धिमान लोगों का धर्मांतरण हो जाता था । तो जन समूह महज उनका अनुसरण करता था ।
जन सामान्य ने अपने लिए कभी किसी चीज का कोई भी निर्णय नहीं लिया है । वे केवल उन लोगों की ओर देखते हैं । जो अपने महान । बुद्धिमान । शक्तिशाली । धनी । और समृद्ध होने की घोषणा करते हैं । यदि ये लोग अपना धर्मांतरण कर लेते हैं । तो जन समूह उनका अनुसरण करेगा ही ।
इसलिए इन 600 वर्षों में हजारों बौद्ध विद्वान चीन गए । और वहां उन्होंने सम्राटों और गवर्नरों का धर्मांतरण किया । लेकिन फिर भी यह गौतम बुद्ध का सच्चा संदेश नहीं था । यद्यपि पूरा चीन बौद्ध हो गया था । पर वहां बुद्ध अभी तक प्रकट न हुए थे । बोधिधर्म को उसके सदगुरु के द्वारा । जो एक स्त्री थी । चीन भेजा गया । उसने बोधिधर्म से कहा - बौद्ध विद्वानों ने चीन में मार्ग तो तैयार कर दिया है । अब वहां तुम जाओ  । तुम्हारी वहां बहुत आवश्यकता है ।  चीन में प्रवेश करने वाला बोधिधर्म पहला बुद्ध था । और वह एक नितांत भिन्न दृष्टिकोण साथ लेकर आया था । जो कि मन का नहीं । बल्कि अमन का था ।
झेन की अभिव्यक्ति के लिए । पश्चिम अब पूरी तरह से तैयार है । बुद्धिगत रूप से डी.टी.सुजूकी । एलन वाटज । और बहुत से लोगों ने । जिनमें से प्रत्येक के बारे में हम बाद में विस्तार से चर्चा करेंगे । रास्ता बनाया है । अब केवल एक बोधिधर्म की आवश्यकता है । एक गौतम बुद्ध । अथवा एक महाकाश्यप की आवश्यकता है । किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है । जिसका झेन मात्र एक दर्शनशात्र का सिद्धांत न होकर । अनात्मा का यथार्थ अनुभव हो । शून्यता में प्रवेश करने का वास्तविक अनुभव हो ।
और एक बार तुम शून्यता में प्रवेश कर जाओ । तो तुम्हें स्वयं आश्चर्य होगा कि उससे भयभीत होने जैसी कोई बात ही नहीं है । यही तुम्हारा असली घर है । अब तुम उत्सव मना सकते हो । क्योंकि एक रहस्य की अपेक्षा । वहां और अधिक कुछ भी नहीं है । यह शून्यता ही सारे द्वार खोल देती है । तुम जब तक स्व से बंधे रहोगे । अस्तित्व से पृथक होने का विचार तुम्हें दुखी बनाए रखेगा ।
तुम्हें तरीके खोजने होंगे । और ये तरीके आसानी से तभी मिल सकते हैं । जब तुम्हारे साथ कोई ऐसा व्यक्ति हो । जिसने इस मार्ग से पहले ही यात्रा कर ली हो । और जो यह जानता हो कि यह शून्यता खाली नहीं है । विलुप्त होने से यह अर्थ नहीं है कि तुम वास्तव में विलुप्त हो जाते हो । तुम पूर्ण हो जाते हो । इस तरफ से तो देखने पर ऐसा लगता है जैसे तुम मिट गए हो । और उस तरफ से देखने पर ऐसा लगता है । जैसे तुम पूर्ण हो गए हो । यह बात । एक ओस की बूंद से पूछो । लोग अपने अंदर विराट रिक्तता का अनुभव कर रहे हैं । और वे उस रिक्तता को भरना चाहते हैं । तुम रिक्तता के साथ जी नहीं सकते । रिक्तता खालीपन है । और इस खालीपन से जीवन उदास और गंभीर हो जाता है ।
सभी धर्म तुम्हारी इस रिक्तता को असत्यों से भरते आए हैं । अब इन झूठों का भंडाफोड हो गया है । विज्ञान ने इन झूठों का भंडाफोड करने कि लिए बहुत कुछ किया है । और इसके ही साथ महान ध्यानियों और रहस्यदर्शियों ने भी धर्म के इन असत्यों को उघारने में पूरे विश्व भर में अत्यधिक कार्य किया है ।
समकालीन मनुष्य एक बडी अजीब स्थिति में खडा है ।  पुराना गिर चुका है ।  जो एक धोखा ।  एक भृम था । और नया अभी तक आया नहीं है । इसलिए एक अंतराल है । एक अल्प अवकाश जैसा है । और पश्चिम का बुद्धिजीवी कुछ ऐसी चीज खोजने का प्रयास कर रहा है । जो फिर से एक असत्य नहीं होगा । जो तुम्हें केवल सांत्वना नहीं देगा ।  बल्कि तुम्हें रूपांतरित करेगा ।  और जो तुम्हारे अंतरतम में एक गहरी क्रांति बनेगा ।
झेन निश्चित रूप से अस्तित्व और अंतिम सत्य की ओर एक सही रुख है । बिना किसी चीज पर विश्वास किए । बिना एक अनुयायी । अथवा विश्वासी बने ।  तुम सिर्फ अपने ही अंदर प्रवेश करते हो ।  और इसके ही साथ तुम पूर्ण की अपरिसीम शून्यता में भी प्रविष्ट हो जाते हो । लेकिन यह वही परम शून्यता है ।  जहां से तुम आए हो । और जहां तुम्हें फिर जाना है । जब स्त्रोत और लक्ष्य एक हो जाते हैं ।  तुम शानदार उत्सव मनाओगे । उस समारोह में तुम नहीं होगे ।  बल्कि पूरा अस्तित्व ही उसमें भाग लेगा । वृक्ष फूलों की वर्षा करेंगे ।  पक्षी गीत गाएंगे ।  और सभी सागर और नदियां आनंद मनाएंगे ।
जिस क्षण तुम्हारा हृदय पिघल कर विश्वजनीन हृदय बन जाता है ।  पूरा अस्तित्व ही तुम्हारा घर बन जाता है । यही है वह । जहां झेन घट रहा है । इस विश्व में पिघलने से ही तुम मूल स्त्रोत पर वापस लौटते हो ।  ताजे ।  शाश्वत ।  समयातीत ।  असीम । केवल एक ही चीज जरूरी है । इसके लिए । और वह है - आत्मा से मुक्ति ।  स्वयं से मुक्ति । यही झेन का सारतत्व है ।

क्‍योंकि हमारा रोम रोम भी सूर्य से ही निर्मित है

सबसे पहले तो यह बात जान लेनी जरूरी है कि वैज्ञानिक दृष्‍टि से सूर्य से समस्‍त सौर परिवार का । मंगल का । बृहस्‍पति का । चंद्र का । पृथ्‍वी का जन्‍म हुआ है । ये सब सुर्य के ही अंग है । फिर पृथ्‍वी पर जीवन का जन्‍म हुआ । पौधों से लेकर मनुष्‍य तक । मनुष्‍य पृथ्‍वी का अंग है ।  पृथ्‍वी सूरज का अंग है । अगर हम इसे ऐसा समझें । एक मां है । उसकी 1 बेटी है । उन तीनों के शरीर का निर्माण । 1 ही तरह के सेल्‍स से । 1 ही तरह के कोष्‍ठों से होता है ।
और वैज्ञानिक 1 शब्‍द का प्रयोग करते है । एम्‍पैथी का । समानुभूति का । जो चीजें 1 से ही पैदा होती है । सूर्य से पृथ्‍वी पैदा होती है । पृथ्‍वी से । हम सबके शरीर निर्मित होते है । थोड़े ही दूर फासले पर सूरज हमारा महा पिता है । सूर्य पर जो घटित होता है । वह हमारे रोम रोम में स्‍पंदित होता है । क्‍योंकि हमारा रोम रोम भी सूर्य से ही निर्मित है । सूर्य इतना दूर दिखाई पड़ता है । इतना दूर नहीं है । हमारे रक्‍त के 1-1 कण में । और हड्डी की 1-1 टुकड़े में । सूर्य के ही अणुओं का वास है । हम सूर्य के ही टुकड़े है । और यदि सूर्य से हम प्रभावित होते है । इसमें कुछ आश्‍चर्य नहीं है । एम्‍पैथी है । समानुभूति है ।
समानुभूति को भी थोड़ा समझ लेना जरूरी है । जो ज्‍योतिष के 1 आयाम में प्रवेश हो सकेगा । प्रयोग किए जा सकते है । और इस तरह के बहुत से प्रयोग पिछले 50 वर्षों में किए गए है । तो 1 ही अंडज । जुड़वां बच्‍चों को 2 कमरों में बंद कर दिया गया । फिर दोनों कमरों में 1 साथ घंटी बजायी गयी है । और दोनों बच्‍चों को कहा गया है । उनको जो पहला विचार जो ख्‍याल आता है । वह उसे कागज पर बना लें । या तो पहला चित्र उनके दिमाग में आता हो । तो उसे कागज पर बना लें ।
और बड़ी हैरानी की बात है कि अगर 20 चित्र बनवाए गए है । दोनों बच्‍चों से । तो उसमें 90% दोनों बच्‍चों के चित्र 1 जैसे है । उनके मन में । जो पहला विचारधारा पैदा होती है । जो पहला शब्‍द बनता है । या जो पहला चित्र बनता है । ठीक उसके ही करीब वैसा ही विचार जुड़वां बच्‍चे के भीतर भी बनता । और निर्मित होता हे ।
इसे वैज्ञानिक कहते है । एम्‍पैथी । समानुभूति । इन दोनों के बीच 1 समानता है कि ये 1 से प्रतिध्‍वनित होते है । इन दोनों के भीतर अनजाने मार्गों से जैसे कोई जोड़ है । कोई संवाद है । कोई कम्यूनिकेशन है । सूर्य और पृथ्‍वी के बीच भी ऐसा ही कम्यूनिकेशन । ऐसा ही संवाद सेतु है । ऐसा ही संबंध है । प्रतिपल । सूर्य । पृथ्‍वी । और मनुष्‍य । उन तीनों के बीच निरंतर संवाद है । 1 निरंतर डायलॉग है । लेकिन वह जो संवाद है । डायलॉग है । वह बहुत गुह्य है । और बहुत आंतरिक है । और बहुत सूक्ष्‍म है । उसके संबंध में थोड़ी सी बातें समझेंगे । तो खयाल में आएगा ।
अमरीका में 1 रिसर्च सेंटर है । tree ring research सेंटर । वृक्षों में । जो वृक्ष आप काटें । तो वृक्ष के तने में आपको बहुत से रिंग्‍स । बहुत से वर्तुल दिखाई पड़ेंगे । फर्नीचर पर जो सौंदर्य मालूम पड़ता है । वह उन्‍ही वर्तुलों के कारण है । 50 वर्ष से । यह रिसर्च केंद्र । वृक्षों में जो वर्तुल बनते है । उन पर काम कर रहा है । प्रो. डगलस । अब उसके डायरेक्‍टर है । जिन्‍होंने अपने जीवन को अधिकांश हिस्‍सा । वृक्षों में जो वर्तुल बनते है । चक्र बनते है । उन पर ही पूरा व्‍यय किया है । बहुत से तथ्‍य हाथ लगे है । पहला तथ्‍य तो सभी को ज्ञात है । साधारणत: कि वृक्ष की उमृ । उसमें बने हुए रिंग्‍स के द्वारा जानी जा सकती है । जानी जाती है । क्‍योंकि प्रतिवर्ष 1 रंग वृक्ष में निर्मित होता है । 1 छाल । वृक्ष की कितनी उमृ है । उसके भीतर कितने रिंग बने हैं । इनसे तय हो जाता है । अगर 50 साल पुराना है । उसने 50 पतझड़ देखे है । तो 50 रिंग उसके तने में निर्मित हो जाते है । और हैरानी की बात यह है कि इन तनों पर जो रिंग निर्मित होते है । वह मौसम की भी खबर देते है ।
अगर मौसम बहुत गर्म और गीला रहा हो । तो जो रिंग है । वह चौड़ा निर्मित होता है । अगर मौसम बहुत सर्द और सूखा रहा हो । तो जो रिंग है । वह बहुत सकरा निर्मित होता है । हजारों साल पुरानी लकड़ी को काटकर पता लगाया जा सकता है कि उस वर्ष जब यह रिंग बना था । तो मौसम कैसा था । बहुत वर्षा हुई थी । या नहीं हुई थी । सूखा पडा था । या नहीं पडा था । अगर बुद्ध ने कहा है कि इस वर्ष बहुत वर्षा हुई । तो जिस बोधिवृक्ष के नीचे वह बैठे थे । वह भी खबर देगा कि वर्षा हुई कि नहीं हुई । बुद्ध से भूल चूक हो जाए । वह जो वृक्ष है । बोधिवृक्ष । उससे भूल चूक नहीं होती । उसका रिंग बड़ा होगा । या छोटा होगा ।
डगलस इन वर्तुलों की खोज करते करते 1 ऐसी जगह पहुंच गया है । जिसकी उसे कल्‍पना भी नहीं थी । उसने अनुभव किया कि प्रत्‍येक 11 वर्ष पर रिंग जितना बड़ा होता है । उतना फिर कभी बड़ा नहीं होता है । और वह 11 वर्ष वही है । जब सूर्य पर सर्वाधिक गतिविधि होती है । हर 11 वर्ष पर सूरज में 1 रिदम । 1 लयबद्धता है । हर 11 वर्ष में । सूरज बहुत सक्रिय हो जाता हे । उस पर रेडियो एक्‍टिविटी बहुत तीवृ होती है । सारी पृथ्‍वी पर उस वर्ष सभी वृक्ष मोटा रिंग बनाते है । एकाध जगह नही । एकाध जगह जंगल में नहीं । सारी पृथ्‍वी पर । सारे वृक्ष । रेडियो एक्टिविटी से । अपनी रक्षा के लिए मोटा रिंग बनाते है । वह जो सूरज पर तीवृ घटना घटती है । ऊर्जा की । उससे बचाव के लिए । उनको मोटी चमड़ी बनानी पड़ती है । हर 11 वर्ष में ।
इससे वैज्ञानिकों में 1 नया शब्‍द और नयी बात शुरू हुई । मौसम सब जगह अलग होते है  । कहीं सर्दी है । कहीं गर्मी है । कहीं वर्षा है । कहीं शीत है । सब जगह मौसम अलग है । इसलिए अब तक कभी पृथ्‍वी का मौसम । क्‍लाइमेट ऑफ दी अर्थ । ऐसा कोई शब्‍द प्रयोग नहीं होता था । लेकिन अब डगलस ने इस शब्‍द का प्रयोग करना शुरू कर दिया है । क्‍लाइमेट ऑफ दी अर्थ । ये सब छोटे मोटे फर्क तो है ही । लेकिन पूरी पृथ्‍वी पर भी सूरज के कारण 1 विशेष मौसम चलता है । जो हम नहीं पकड़ पाते । लेकिन वृक्ष पकड़ते है । हर 11 वर्ष पर । वृक्ष मोटा रिंग बनाते है । फिर रिंग छोटे होते जाते है । फिर 5 साल के बाद । बड़े होने शुरू होते है । फिर 11 साल पर जाकर । पूरे बड़े हो जाते है ।
अगर वृक्ष इतने संवेदनशील है । और सूरज पर होती हुई कोई भी घटना को । इतनी व्‍यवस्‍था से । अंकित करते है । तो क्‍या आदमी के चित में भी कोई पर्त होगी । क्‍या आदमी के शरीर में भी कोई संवेदन का सूक्ष्‍म रूप होगा । क्‍या आदमी भी । कोई रिंग और वर्तुल । निर्मित करता होगा । अपने व्‍यक्‍तित्‍व में ? अब तक साफ नहीं हो सका । अभी वैज्ञानिकों को साफ नहीं है । कोई बात कि आदमी के भी क्‍या होता है । लेकिन यह असंभव मालूम होता है कि जब वृक्ष भी सूर्य पर घटती घटनाओं को संवेदित करते हों । तो आदमी किसी भांति संवेदित न करता हो । ज्‍योतिष । जो जगत में कहीं भी घटित होता है । वह मनुष्‍य के चित में भी घटित होता है । इसकी ही खोज है ।
इस पर हम पीछे बात करेंगे कि मनुष्‍य भी वृक्षों जैसी ही खबरें अपने भीतर लिए चलता है । लेकिन उसे खोलने का ढंग उतना आसान नहीं है । जितना वृक्ष को खोलने का ढंग आसान है । वृक्ष को काटकर जितनी सुविधा से हम पता लगा सकते । उतनी सुविधा से आदमी को काटकर पता नहीं लगा सकते । आदमी को काटना सूक्ष्‍म मामला है । और आदमी के पास चित है । इसलिए आदमी का शरीर उन घटनाओं को नहीं रिकार्ड करता । चित रिकार्ड करता है । वृक्षों के पास चित नहीं है । इसलिए शरीर ही उन घटनाओं को रिकार्ड करता है ।
1 और बात इस संबंध में ख्‍याल में ले लेने जैसी है । जैसा मैंने कहा । 11 वर्ष में सूरज पर तीवृ रेडियो एक्टिविटी । तीवृ वैधुतिक तूफान चलते हैं । ऐसा प्रति 11 वर्ष पर एक रिदम । ठीक ऐसा ही 1 दूसरा बड़ा रिदम भी पता चलना शुरू हुआ है । और वह है 90 वर्ष का । सूरज के ऊपर । और वह और हैरान करने वाला है ।
और यह जो मैं कहा रहा हूं । ये सब वैज्ञानिक तथ्‍य है । ज्‍योतिष इस संबंध में कुछ नहीं कहते है । लेकिन मैं इसलिए यह कह रहा हूं कि उनके आधार पर ज्‍योतिष को वैज्ञानिक ढंग से समझना आपके लिए आसान हो सकेगा । 90  वर्ष का एक दूसरा वर्तुल है । जो कि अनुभव किया गया है । उसके अनुभव की कथा बड़ी अद्भुत है ।

1 पति की पत्नी होना भी कितना मुश्किल है

1 छोटे से मजाक से महाभारत पैदा हुआ । 1 छोटे से व्यंग से । द्रौपदी के कारण । जो दुर्योधन के मन में तीर की तरह चुभ गया । और द्रौपदी नग्न की गई । नग्न की गई । हुई नहीं । यह दूसरी बात है । करने वाले ने कोई कोर कसर न छोड़ी थी । करने वालों ने सारी ताकत लगा दी थी । लेकिन फल आया नहीं । किए हुए के अनुकूल नहीं आया फल । यह दूसरी बात है ।
असल में । जो द्रौपदी को नग्न करना चाहते थे । उन्होंने ख्याल रख छोड़ा था । उनकी तरफ से कोई कोर कसर न थी । लेकिन हम सभी कर्म करने वालों को । अज्ञात भी बीच में उतर आता है । इसका कभी कोई पता नहीं है । वह जो कृष्ण की कथा है । वह अज्ञात के उतरने की कथा है । अज्ञात के हाथ है । जो हमें दिखाई नहीं पड़ते । हम ही नहीं है । इस पृथ्वी पर । मैं अकेला नहीं हूं । मेरी अकेली आकांक्षा नहीं है । अनंत आकांक्षा है । और अंनत की भी आंकाक्षा है । और उन सबके गणित पर अंतत: तय होता है कि क्या हुआ । अकेला दुर्योधन ही नहीं है । नग्न करने में । द्रौपदी भी तो है । जो नग्न की जा रही है । द्रौपदी की भी तो चेतना है । द्रौपदी का भी तो अस्तित्व है । और अन्याय होगा यह कि द्रौपदी वस्तु की तरह प्रयोग की जाए । उसके पास भी चेतना है । और व्यक्तिव है । उसके पास भी संकल्प है । साधारण स्त्री नहीं है द्रौपदी ।
सच तो यह है कि द्रौपदी के मुकाबले की स्त्री world के इतिहास में दूसरी नहीं है । कठिन लगेगी बात । क्योंकि याद आती है । सीता की । याद आती है । सावित्री की । याद आती है । सुलोचना की । और बहुत यादें है । फिर भी मैं कहता हुं । द्रौपदी का कोई मुकाबला ही नहीं है । द्रौपदी बहुत ही अद्वितीय है । उसमें सीता की मिठास तो है ही । उसमें क्लियोपैट्रा का नमक भी है । उसमें क्लियोपैट्रा का सौंदर्य तो है ही ।  उसमें गार्गी का तर्क भी है । असल में पूरे महाभारत की धुरी द्रौपदी है । यह सारा युद्ध उसके आसपास हुआ है ।
लेकिन चूंकि पुरुष कथाएं लिखते है । इसलिए कथाओं में पुरूष पात्र बहुत उभरकर दिखाई पड़ते है । असल में दुनिया की कोई महाकथा स्त्री की धुरी के बिना नहीं चलती है । सब महाकथाएं स्त्री की धुरी पर घटित होती है । वह बड़ी रामायण सीता की धुरी पर घटित हुई है । राम और रावण तो ट्राएंगल के 2 छोर है । धुरी तो सीता है । ये कौरव और पांडव । और यह सारा महाभारत । और यह सारा युद्ध । द्रौपदी की धुरी पर घटा हे । उस युग की और सारे युगों की सुंदर तम स्त्री है वह । नहीं । आश्चर्य नहीं है कि दुर्योधन ने भी उसे चाहा हो । असल में उस युग में कौन पुरूष होगा । जिसने उसे न चाहा हो । उसका अस्तित्व । उसके प्रति चाह पैदा करने वाला था । दुर्योधन ने भी उसे चाहा है । और वह चली गई अर्जुन के पास ।
और वह भी बड़े मजे की बात है कि द्रौपदी को 5 भाइयों में बांटना पडा । कहानी बड़ी सरल है । उतनी सरल घटना नहीं हो सकती । कहानी तो इतनी ही सरल है कि अर्जुन ने आकर बाहर से कहा कि - मां देखो  । हम क्या ले आए है । और मां ने कहा - जो भी ले आए हो । वह पांचों भाई बांट लो । लेकिन इतनी सरल घटना हो नहीं सकती । क्योंकि जब बाद में मां को भी तो पता चला होगा । कि यह मामला वस्तु का नहीं । स्त्री का है । यह कैसे बाँटी जा सकती है । तो कौन सी कठिनाई थी कि कुंती कह देती कि - भूल हुई । मुझे क्या पता था कि तूम पत्नी ले आए हो ।
लेकिन मैं जानता हूं कि जो संघर्ष दुर्योधन और अर्जुन के बीच होता । वह संघर्ष पाँच भाइयों के बीच भी हो सकता था । द्रौपदी ऐसी थी । वे 5 भी कट मर सकते थे । उसके लिए । उसे बांट देना ही सुगमतम राजनीति थी । वह घर भी कट सकता था । वह महायुद्ध । जो पीछे कौरवों पांडवों में हुआ । वह पांडवों पांडवों में भी हो सकता था । इसलिए कहानी मेरे लिए इतनी सरल नहीं है । कहानी बहुत प्रतीकात्मक है । और गहरी है । वह यह खबर देती है कि स्त्री वह ऐसी थी कि 5 भाई भी लड़ सकते थे । इतनी गुणी थी । साधारण नहीं थी । असाधारण थी । उसको नग्न करना आसान बात नहीं थी । आग से खेलना था । तो अकेला दुर्योधन नहीं है कि नग्न कर ले । द्रौपदी भी है ।
और ध्यान रहे । बहुत बातें है इसमें । जो खयाल में ले लेने जैसी है । जब तक कोई स्त्री स्वय नग्न न होना चाहे । तब तक इस जगत में कोई पुरूष किसी स्त्री को नग्न नहीं कर सकता है । न हीं कर पाता है । वस्त्र उतार भी ले । तो भी नग्न नहीं कर सकता है । नग्न होना बड़ी घटना है । वस्त्र उतरने से । निर्वस्त्र होने से । नग्‍न होना । बहुत भिन्न‍ घटना है । निर्वस्त्र करना बहुत कठिन बात नहीं है । कोई भी कर सकता है ।  लेकिन नग्न करना बहुत दूसरी बात है । नग्न तो कोई स्त्री तभी होती है । जब वह किसी के प्रति खुलती है स्वयं । अन्यथा नहीं होती । वह ढंकी ही रह जाती है । उसके वस्त्र छीने जा सकते है । लेकिन वस्त्र छीनना स्त्री को नग्न करना नहीं है ।
और बात यह भी है कि द्रौपदी जैसी स्त्रीं को नहीं पा सकता दुयोर्धन । उसके व्यंग तीखे पड़ गए । उसके मन पर । बड़ा हारा हुआ है । हारे हुए व्यक्ति । जैसे कि क्रोध में आयी हुई बिल्लिया । खंभे नोचने लगती है । वैसा करने लगते है । और स्त्री के सामने । जब भी पुरूष हारता है । और इससे बड़ी हार पुरूष को कभी नहीं होती । पुरूष से लड़ ले । हार जीत होती है । लेकिन पुरूष जब स्त्री से हारता है । किसी भी क्षण में । तो इससे बड़ी हार नहीं होती है ।
तो दुर्योधन उस दिन । उसे नग्न करने का । जितना आयोजन करके बैठा है । वह सारा आयोजन भी हारे हुए पुरूष मन का है । और उस तरफ । जो स्त्री खड़ी है । हंसने वाली । वह कोई साधारण स्त्री नहीं है । उसका भी अपना संकल्प है । अपना विल है । उसकी भी । अपनी सामर्थ्य है । उसकी भी । अपनी श्रद्धा है ।  उसका भी । अपना होना है । उसकी उस श्रद्धा में । वह जो कथा है । वह कथा तो काव्य है कि कृष्ण उसकी साड़ी को बढ़ाए चले जाते है । लेकिन मतलब सिर्फ इतना है कि जिसके पास अपना संकल्प है । उसे परमात्मा का सारा संकल्प तत्काल उपलब्ध हो जाता है । तो अगर परमात्मा के हाथ उसे मिल जाते है ।  तो कोई आश्चर्य नहीं ।
तो मैंने कहा । और मैं फिर कहता हूं । द्रौपदी नग्न की गई । लेकिन हुई नहीं । नग्न करना बहुत आसान है । उसका हो जाना बहुत और बात है । बीच में अज्ञात विधि आ गई ।  बीच में अज्ञात कारण आ गए । दुर्योधन ने जो चाहा । वह हुआ नहीं । कर्म का अधिकार था । फल का अधिकार नहीं था ।
यह द्रौपदी बहुत अनूठी है । यह पूरा युद्ध हो गया । भीष्म पड़े है । शय्या पर । बाणों की शय्या पर । और कृष्ण कहते है पांडवों को कि पूछ लो । धर्म का राज । और वह द्रौपदी हंसती है । उसकी हंसी पूरे महाभारत पर छाई है । वह हंसती है कि - इनसे पूछते हैं । धर्म का रहस्य । जब मैं नग्न की जा रही थी ।  तब ये सिर झुकाए बैठे थे । उसका व्यं‍ग गहरा है । वह स्त्री बहुत असाधारण है । काश ! हिंदुस्तान की स्त्रियों ने सीता को आदर्श न बनाकर । द्रौपदी को आदर्श बनाया होता । तो हिंदुस्तान की स्त्री की शान और होती ।
लेकिन नहीं । द्रौपदी खो गई है । उसका कोई पता नहीं है । खो गई । 1 तो 5 पतियों की पत्नी‍ है । इसलिए मन को पीड़ा होती है । लेकिन 1 पति की पत्नी होना भी कितना मुश्किल है । उसका पता नहीं है । और जो 5 पतियों को निभा सकती है । वह साधारण  स्त्री नहीं है । असाधारण है । सुपरहयूमन है । सीता भी अति मानवीय है । लेकिन टू ह्मन के अर्थों में । और द्रौपदी भी । अति मानवीय है । लेकिन सुपर हयूमन के अर्थों में । पूरे भारत के इतिहास में द्रौपदी को सिर्फ 1 आदमी न ही प्रशंसा दी है । और 1 ऐसे आदमी ने । जो बिलकुल अनपेक्षित है । पूरे india के इतिहास में doctor राममनोहर लोहिया को छोड़कर । किसी आदमी ने द्रौपदी को सम्मान नहीं दिया है । हैरानी की बात है । मेरा तो लोहिया से प्रेम इस बात से हो गया कि 5000 साल के इतिहास में 1 आदमी । जो द्रौपदी को सीता के ऊपर रखने को तैयार है ।

सागर में डूब कर ही मोती पाये जाते हैं

मन भयभीत है । और उसका डरना स्पष्ट और तर्कपूर्ण प्रतीत होता है । इसका सार क्या है ? ऐसा कुछ क्यों करना चाहिए । जिसमें वह मिट जाए ?
गौतम बुद्ध से बारबार पूछा जाता था - आप बहुत अजीब व्यक्ति हैं । हम तो यहां अपने आत्म अनुभव के लिए आए थे । और आपका ध्यान आत्मा का अनुभव न कराना है ।
सुकरात एक महान प्रज्ञावान पुरुष था । लेकिन वह मन तक सीमित था । स्वयं को जानो । लेकिन जानने के लिए कोई स्वयं है ही नहीं । झेन की घोषणा है कि - जानने को आत्मा जैसा कुछ है ही नहीं । जानने जैसा कुछ भी नहीं है । तुम्हें बस पूर्ण के साथ एक हो जाना है । और भयभीत होने की कोई आवश्यकता ही नहीं है । जरा क्षण भर के लिए सोचो । जब तुम्हारा जन्म नहीं हुआ था । क्या कोई व्यग्रता । कोई चिंता । या कोई पीड़ा थी ? तुम थे ही नहीं । तो कोई समस्या भी न थी । समस्या तो तुम स्वयं ही हो । तुमसे ही समस्या शुरू होती हैं । और ज्यों ज्यों तुम बडे होते हो । अधिक से अधिक समस्याएं बढ़ जाती हैं । लेकिन तुम्हारे जन्म से पूर्व । क्या कोई समस्या थी ? झेन सदगुरु नवागतों से निरंतर पूछते थे - तुम अपने पिता के जन्म के पूर्व कहां थे ? एक निरर्थक सा प्रश्न है । लेकिन बहुत महत्वपूर्ण । वे तुमसे पूछ रहे हैं - यदि तुम नहीं थे । तो कोई समस्या थी ही नहीं । इसलिए फिक्र करने की बात क्या है ? यदि तुम्हारी मृत्यु अंतिम मृत्यु बन जाती है । और सारी सीमाएं मिट जाती हैं । तो तुम नहीं रहोगे । लेकिन अस्तित्व तो होगा ही । नृत्य तो होगा । पर नर्तक नहीं होगा । गीत तो होगा । पर गायक नहीं होगा । यह अनुभव केवल तभी संभव है । जब तुम मन के पार अपने अस्तित्व की गहराइयों में उतरो । उस केंद्र अथवा जीवन के स्त्रोत पर पहुंचो । जहां से तुम्हारा जीवन प्रवाहित रहा है । अचानक तुम्हें अनुभव होता है कि तुम्हारी स्वयं की छवि दूसरों के मत पर आधारित थी । तुम छविहीन और अनंत हो । तुम एक पिंजरे में रह रहे थे । जिस क्षण तुम यह अनुभव करते हो कि तुम्हारे स्त्रोत अनंत हैं । अचानक पिंजरा विलुप्त हो जाता है । और तुम नीलाकाश में उडने के लिए अपने पंख खोल सकते हो । और आकाश में जाकर विलुप्त हो सकते हो । यह विलुप्त होना ही अनत्ता है । यह मिट जाना ही स्वयं से मुक्त हो जाना है । लेकिन यह बुद्धि के द्वारा होना संभव नहीं है । यह केवल ध्यान के द्वारा हो सकता है । झेन ध्यान का ही दूसरा नाम है । डी. टी. सुजूकी जैसे विलक्षण व्यक्ति ने पश्चिमी जगत को झेन से परिचित कराया । और इसी के फलस्वरूप पश्चिम में सैंकडों बहुत सुंदर पुस्तकें झेन पर लिखी गई । उसने पथ प्रदर्शक का कार्य किया ।
लेकिन वह स्वयं कोई झेन सदगुरु न था । और न ही ध्यानी व्यक्ति ही था । वह एक महान विद्वान था । और उसका प्रभाव सभी देशों के बुद्धिजीवियों तक फैला । वह तुरंत ही पश्चिम के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया । जैसे जैसे पुराने धर्म विशेष रूप से पश्चिम में लडखडा रहे हैं । ईसाई धर्म के साम्राज्य की जडें हिल गई हैं । वे लोग उसे संभालने का भरसक प्रयास कर रहे हैं । पर यह संभव नहीं है । उसकी इमारत धराशायी हो रही है । और प्रतिदिन एक खाई बडी से बडी होती जा रही है । अथाह पाताल जैसी गहराई । जिसे देख कर चक्कर आने लगते हैं ।
ज्यां पाल सात्र की पुस्तक - नॉसिया बहुत महत्वपूर्ण पुस्तक है । एक बार तुम जब इस अर्थहीन जीवन को । अतल खाई को देखते हो कि तुम्हारा पूरा अस्तित्व संयोगवशात है । अनावश्यक है । एक दुर्घटना है । तुम सारी गरिमा खो देते हो । और तुम किसकी प्रतीक्षा कर रहे हो ? कुछ भी नहीं है । प्रतीक्षा करने के लिए । सिवाय मृत्यु के । यह अत्यधिक व्यग्रता उत्पन्न करती है । हमारा कोई मूल्य नहीं है । किसी को हमारी जरूरत नहीं है । अस्तित्व हमारी उपेक्षा कर रहा है ।
उसी समय डी. टी. सुजूकी पश्चिम के क्षितिज में प्रकट हुए । वह पहले ऐसे व्यक्ति थे । जिन्होंने पश्चिम में जाकर वहां के कालेजों और विश्वविद्यालयों में झेन पर चर्चा की । उन्होंने वहां के बुद्धिजीवियों को तेजी से अपनी ओर आकर्षित किया । चूंकि वे लोग परमात्मा पर विश्वास खो बैठे थे । वे लोग पवित्र बाइबल पर अपनी आस्था खो बैठे थे । और उन्हें पोप पर भी कोई श्रद्धा नहीं रह गई थी ।
आज ही जर्मनी के लगभग एक दर्जन बिशपों ने एक साथ मिलकर यह घोषणा की है कि पोप अपनी सीमाओं के बाहर जाकर निरंतर बर्थ कंट्रोल के विरुद्ध जो उपदेश दे रहे हैं । वे मनुष्यता को एक ऐसे बिंदु पर ले गए हैं । जहां लगभग आधा विश्व निकट भविष्य में भूख से मरने जा रहा है । और अब पोप की बातों को सुनना ही नहीं चाहिए । अब यह विशुद्ध विद्रोह है ।
इन एक दर्जन बिशप ने जर्मनी में एक कमेटी का गठन किया । और वे पोप के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए अपने पक्ष में अधिक से अधिक बिशप जुटा रहे हैं । और यह घोषणा कर रहे हैं कि पोप भूल कर रहे हैं । पूरा इतिहास यह प्रदर्शित करता है कि पोप और बिशप लोग भृष्ट ( फालिबुल ) हो सकते हैं ।
इसलिए यह पूरी सोच कि पोप से कभी कोई भूल होती ही नहीं । इसने उन्हें पूरा तानाशाह बना दिया है । और अब यह सहन नहीं किया जा सकता । इस सदी का प्रारंभ ही । विशेष रूप से पश्चिम के समृद्ध देशों में । सभी पुराने धर्मों के विरुद्ध उबलती हुई ऊर्जा के साथ हुआ । निर्धन देशों के पास न तो इस सोच विचार के लिए कोई समय है । और न भरण पोषण के लिए पर्याप्त भोजन । उनका पूरा समय रोटी । कपडा और मकान की फिक्र में ही बीत जाता है । वे जीवन की महान समस्याओं के बारे में न तो सोच सकते हैं । और न उस पर चर्चा कर सकते हैं । उनके सामने प्रश्न है । भोजन का । परमात्मा का नहीं । इसीलिए निर्धन व्यक्ति बहुत आसानी से । केवल भोजन । नौकरी । और मकान उपलब्ध करा देने भर से ईसाई बनाए जा सकते हैं । लेकिन ईसाई धर्म में उनका कोई रूपांतरण नहीं होता । न तो उनकी दिलचस्पी परमात्मा में होती है । न उनकी दिलचस्पी विश्वास करने की किसी व्यवस्था में होती है । उनके लिए मूलभूत समस्या केवल एक होती है कि वे भूखों मर रहे हैं । जब तुम भूखे और अभावग्रस्त हो । तो तुम परमात्मा के बारे में नहीं सोचते । और न तुम स्वर्ग और नर्क के बारे में सोचते हो । जो पहली चीज तुम सोचते हो । वह यह है कि कहीं से दाल रोटी का जुगाड किया जाए । और यदि कोई व्यक्ति तुम्हें दाल रोटी और आश्रय इस शर्त पर देता है कि तुम्हें एक कैथलिक ईसाई बनना होगा । तो तुम भूख से मरने की अपेक्षा ईसाई बनने को राजी हो जाओगे ।
एक राजा ने किसी सामान्यत: स्वस्थ और संतुलित व्यक्ति को कैद कर लिया था । एकाकीपन का मनुष्य पर क्या प्रभाव होता है । इस अध्ययन के लिए । वह व्यक्ति कुछ समय तक चीखता रहा चिल्लाता रहा । बाहर जाने के लिए रोता था । सिर पटकता था । उसकी सारी सत्ता जो बाहर थी । सारा जीवन तो पर से अन्य बंधा था । अपने में तो वह कुछ भी नहीं था । अकेला होना न होने के ही बराबर था । वह धीरे धीरे टूटने लगा । उसके भीतर कुछ विलीन होने लगा । चुप्पी आ गई । रुदन भी चला गया । आंसू भी सूख गये । और आंखें ऐसे देखने लगीं । जैसे पत्थर हों । वह देखता हुआ भी लगता जैसे नहीं देख रहा है । दिन बीते । वर्ष बीत गया । उसकी सुख सुविधा की सब व्यवस्था थी । जो उसे बाहर उपलब्ध नहीं था । वह सब कैद में उपलब्ध था । शाही आतिथ्य जो था । लेकिन वर्ष पूरे होने पर विशेषज्ञों ने कहा - वह पागल हो गया है । ऊपर से वह वैसा ही था । शायद ज्यादा ही स्वस्थ था । लेकिन भीतर ? भीतर एक अर्थ में वह मर ही गया था । मैं पूछता हूं - क्या एकाकीपन किसी को पागल कर सकता है ? एकाकीपन कैसे पागल करेगा ? वस्तुत: पागलपन तो पूर्व से ही है । बाह्य संबंध उसे छिपाये थे । एकाकीपन उसे अनावृत कर देते हैं । मनुष्य को भीड़ में खोने की अकुलाहट उससे बचने के लिए ही है । प्रत्येक व्यक्ति इसलिए ही स्वयं से पलायन किये हुए है । पर यह पलायन स्वस्थ नहीं कहा जा सकता है । तथ्य को न देखना । उससे मुक्त होना नहीं है । जो नितांत एकाकीपन में स्वस्थ और संतुलित नहीं है । वह धोखे में है । यह आत्मवंचन कभी न कभी खंडित होगी ही । और वह जो भीतर है । उसे उसकी परिपूर्ण नग्नता में जानना होगा । यह अपने आप अनायास हो जाए । तो व्यक्तित्व छिन्न भिन्न और विक्षिप्त हो जाता है । जो दमित है । वह कभी न कभी विस्फोट को भी उपलब्ध होगा । धर्म इस एकाकीपन में स्वयं उतरने का विज्ञान है । क्रमश: एक एक परत उघाड़ने पर अदभुत सत्य का साक्षात होता है । धीरे धीरे ज्ञात होता है कि वस्तुत: हम अकेले ही हैं । गहराई में । आंतरिकता के केंद्र पर प्रत्येक एकाकी है । परिचित होते ही भय की जगह अभय । और आनंद ले लेता है । एकाकीपन के घेरे में स्वयं सच्चिदानंद विराजमान है । अपने में उतरकर स्वयं प्रभु को पा लिया जाता है । इससे कहता हूं - अकेलेपन से । अपने से भागो मत । वरन अपने में डूबो । सागर में डूब कर ही मोती पाये जाते हैं ।
सागर में डूब कर ही मोती पाये जाते हैं

फिर वह सत्य कैसे जाना जा सकता है

हर व्यक्ति प्रेम चाहता है और यही गलत शुरुआत है । यह शारीरिक नहीं है । इसका नाता कहीं विश्रांति से है । पिघलने से है । पूरा मिट जाने से है । उन पलों में यह मिट जाता है । अत: निश्चित ही यह शारीरिक नहीं । तुम्हें अधिक प्रेम देना सीखना होगा । यह केवल तुम्हारी समस्या नहीं है । थोड़ी या ज़्यादा । यह समस्या सभी की है । एक बच्चा । एक छोटा बच्चा प्रेम नहीं कर सकता । कुछ कह नहीं सकता । कुछ कर नहीं सकता । कुछ दे नहीं सकता । बस ले सकता है । छोटे बच्चे का प्रेम का अनुभव केवल लेने का है । मां से । पिता से । बहनों से । भाइयों से । पड़ोसियों से । अजनबियों से । बस लेने का अनुभव । तो पहला अनुभव । जो उसके अचेतन तक पैठ जाता है । वह प्रेम लेने का है । परंतु समस्या यह है कि हर व्यक्ति बच्चा रहा है । और हर व्यक्ति के भीतर प्रेम पाने की आकांक्षा है । कोई भी किसी अलग ढंग से पैदा नहीं हुआ है । तो सभी मांग रहे हैं । हमें प्रेम दो । लेकिन देने वाला कोई भी नहीं । क्योंकि वे भी उसी तरह पैदा हुए हैं । हमें सजग व सचेत रहना चाहिए । कि हम जन्म की यह अवस्था हमारे पूरे जीवन पर आच्छादित न हो जाए । बजाये इसके कि तुम कहो कि मुझे प्रेम दो । तुम प्रेम देना शुरु कर दो । मांगने की बात ही भूल जाओ । बस प्रेम बांटो । और मैं भरोसा दिलाता हूं कि तुम्हें और अधिक प्रेम मिलेगा । परंतु तुम्हें लेने के बारे में सोचना ही नहीं है । कनखियों से भी नहीं देखना है कि तुम्हें प्रेम मिल रहा है । या नहीं । वह भी खलल होगा । तुम केवल प्रेम दो । क्योंकि प्रेम देना बहुत सुंदर बात है । और प्रेम मांगना । इतनी बढ़िया बात नहीं है । यह एक बड़ा रहस्य है ।
प्रेम देना बहुत सुंदर अनुभव है । क्योंकि देने में तुम सम्राट हो जाते हो । लेना बहुत तुच्छ अनुभव है । क्योंकि तुम भिखारी हो जाते हो । जहां तक प्रेम का प्रश्न है । भिखारी मत बनो । सम्राट रहो । क्योंकि तुम्हारे भीतर यह गुणवत्ता असीम है । तुम जितना देना चाहो । दिए चले जा सकते हो । तुम यह चिंता मत करना कि यह चुक जाएगा । कि एक दिन तुम पाओगे । कि  हे प्रभु । मेरे पास तो प्रेम देने के लिए बचा ही नहीं । प्रेम मात्रा नहीं । गुणवत्ता है । ऐसी गुणवत्ता । जो देने से बढ़ती है । और पकड़े रहने से मर जाती है । अत: इसे पूरी तरह लुटा दो । चिंता मत लो । किसे । यह कंजूस व्यक्ति सोचता है । मैं उसे प्रेम दूंगा । जिसमें अमुक गुण होंगे । तुम्हें पता ही नहीं कि तुम्हारे पास कितना प्रेम है । तुम भरे हुए बादल हो । बादल यह चिंता नहीं लेता कि कहां बरसे । चट्टान हो कि उपवन या कि सागर । कोई परवाह नहीं । यह स्वयं को हल्का करना चाहता है ।और वह निर्भारता ही विश्रांति है । तो पहला रहस्य है । इसे मांगें मत  । प्रतीक्षा मत करें कि कोई आएगा । तो हम देंगे । बस दे दें । अपना प्रेम किसी को भी दें  । किसी अजनबी को ही सही । प्रश्न यह नहीं है कि तुम कुछ बहुत कीमती दे रहे हो । कुछ भी । थोड़ी सी सहायता । और वह काफ़ी है । 24 घंटों में तुम जो भी करते हो । उसे प्रेम से करो । और तुम्हारे दिल की पीड़ा मिट जाएगी । और क्योंकि तुम इतने प्रेमपूर्ण होओगे । लोग तुम्हें प्रेम करेंगे । यह स्वाभाविक नियम है ।
तुम्हें वही मिलता है । जो तुम देते हो । वास्तव में तुम उससे अधिक पाते हो । जो तुम देते हो । देना सीखो । और तुम पाओगे कि लोग तुम्हारे प्रति कितने प्रेमपूर्ण हैं । वही लोग जिन्होंने तुम्हारे प्रति कभी ध्यान नहीं दिया । तुम्हारी समस्या यही है । कि तुम्हारा दिल प्रेम से भरा है । लेकिन तुम कंजूस रहे हो । वही प्रेम तुम्हारे दिल पर बोझ हो गया है । दिल को खुला रखने की बजाए । तुम इसे पकड़े रहे । तो कभी कभार  किसी प्रेम की घड़ी में यह पीड़ा तिरोहित होने लगती है । पर एक घड़ी क्यों । एक एक घड़ी क्यों नहीं ? यह केवल किसी जीते जागते व्यक्ति की बात ही नहीं । तुम किसी कुर्सी को भी उतने प्रेमपूर्ण ढंग से छू सकते हो । इसका संबंध तुमसे है । वस्तु से नहीं ।
तब तुम्हें गहन विश्रांति का अनुभव होगा । और तुम्हारा एक अंश मिटने लगेगा । जो बोझ है  । और तुम समग्र में पिघलने लगोगे । यह वास्तव में रोग है । सही अर्थों में दिस ईज़ बोझ । यह रोग नहीं । अत: कोई चिकित्सक तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता । यह मात्र तुम्हारे दिल के तनाव की अवस्था है । जो अधिक से अधिक बांटना चाहता है । शायद तुम्हारे पास दूसरों से अधिक प्रेम है । शायद तुम उनसे अधिक भाग्यशाली हो । और शायद तुम अपने भाग्य में स्वयं ही दुख पैदा कर रहे हो । यह प्रेम किसे दूं । इस चिंता को छोड़ो । और प्रेम बांटो । बस बांटो । और तुम अपने भीतर असीम शांति व मौन का अनुभव करोगे । यही तुम्हारा ध्यान बन जाएगा । ध्यान में उतरने की विभिन्न दिशाएं हैं । और शायद तुम्हारी दिशा यही हो ।
सभी धर्म तुमसे अपने अहंकार को छोड़ने के बाबत कहते रहे हैं । लेकिन यह एक बड़ी विचित्र बात है । वे चाहते हैं । तुम अपना अहंकार छोड़ दो । और अहंकार सिर्फ परमात्मा की छाया की है । परमात्मा पूरे विश्व का अहंकार है । अहंकार तुम्हारा व्यक्तित्व है । धर्मों के अनुसार जैसे परमात्मा इस अस्तित्व का केंद्र है । इसी भांति अहंकार  तुम्हारे व्यक्तित्व और तुम्हारे मन का भी केंद्र है । वे सभी अहंकार को छोड़ने की बात कर रहे हैं । लेकिन यह तब तक नहीं छोड़ा जा सकता है । जब तक कि परमात्मा को ही न छोड़ दिया जाए । तुम एक छाया या प्रतिबिंब को तब तक नहीं छोड़ सकते । जब तक कि उसके प्रत्यक्ष स्रोत को ही नष्ट न कर दिया जाए । इसलिए सदियों से सभी धर्म यह निरंतर कहते आ रहे हैं कि तुम्हें अपने अहंकार से मुक्त हो जाना चाहिए । लेकिन ऐसा वे गलत कारणों से कह रहे हैं । वे सभी अहंकार छोड़ने के लिए इस लिए कह रहे हैं । ताकि तुम परमात्मा को समर्पित हो सको । जिससे तुम पुरोहितों को समर्पण कर सको । जिससे तुम किसी भी तरह के व्यर्थ के अंधविश्वासों । धर्मशास्रों और किसी भी भांति की विश्वास पद्धति के प्रति समर्पित हो सको ।
लेकिन अगर यह अहंकार परमात्मा का ही एक प्रतिबिंब है । तो तुम उसे छोड़ नहीं सकते । पूरे विश्व में सर्वत्र परमात्मा एक झूठ की भांति व्याप्त है । और इसी तरह तुम्हारे मन में भी अहंकार एक झूठ की भांति विद्यमान है । तुम्हारा मन अपने कद के अनुसार एक बड़े झूठ को प्रतिबिंबित कर रहा है । धर्मों ने मनुष्यता को एक बहुत बड़ी दुविधा में डाल रखा है । वे परमात्मा की प्रशंसा और अहंकार की निंदा किए चले जाते हैं । इसलिए लोग एक खंडित स्थिति में बने रहे । उनके विचारों कार्यों और अनुभवों के बीच कोई संबंध न रहा । और वे मानसिक रूप से रुग्ण हो गए । उन्होंने अहंकार को छोड़ने का कठोर प्रयास किया । लेकिन जितना वे छोडने का प्रयास करते । उसे छोड़ना उतना ही अधिक कठिन हो गया । क्योंकि उसे छोड़ने वाला था कौन ? अहंकार स्वयं अपने को छोड़ने का प्रयास कर रहा था । जो असंभव था । इसीलिए तथाकथित धार्मिक लोगों में  जो सबसे अधिक विनम्र होते हैं । उनमें भी अहंकार बहुत सूक्ष्म हो जाता है  । लेकिन वह गिरता नहीं है । तुम संतों की आंखों में देख सकते हो । महावीर ने जो कहा है । उसमें बदलने की कोई जगह नहीं है । कृष्ण ने जो कहा है । उसमें बदलने की कोई जगह नहीं है । बुद्ध ने जो कहा है । उसमें बदलने का कोई उपाय नहीं है । इसलिए कभी कभी पश्चिम के लोग चिंतित और विचार में पड़ जाते हैं कि महावीर को हुए 2500 साल हुए । क्या उनकी बात अभी भी सही है ? ठीक है उनका पूछना । क्योंकि 2500 साल में अगर दीए से हम सत्य को खोजते हों । तो 25000 बार बदलाहट हो जानी चाहिए । रोज नए तथ्य आविष्कृत होंगे । और पुराने तथ्य को हमें रूपांतरित करना पड़ेगा । लेकिन महावीर  बुद्ध या कृष्ण के सत्य रिविलेशन हैं । दीया लेकर खोजे गए नहीं । निर्विचार की कौंध । निर्विचार की बिजली की चमक में देखे गए । और जाने गए । उघाड़े गए सत्य हैं । जो सत्य महावीर ने जाना । उसमें महावीर एक एक कदम सत्य को नहीं जान रहे हैं । अन्यथा पूर्ण सत्य कभी भी नहीं जाना जा सकेगा । महावीर पूरे के पूरे सत्य को एक साथ जान रहे हैं । इस महावाक्य से मैं यह आपको कहना चाहता हूं कि इस छोटे से 2 वचनों के महावाक्य में पूरब की प्रज्ञा ने जो भी खोजा है । वह सभी का सब इकट्ठा मौजूद है । वह पूरा का पूरा मौजूद है । इसलिए भारत में हम निष्कर्ष पहले । कनक्लूजन पहले । प्रकिया बाद में । पहले घोषणा कर देते हैं । सत्य क्या है । फिर वह सत्य कैसे जाना जा सकता है । वह सत्य कैसे जाना गया है । वह सत्य कैसे समझाया जा सकता है । उसके विवेचन में पड़ते हैं । यह घोषणा है । जो घोषणा से ही पूरी बात समझ ले  शेष किताब बेमानी है । पूरे उपनिषद में अब और कोई नई बात नहीं कही जाएगी । लेकिन बहुत बहुत मार्गों से इसी बात को पुनः पुनः कहा जाएगा । जिनके पास बिजली कौंधने का कोई उपाय नहीं है । जो कि जिद पकड़कर बैठे हैं । कि दीए से ही सत्य को खोजेंगे । शेष उपनिषद उनके लिए है । अब दीए को पकड़कर  बाद की पंक्तियों में एक एक टुकड़े के सत्य की बात की जाएगी । लेकिन पूरी बात इसी सूत्र पर हो जाती है । इसलिए मैंने कहा कि यह सूत्र अनूठा है । सब इसमें पूरा कह दिया गया है । उसे हम समझ लें । क्या कह दिया गया है । कहा है कि पूर्ण से पूर्ण पैदा होता है । फिर भी पीछे सदा पूर्ण शेष रह जाता है । और अंत में  पूर्ण में पूर्ण लीन हो जाता है । फिर भी पूर्ण कुछ ज्यादा नहीं हो जाता है । उतना ही होता है । जितना था । यह बहुत ही गणित विरोधी वक्तव्य है  । बहुत एंटी मैथमेटिकल है । ओशो ।

कब्र ऐसी बनाई ही नहीं जाती

अगर एटम । एटम बहुत छोटी ताकत है । हमारे लिए बहुत बड़ी ताकत है । एक एटम 1 लाख 20000 आदमियों को मार पाया । हिरोशिमा और नागासाकी में । वह बहुत छोटी ताकत है । सूर्य के ऊपर जो ताकत है । उसका हम इससे कोई हिसाब नहीं लगा सकते । जैसे अरबों एटम बम एक साथ फूट रहे हों । उतनी रेडियो एक्टिविटी सूरज के ऊपर है । और असाधारण है यह । क्योंकि सूरज 4 अरब वर्षों से तो पृथ्वी को ही गर्मी दे रहा है । और उससे पहले से है ।
और अभी भी वैज्ञानिक कहते हैं कि कम से कम 4000 वर्ष तक तो । ठंडे होने की कोई संभावना नहीं है । प्रतिदिन इतनी गर्मी । और सूरज 10 करोड़ मील दूर है । पृथ्वी से । हिरोशिमा में जो घटना घटी । उसका प्रभाव 10 मील से ज्यादा दूर नहीं पड़ सका । 10 करोड़ मील दूर सूरज है । 4 अरब वर्षों से तो वह हमें सारी गर्मी दे रहा है । फिर भी अभी रिक्त नहीं हुआ है । पर यह सूरज कुछ भी नहीं है । इससे महासूर्य हैं । ये सब तारे हैं । जो आकाश के । और इन प्रत्येक तारों से । अपनी व्यक्तिगत और निजी क्षमता की सक्रियता हम तक प्रवाहित होती है ।
एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक । जो अंतरिक्ष में फैलती ऊर्जाओं के संबंध में अध्ययन कर रहा है । गाकलिन । उसका कहना है कि जितनी ऊर्जाएं हमें अनुभव में आ रही हैं । उनमें से हम 1% के संबंध में भी पूरा नहीं जानते । जबसे हमने कृत्रिम उपग्रह छोङे हैं । पृथ्वी के बाहर । तबसे उन्होंने हमें इतनी खबरें दी हैं कि हमारे पास न शब्द हैं । उन खबरों को समझने के लिए । न हमारे पास विज्ञान है । और इतनी ऊर्जाएं । इतनी एनर्जीज चारों तरफ बह रही होंगी । इसकी हमें कल्पना ही नहीं थी ।
इस संबंध में एक बात और खयाल में ले लेनी जरूरी है । इस जगत में । जैसा मैंने कल कहा । लोग सोचते हैं कि ज्योतिष कोई विकसित होता हुआ विज्ञान है । मैंने आपसे कहा । हालत उलटी है ।
ताजमहल अगर आपने देखा हो । तो यमुना के उस पार कुछ दीवारें आपको उठी हुई दिखाई पड़ी होंगी । कहानी यह है कि शाहजहां ने मुमताज के लिए तो ताजमहल बनवाया । और अपने लिए । जैसा संगमरमर का ताजमहल है । ऐसा ही अपनी कब्र के लिए संगमूसा का । काले पत्थर का महल । वह यमुना के उस पार बना रहा था । लेकिन वह पूरा नहीं हो पाया । ऐसी कथा सदा से प्रचलित थी । लेकिन अभी इतिहासज्ञों ने खोज की है । तो पता चला कि वह जो उस तरफ दीवारें उठी खड़ी हैं । वे किसी बनने वाले महल की दीवारें नहीं हैं  । वे किसी बहुत बड़े महल की । जो गिर चुका  खंडहर हैं । पर उठती दीवारें और खंडहर एक से मालूम पड़ सकते हैं । एक नये मकान की दीवार उठ रही है । अधूरी है अभी । मकान बना नहीं । हजारों साल बाद तय करना मुश्किल हो जाएगा कि यह नये मकान की बनती हुई दीवार है । या किसी बने बनाए मकान की । जो गिर चुका । उसकी बची खुची अवशेष है । खंडहर है ।
पिछले 300 । 400 । 500 सालों से यही समझा जाता था कि वह जो दूसरी तरफ महल खड़ा हुआ है । वह शाहजहां बनवा रहा था । वह पूरा नहीं हो पाया । लेकिन अभी जो खोजबीन हुई है । उससे पता चलता है कि वह महल पूरा था । और न केवल यह पता चलता है कि वह महल पूरा था । बल्कि यह भी पता चलता है कि ताजमहल शाहजहां ने खुद कभी नहीं बनवाया । वह भी हिंदुओं का बहुत पुराना महल है । जिसको सिर्फ कनवर्ट किया । जिसको सिर्फ थोड़ा सा फर्क किया । क्योंकि । और कई दफे इतनी हैरानी होती है कि जिन बातों को हम सुनने के आदी हो जाते हैं । फिर उनसे भिन्न बात को हम सोचते भी नहीं । ताजमहल जैसी एक भी कब्र दुनिया में किसी ने नहीं बनाई है । कब्र ऐसी बनाई ही नहीं जाती । कब्र ऐसी बनाई ही नहीं जाती । ताजमहल के चारों तरफ सिपाहियों के खड़े होने के स्थान हैं । बंदूकें और तोपें लगाने के स्थान हैं । कब्रों की बंदूकें और तोपें लगाकर कोई रक्षा नहीं करनी पड़ती । वह महल है पुराना । उसको सिर्फ कनवर्ट किया गया है । कब्र में । वह दूसरी तरफ भी एक पुराना महल है । जो गिर गया । जिसके खंडहर शेष रह गए ।
ज्योतिष भी खंडहर की तरह है । वह बहुत बड़ा महल था । पूरा विज्ञान था । जो ढह गया । कोई नयी चीज नहीं है । कोई नया उठता हुआ मकान नहीं है । लेकिन जो दीवारें रह गई हैं । उनसे कुछ पता नहीं चलता कि कितना बड़ा महल उसकी जगह रहा होगा । बहुत बार सत्य मिलते हैं । और खो जाते हैं ।
अरिस्टीकारस नाम के एक यूनानी ने जीसस से 200 । 300 वर्ष पूर्व यह सत्य खोज निकाला था कि सूर्य केंद्र है । पृथ्वी केंद्र नहीं है । अरिस्टीकारस का यह सूत्र । हेलियो सेंट्रिक कि सूरज केंद्र पर है । जीसस से 300 वर्ष पहले खोज निकाला गया था । लेकिन जीसस के 100 वर्ष बाद टोलिमी ने इस सूत्र को उलट दिया । और पृथ्वी को फिर केंद्र बना दिया । और फिर 2000 साल लग गए । केपलर और कोपरनिकस को खोजने में वापस कि सूर्य केंद्र है । पृथ्वी केंद्र नहीं है । 2000 साल तक अरिस्टीकारस का सत्य दबा पड़ा रहा । 2000 साल बाद जब कोपरनिकस ने फिर से कहा । तब अरिस्टीकारस की किताबें खोजी गईं । लोगों ने कहा यह तो हैरानी की बात है ।
अमरीका कोलंबस ने खोजा । ऐसा पश्चिम के लोग कहते हैं । एक बहुत प्रसिद्ध मजाक प्रचलित है । आस्कर वाइल्ड अमरीका गया हुआ था । उसकी मान्यता थी कि अमरीका और भी बहुत पहले खोजा जा चुका है । और यह सच है । यह सच्चाई है कि अमरीका बहुत दफे खोजा जा चुका । और पुनः पुनः खो गया । उससे संबंध सूत्र टूट गए । एक व्यक्ति ने आस्कर वाइल्ड को पूछा कि - हम सुनते हैं कि आप कहते हैं । अमरीका पहले भी खोजा जा चुका है । तो क्या आप नहीं मानते कि कोलंबस ने पहली खोज की ? और अगर कोलंबस ने पहली खोज नहीं की । तो अमरीका बार बार क्यों खो गया ?
तो आस्कर वाइल्ड ने मजाक में कहा कि - कोलंबस ने पुनः खोज की है । ही रि डिसकवर्ड अमेरिका । इट वाज़ डिसकवर्ड सो मेनी टाइम्स । बट एवरी टाइम हश्ड अप । हर बार दबाकर इसको चुप रखना पड़ा । क्योंकि यह उपद्रव । इसको बारबार हश्ड अप ।
इस संबंध में बहुत काम लारेंज नाम के एक वैज्ञानिक ने किया है । और उसका कहना है कि वह जो फर्स्ट मोमेंट एक्सपोजर है । वह बड़ा महत्वपूर्ण है । वह मां से इसीलिए संबंधित हो जाता है । मां होने की वजह से नहीं । फर्स्ट एक्सपोजर की वजह से । इसलिए नहीं कि वह मां है । इसलिए उसके पीछे दौड़ता है  । इसलिए कि वही सबसे पहले उसको उपलब्ध होती है । इसलिए पीछे दौड़ता है ।
अभी इस पर और काम चला है । जिन बच्चों को मां के पास बड़ा न किया जाए । वे किसी स्त्री को जीवन में कभी प्रेम करने में समर्थ नहीं हो पाते  । एक्सपोजर ही नहीं हो पाता । अगर एक बच्चे को उसकी मां के पास बड़ा न किया जाए । तो स्त्री का जो प्रतिबिंब । उसके मन में बनना चाहिए । वह बनता ही नहीं । और अगर पश्चिम में आज होमोसेक्सुअलिटी बढ़ती हुई है । तो उसके एक बुनियादी कारणों में वह कारण है । हेट्रोसेक्सुअल । विजातीय यौन के प्रति जो प्रेम है । वह पश्चिम में कम होता चला जा रहा है । और सजातीय यौन के प्रति प्रेम बढ़ता चला जा रहा है । जो विकृति है । लेकिन वह विकृति होगी । क्योंकि दूसरे यौन के प्रति जो प्रेम है । पुरुष का स्त्री के प्रति । और स्त्री का पुरुष के प्रति । वह बहुत सी शर्तों के साथ है । पहला तो एक्सपोजर जरूरी है । बच्चा पैदा हुआ है । तो उसके मन पर क्या एक्सपोज हो ।
अब यह बहुत सोचने जैसी बात है । दुनिया में स्त्रियां तब तक सुखी न हो पाएंगी । जब तक उनका एक्सपोजर मां के साथ हो रहा है । उनका एक्सपोजर पिता के साथ होना चाहिए । पहला इंपैक्ट लड़की के मन पर पिता का पड़ना चाहिए । तो ही वह किसी पुरुष को भरपूर मन से प्रेम करने में समर्थ हो पाएगी । अगर पुरुष स्त्री से जीत जाता है । तो उसका कुल कारण इतना है कि लड़के और लड़कियां दोनों ही मां के पास बड़े होते हैं । तो लड़के का एक्सपोजर तो बिलकुल ठीक होता है । स्त्री के प्रति  लेकिन लड़की का एक्सपोजर बिलकुल ठीक नहीं होता । इसलिए जब तक दुनिया में लड़की को पिता का एक्सपोजर नहीं मिलता । तब तक स्त्रियां कभी भी पुरुष के समकक्ष खड़ी नहीं हो सकेंगी । न राजनीति के द्वारा । न नौकरी के द्वारा । न आर्थिक स्वतंत्रता के द्वारा । क्योंकि मनोवैज्ञानिक अर्थों में एक कमी उनमें रह जाती है । वह अब तक की पूरी संस्कृति उस कमी को पूरा नहीं कर पाई है ।
अगर यह छोटा सा गुब्बारा । या मुर्गी । या मां । इनका एक्सपोजर प्रभावी हो जाता है । इतना ज्यादा कि चित्त सदा के लिए उससे निर्मित हो जाता है । ज्योतिष कहता है कि जो भी चारों तरफ मौजूद है । दि होल यूनिवर्स । वह सभी का सभी उस एक्सपोजर के क्षण में । उस चित्त के खुलने के क्षण में । भीतर प्रवेश कर जाता है । और जीवन भर की सिम्पैथीज और एंटीपैथीज निर्मित हो जाती हैं । उस क्षण जो नक्षत्र पृथ्वी को चारों तरफ से घेरे हुए हैं । नक्षत्र घेरे हुए हैं । उसका कुल मतलब इतना कि उस क्षण पृथ्वी के ऊपर जिन नक्षत्रों की रेडियो एक्टिविटी का प्रभाव पड़ रहा है ।
अब वैज्ञानिक मानते हैं कि प्रत्येक ग्रह की रेडियो एक्टिविटी अलग है । जैसे वीनस । उससे जो रेडियो सक्रिय तत्व हमारी तरफ आते हैं । वे चांद के रेडियो सक्रिय तत्वों से भिन्न हैं । या जैसे ज्युपिटर । उससे जो रेडियो तत्व हम तक आते हैं । वे सूर्य के रेडियो तत्वों से भिन्न हैं । क्योंकि इन प्रत्येक ग्रहों के पास अलग तरह की गैसों । और अलग तरह के तत्वों का वातावरण है । उन सबसे अलग अलग प्रभाव पृथ्वी की तरफ आते हैं । और जब एक बच्चा पैदा हो रहा है । तो पृथ्वी के चारों तरफ क्षितिज को घेरकर खड़े हुए जो भी नक्षत्र हैं ग्रह हैं । उपग्रह हैं । दूर आकाश में महा तारे हैं । वे सबके सब उस एक्सपोजर के क्षण में बच्चे के चित्त पर । गहराइयों तक प्रवेश कर जाते हैं । फिर उसकी कमजोरियां । उसकी ताकतें  । उसका सामर्थ्य  सब सदा के लिए प्रभावित हो जाता है ।
अब जैसे हिरोशिमा में एटम बम के गिरने के बाद पता चला । उसके पहले पता नहीं था । हिरोशिमा में एटम जब तक नहीं गिरा था । तब तक इतना खयाल था कि एटम गिरेगा । तो लाखों लोग मरेंगे । लेकिन यह पता नहीं था कि पीढ़ियों तक आने वाले बच्चे प्रभावित हो जाएंगे । हिरोशिमा और नागासाकी में जो लोग मर गए । मर गए । वह तो एक क्षण की बात थी । समाप्त हो गए । लेकिन हिरोशिमा में जो वृक्ष बच गए । जो जानवर बच गए । जो पक्षी बच गए । जो मछलियां बच गईं । जो आदमी बच गए । वे सदा के लिए प्रभावित हो गए ।
अब वैज्ञानिक कहते हैं कि दस पीढ़ियों में हमें पूरा अंदाज लग पाएगा कि क्या क्या परिणाम हुए । क्योंकि इनका सब कुछ रेडियो एक्टिविटी से प्रभावित हो गया । अब जो स्त्री बच गई है ।उसके शरीर में जो अंडे हैं । वे प्रभावित हो गए । अब वे अंडे  कल उनमें से एक अंडा बच्चा बनेगा । वह बच्चा वैसा ही बच्चा नहीं होगा । जैसा साधारणतः होता है । क्योंकि एक विशेष तरह की रेडियो सक्रियता उस अंडे में प्रवेश कर गई है । वह लंगड़ा हो सकता है । लूला हो सकता है । अंधा हो सकता है । उसकी चार आंखें भी हो सकती हैं । आठ हाथ भी हो सकते हैं । कुछ भी हो सकता है । अभी हम कुछ भी नहीं कह सकते कि वह कैसा होगा । उसका मस्तिष्क बिलकुल रुग्ण भी हो सकता है । प्रतिभाशाली भी हो सकता है । वह जीनियस भी पैदा हो सकता है । जैसा जीनियस कभी पैदा न हुआ हो । अभी हमें कुछ भी पता नहीं कि वह क्या होगा । इतना पक्का पता है कि जैसा होना चाहिए था । साधारणतः आदमी । वैसा वह नहीं होगा ।

तुम ऐसे घर में रह रहे थे जो था ही नहीं

सदगुरु 1 मित्र की भांति कार्य करता है । वह तुम्हारा हाथ पकडकर । तुम्हें ठीक मार्ग पर ले जाता है । तुम्हारी आंखें खोलने में । तुम्हारी सहायता करता है । और वह तुम्हें । मन के पार । जाने में सहायता देता है । तभी तुम्हारी । तीसरी आंख खुलती है । तब तुम । अपने अंदर । देखना शुरू करते हो । 1 बार तुम । अपने अंदर । देखने लगते हो । फिर । सदगुरु का कार्य । समाप्त हो जाता है । अब यह । तुम पर ही । निर्भर करता है । तुम अपने मन । और अमन के । छोटे से अंतराल को । 1 क्षण में । अत्यंत तीवृता से । और शीघ्रता से । लांघ सकते हो । या फिर तुम । बहुत धीमे धीमे । झिझकते । और रुकते हुए । यात्रा कर सकते हो । इस बात से डरते हुए कि तुम । अपने मन पर । और अपनी निजता पर । अपनी पकड खोते जा रहे हो । और कि सभी सीमाएं खोती जा रही हैं । तुम क्या कर रहे हो ? तुम क्षण भर के लिए । यह सोच सकते हो कि इससे सब कुछ समाप्त हो सकता है । या तुम । फिर मन में । वापस लौटने में । समर्थ न हो सकोगे । और कौन जानता है कि आगे क्या होने जा रहा है ? सब कुछ । विलुप्त होते जा रहा है । यदि तुम । विलुप्त होने वाली । वस्तुओं पर । बहुत अधिक । ध्यान दे रहे हो ।  तो तुम । भय के कारण । रुक सकते हो । सदगुरु । तुम्हारी चेतना को । उन चीजों पर । केंद्रित करने को कहता है । जो तुम्हें घट रही है । न कि उन चीजों पर । जो खोती जा रही है । वह तुम्हें । बरसते अनुग्रह । और आनंद की ओर । तुम पर उतरते । मौन की ओर । मस्ती की ओर । देखने का आग्रह करता है । वह कहता है । उस उतरती । शांति की ओर देखो ।  उस प्रसन्नता । और परमानंद को निहारो । वह निरंतर । इसी बात पर बल देता है कि जो घट रहा है । उसे देखो । और उन चीजों की ओर । जो मिटती । और खोती । जा रही हैं  जैसे विषाद । निराशा । और दुख ।  उनकी ओर । ध्यान ही मत दो । जो खोता जा रहा है । वह रखने योग्य । है भी नहीं । बस उसी की ओर । देखे चले जाओ । जो शून्यता 0 से । प्रकट हो रहा है । तो तुम साहस बटोरते हो । अधिक साहसी बनते हो । तुम जानते हो कि कुछ भी । गलत होने वाला नहीं है । गति के । हर इंच के साथ ही । कुछ महान घटना घट रही है । और अंत में । जैसे ही तुम । अपने अंतरतम के । प्रामाणिक स्त्रोत में । प्रवेश करते हो । जो तुम्हारे केंद्र में । प्रवेश करते हो । पूरा अस्तित्व । तुम पर गिर पडता है । जैसा मरने से पहले कबीर ने कहा था । समुंद समाना बुंद में । 1 बार । तुमने । इस परमानंद  मस्ती । और इस दिव्यखुमारी का । अनुभव ले लिया । फिर । निजता की परवाह । कौन करता है ? आत्मा की । कौन परवाह करता है ? इस आत्मभाव ने तुम्हें । सिवाय विषाद । और सिवाय नर्क के । दिया ही क्या है ? और यह शून्यता इतनी निर्मल है । बिना सीमाओं के । पहली बार । तुम अनंतता । शाश्वतता । का अनुभव करते हो । और अस्तित्व के । रहस्यों के । सभी द्वार । अचानक । तुम्हारे लिए खुल जाते है । और फिर । द्वार पर द्वार । खुलते ही जाते है । इस यात्रा का । कही कोई अंत नहीं है । यह अंतहीन तीर्थयात्रा है । तुम हमेशा पहुंच रहे हो । बस पहुंच ही रहे हो ।  लेकिन तुम । पहुंचते कभी नहीं । लेकिन प्रत्येक क्षण । तुम अनुग्रह में । परमानंद में । और सत्य में । गहरे । और गहरे । डूबते चले जाते हो । और कही कोई । पूर्ण विराम नहीं है । झेन की यह घोषणा । अत्यंत आवश्यक है । क्योंकि सभी पुराने धर्म । बिखरते जा रहे हैं । और इससे पहले कि वे पूरी तरह से । नष्ट हो जाएं । और पूरी मनुष्यता विक्षिप्त हो जाए । झेन को । पूरी पृथ्वी पर । चारों ओर । फैल जाना चाहिए । इससे पहले कि । पुराना घर ध्वस्त हो । तुम्हें नया घर बना लेना है । और इस बार फिर । वही गलती मत करना । तुम ऐसे घर में रह रहे थे । जो था ही नहीं । इसीलिए तुम । वर्षा । सर्दी । और गर्मी के । सभी दुख । और संताप । झेल रहे थे । क्योंकि घर तो केवल । 1 कल्पना मात्र था । इस बार वास्तव में । अपने मूल घर में । प्रवेश करो । न कि किसी । मनुष्य निर्मित मंदिर में । या मनुष्य निर्मित । किसी धर्म में । तुम अपने ही । अस्तित्व में । प्रवेश करो । निरंतर । कार्बन कापी बनने से । क्या लाभ ? यह समय । अत्यधिक मूल्यवान है । तुम्हारा जन्म । 1 बहुत ही सौभाग्यशाली क्षण में । हुआ है  जबकि पुराने धर्मों ने । अपनी सार्थकता । और अपने होने का । प्रमाण खो दिया है  जबकि पुराना । 1 खोखले ढांचे की भांति । तुम्हारे चारों ओर । लटका हुआ झूल रहा है । क्योंकि तुम । उसकी कैद से । मुक्त होने का साहस । नहीं जुटा पा रहे हो । नहीं तो । द्वार खुले ही हुए हैं । सच तो यह है कि कभी । द्वार थे ही नहीं । क्योंकि जिस घर में । तुम रह रहे हो । वह पूरी तरह काल्पनिक है । तुम्हारे परमात्मा । और सारे देवता । काल्पनिक हैं । तुम्हारे पवित्र शास्त्र । कल्पित हैं । इस बार । उसी गलती को । दोहराना नहीं है । यही वह समय है । जब मनुष्यता को । पुराने । सडे गले झूठों से ।  1 नूतन । शाश्वत सत्य की ओर । एक समग्र । छलांग लगानी है । ओशो । दि झेन मैनिफेस्टो पुस्तक से ।

जो व्यक्ति वर्तमान में होना चाहता है

अतीत जा चुका । और भविष्य अभी आया नहीं । दोनों ही दिशाओं को अस्तित्व नहीं है । उधर जाना बेवजह है । कभी एक दिशा होती थी । लेकिन अब नहीं है । और एक अभी होना शुरू भी नहीं हुई है । सही व्यक्ति सिर्फ वही है । जो क्षण क्षण जीता है । जिसका तीर क्षण की तरफ होता है ।  जो हमेशा अभी और यहां है । जहां कहीं वह है । उसकी संपूर्ण चेतना । उसका पूर्ण होना । यहां के यथार्थ । और अभी के यथार्थ में होता है । यही एकमात्र सही दिशा है । सिर्फ ऐसा ही व्यक्ति स्वर्ण द्वार में प्रवेश कर सकता है । वर्तमान ही वह स्वर्ण द्वार है । यहां अभी स्वर्ण द्वार है । और तुम तभी वर्तमान में हो सकते हो । जब तुम महत्वाकांक्षी नहीं हो । कुछ पाने की इच्छा नहीं रखते ।  शक्ति  धन सम्मान  बुद्धत्व तक भी को पाने की कोई चाह नहीं । क्योंकि सभी महत्वाकांक्षाएं तुम्हें भविष्य में ले जाती हैं ।
सिर्फ गैर महत्वाकांक्षी व्यक्ति । वर्तमान में हो सकता है । जो व्यक्ति वर्तमान में होना चाहता है । उसे सोचना नहीं चाहिए । वह सिर्फ द्वार को देखे । और प्रवेश कर जाए । अनुभव होगा  परंतु अनुभव के बारे में पहले से सोचना नहीं चाहिए । जैसे यह व्यक्ति पत्थरों पर चलता है । वह हल्के से और गैर गंभीरता से कदम उठाता है । और इसी के साथ पूरी तरह से संतुलित और सजग । वर्तुलाकार घूमते हुए सतत प्रवाहमान पानी के पीछे । हम इमारतों के आकार देख सकते हैं । प्रतीत होता है कि पृष्ठभूमि में कोई शहर है । व्यक्ति बीच बाजार में है । लेकिन साथ ही इसके बाहर भी है । अपना संतुलन बनाए हुए है । और साक्षी होने में समर्थ है । यह कार्ड हमें चुनौती देता है कि हम जो दूसरे स्थल और समय के बारे में सोचते रहे हैं । उससे बाज आएं । और इस बात के प्रति सजग रहें कि अभी और यहां क्या हो रहा है । जीवन एक महान अवसर है । जहां आप खेल सकते हैं । यदि आप अपने मूल्यांकन । चुनाव । और अपने लंबे समय की योजनाओं से मोह छोड़ दें । जो आपकी राह में आता है । जैसे आता है । उसके लिए उपलब्ध रहें । और चिंता ना लें । यदि आप ठोकर खाते हैं । या गिर जाते हैं । बस अपने को उठा लें । धूल झाड़ लें । ठठाकर हंस लें । और फिर चल पड़ें । ओशो । दि ग्रेट झेन मास्टर ।

और अकेलापन तकलीफ देता है

सदियों से यह बार बार कहा जाता है । सारे धार्मिक लोग यह कहते रहे हैं । हम इस जगत में अकेले आए हैं । और हम अकेले जाएंगे ।  सारा साथ होना माया है । साथ होने का विचार ही इस कारण आता है । क्योंकि हम अकेले हैं । और अकेलापन तकलीफ देता है । हम अपने अकेलेपन को रिश्ते में डुबो देना चाहते हैं । इसी कारण हम प्रेम में इतना उलझ जाते हैं । इस बिंदु को देखने की कोशिश करो । सामान्यतया तुम सोचते हो कि तुम पुरुष या स्त्री के प्रेम में पड़ गए । क्योंकि वह सुंदर है । यह सत्य नहीं है । सत्य इसके ठीक विपरीत है । तुम प्रेम में पड़े । क्योंकि तुम अकेले नहीं रह सकते । तुम्हें गिरना ही पड़ेगा । तुम अपने को इस या उस तरह से टालने ही वाले थे । और यहां ऐसे लोग हैं । जो स्त्री या पुरुष के प्रेम में नहीं पड़ते । तब वे धन के प्रेम में पड़ते हैं । वे धन की तरफ या शक्ति की तरफ जाने लगते हैं । वे राजनेता बन जाते हैं । वह भी तुम्हारे अकेलेपन को टालना है । यदि तुम मनुष्य को देखो । यदि तुम स्वयं को गहराई से देखो । तुम आश्चर्यचकित होओगे । तुम्हारी सारी गतिविधियों को 1 अकेले स्रोत में सिकोड़ा जा सकता है । स्रोत यह है कि तुम अपने अकेलेपन से डरते हो । बाकी सारी बातें तो बहाने मात्र हैं । वास्तविक कारण यह है कि तुम अपने को बहुत अधिक अकेला पाते हो ।
किसी मोहित करने वाली शाम को आप अपने हमसफर से मिलने वाले हैं । 1 पूर्ण व्यक्ति जो आपकी सारी जरूरतों को तृप्त करेगा । और आपके सपनों को पूरा करेगा । ठीक ? गलत । गीत लिखने वाले । और कवि जो फंतासी पालते हैं । उसकी जड़ें गर्भ में होती हैं । जहां हम बहुत सुरक्षित । और मां के साथ एक थे ।  इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि हम अपने पूरे जीवन में उसी स्थल पर जाने की चाह रखते हैं । लेकिन । यदि कोरा सच कहा जाए । तो यह बचकाना सपना है । और यह विस्मयकारी है कि हम हकीकत के सामने बड़ी ज़िद से अडे रहते हैं । कोई भी वह वर्तमान में आपका साथी हो । या भविष्य में होने वाला सपनों का राजकुमार ।  आपको थाल में खुशियां परोसने के लिए बाध्य नहीं है । और न ही वे चाहकर भी ऐसा कर नहीं सकते । असली प्रेम हमारी जरूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर होने से नहीं आता । बल्कि हमारी अपनी भीतरी समृद्धि और प्रौढ़ता को विकसित करने से आता है । तब हमारे पास इतना प्रेम होता है । देने के लिए कि हम स्वतः ही प्रेमियों को अपनी तरफ खींचते हैं ।
परमात्मा पर 1 छलांग और लगानी पड़ेगी । वहां तर्क सारा तोड़ देना पड़ेगा । परमात्मा यानी अस्तित्व, जो है । सिर्फ है । इज़नेस होना जिसका गुण है । हम कुछ भी करें । उसके होने में कोई अंतर नहीं पड़ता । इसे वैज्ञानिक किसी और ढंग से कहते हैं । वे कहते हैं । हम किसी चीज को नष्ट नहीं कर सकते । इसका मतलब हुआ कि हम किसी चीज को है पन के बाहर नहीं निकाल सकते । अगर हम 1 कोयले के टुकड़े को मिटाना चाहें । तो हम राख बना लेंगे । लेकिन राख रहेगी । हम उसे चाहे सागर में फेंक दें । वह पानी में घुलकर डूब जाएगी । दिखाई नहीं पड़ेगी । लेकिन रहेगी । हम सब कुछ मिटा सकते हैं । लेकिन उसकी इज़नेस । उसके होने को नहीं मिटा सकते । उसका होना कायम रहेगा । हम कुछ भी करते चले जाएं । उसके होने में कोई अंतर नहीं पड़ेगा । होना बाकी रहेगा । हां । होने को हम शकल दे सकते हैं । हम हजार शकलें दे सकते हैं । हम नए नए रूप । और आकार दे सकते हैं । हम आकार बदल सकते हैं । लेकिन जो है । उसके भीतर । उसे हम नहीं बदल सकते । वह रहेगा । कल मिट्टी थी । आज राख है । कल लकड़ी थी । आज कोयला है । कल कोयला था । आज हीरा है । लेकिन है में कोई फर्क नहीं पड़ता ।  है कायम रहता है । परमात्मा का अर्थ है । सारी चीजों के भीतर जो है पन । वह जो इज़नेस । जो एक्झिस्टेंस है । जो अस्तित्व है । होना है - वही । कितनी ही चीजें बनती चली जाएं । उस होने में कुछ जुड़ता नहीं । और कितनी ही चीजें मिटती चली जाएं । उस होने में कुछ कम होता नहीं । वह उतना का ही उतना । वही का वही । अलिप्त । और असंग । अस्पर्शित । नहीं । पानी पर भी हम रेखा खींचते हैं । तो कुछ बनता है । मिट जाता है । बनते ही । लेकिन परमात्मा पर । इस सारे अस्तित्व से । इतनी भी रेखा नहीं खिंचती । इतना भी नहीं बनता है । इसलिए उपनिषद का यह वचन कहता है कि पूर्ण से । उस पूर्ण से । यह पूर्ण निकला । उस पूर्ण से । यह पूर्ण निकला । वह अज्ञात है । यह ज्ञात है । जो हमें दिखाई पड़ रहा है । वह उससे निकला । जो नहीं दिखाई पड़ रहा है । जिसे हम जानते हैं । वह उससे निकला । जिसे हम नहीं जानते हैं । जो हमारे अनुभव में आता है । वह उससे निकला । जो हमारे अनुभव में नहीं आता है । ओशो । ईशावास्य उपनिषद पुस्तक से ।

90 वर्ष में सूर्य बिलकुल बूढ़ा हो जाता है

अगर वृक्ष इतने संवेदनशील हैं । और sun पर होती हुई कोई भी घटना को इतनी व्यवस्था से अंकित करते हैं । तो क्या आदमी के चित्त में भी कोई पर्त होगी ? क्या आदमी के शरीर में भी कोई संवेदना का सूक्ष्म रूप होगा ? क्या आदमी भी कोई रिंग और वर्तुल निर्मित करता होगा । अपने व्यक्तित्व में ?
अब तक साफ नहीं हो सका । अभी तक वैज्ञानिकों को साफ नहीं है कोई बात कि आदमी के भीतर क्या होता है । लेकिन यह असंभव मालूम पड़ता है कि जब वृक्ष भी सूर्य पर घटती घटनाओं को संवेदित करते हों तो आदमी किसी भांति संवेदित न करता हो ।
ज्योतिष । जो जगत में कहीं भी घटित होता है । वह मनुष्य के चित्त में भी घटित होता है । इसकी ही खोज है । इस पर हम पीछे बात करेंगे कि मनुष्य भी वृक्षों जैसी ही खबरें अपने भीतर लिए चलता है । लेकिन उसे खोलने का ढंग उतना आसान नहीं है । जितना वृक्ष को खोलने का ढंग आसान है । वृक्ष को काटकर जितनी सुविधा से हम पता लगा लेते हैं । उतनी सुविधा से आदमी को काटकर पता नहीं लगा सकते हैं । आदमी को काटना सूक्ष्म मामला है । और आदमी के पास चित्त है । इसलिए आदमी का शरीर उन घटनाओं को नहीं रिकार्ड करता । चित्त रिकार्ड करता है । वृक्षों के पास चित्त नहीं है । इसलिए शरीर ही उन घटनाओं को रिकार्ड करता है ।
1 और बात इस संबंध में खयाल ले लेने जैसी है । जैसा मैंने कहा कि प्रति 11 वर्ष में sun पर तीवृ रेडियो एक्टिविटी । तीवृ वैद्युतिक तूफान चलते हैं । ऐसा प्रति 11 वर्ष पर एक रिदम है । ठीक ऐसा ही 1 दूसरा बड़ा रिदम भी पता चलना शुरू हुआ है । वह है 90 वर्ष का । sun के ऊपर । और वह और हैरान करने वाला है । और यह जो मैं कह रहा हूं । ये सब वैज्ञानिक तथ्य हैं । ज्योतिषी इस संबंध में कुछ नहीं कहते हैं । लेकिन मैं इसलिए यह कह रहा हूं कि इनके आधार पर ज्योतिष को वैज्ञानिक ढंग से समझना आपके लिए आसान हो सकेगा । 90 वर्ष का 1 दूसरा वर्तुल है । जो कि अनुभव किया गया है । उसके अनुभव की कथा बड़ी अदभुत है ।
फैरोह ने इजिप्त में आज से 4000 साल पहले अपने वैज्ञानिकों को कहा कि नील नदी में जब भी पानी घटता है । बढ़ता है । उसका पूरा ब्योरा रखा जाए । और अकेली नील 1 ऐसी नदी है । जिसकी 4000 वर्ष की बायोग्राफी है । और किसी नदी की कोई बायोग्राफी नहीं है । उसकी जीवन कथा है पूरी । कब उसमें इंच भर पानी बढ़ा है । तो उसका पूरा रिकार्ड है - 4000 वर्ष । फैरोह के जमाने से लेकर आज तक ।
फैरोह का अर्थ होता है - सूर्य । इजिप्त की भाषा में । फैरोह । जो इजिप्त का सम्राट अपना नाम रखता था । वह सूर्य के आधार पर था । और इजिप्त में ऐसा खयाल था कि सूर्य और नदी के बीच निरंतर संवाद है । तो फैरोह । जो कि सूर्य का भक्त था । उसने कहा कि नील का पूरा रिकार्ड रखा जाए । सूर्य के संबंध में तो हमें अभी कुछ पता नहीं है । लेकिन कभी तो सूर्य के संबंध में भी पता हो जाएगा । तब यह रिकार्ड काम दे सकेगा । तो 4000 साल की पूरी कथा है । नील नदी की । उसमें इंच भर पानी कब बढ़ा । इंच भर कब कम हुआ । कब उसमें पूर आया । कब पूर नहीं आया । कब नदी बहुत तेजी से बही । और कब नदी बहुत धीमी बही । इसका 4000 वर्ष का लंबा इतिहास इंच इंच उपलब्ध है ।
इजिप्त के 1 विद्वान तस्मान ने पूरे नील की कथा लिखी । और अब सूर्य के संबंध में वे बातें ज्ञात हो गईं । जो फैरोह के वक्त ज्ञात नहीं थीं । और जिनके लिए फैरोह ने कहा था । प्रतीक्षा करना । इन 4000 साल में जो कुछ भी नील नदी में घटित हुआ है । वह सूरज से संबंधित है । और 90 वर्ष की रिदम का पता चलता है । हर 90 वर्ष में सूर्य पर 1 अभूतपूर्व घटना घटती है । वह घटना ठीक वैसी ही है । जिसे हम मृत्यु कह सकते हैं । या जन्म कह सकते हैं ।
ऐसा समझ लें कि सूर्य 90 वर्ष में 45 वर्ष तक जवान होता है । और 45 वर्ष तक बूढ़ा होता है । उसके भीतर जो ऊर्जा के प्रवाह बहते हैं । वे 45 वर्ष तक जो जवानी की तरफ बढ़ते हैं । क्लाइमेक्स की तरफ जाते हैं । सूरज जैसे जवान होता चला जाता है । और 45 साल के बाद ढलना शुरू हो जाता है । उसकी उमृ जैसे नीचे गिरने लगती है । और 90 वर्ष में सूर्य बिलकुल बूढ़ा हो जाता है । 90 वर्ष में जब सूर्य बूढ़ा होता है । तब सारी पृथ्वी भूकंपों से भर जाती है । भूकंपों का संबंध 90 वर्ष के वर्तुल से है । सूर्य उसके बाद फिर जवान होना शुरू होता है । वह बड़ी भारी घटना है । क्योंकि सूरज पर इतना परिवर्तन होता है कि पृथ्वी उससे कंपित हो जाए । यह बिलकुल स्वाभाविक है । लेकिन जब पृथ्वी जैसी महाकाय वस्तु भूकंपों से भर जाती है । तो आदमी जैसी छोटी सी body में कुछ नहीं होता होगा ? पृथ्वी जैसी महाकाय वस्तु । जब सूरज पर परिवर्तन होते हैं । तो कंपित हो जाती है । भूकंपों से भर जाती है । तो आदमी जैसी छोटी सी काया में कुछ भी न होता होगा । ज्योतिषी सिर्फ यही पूछते रहे हैं । वे कहते हैं । यह असंभव है । पता हो तुम्हें या न पता हो । लेकिन आदमी की body भी अछूती नहीं रह सकती । ओशो ।

दुनिया में केवल 3 अदभुत किताबें हैं

P D आस्पेंस्की ने 1 किताब लिखी है । किताब का नाम है - टर्शियम आर्गानम । किताब के शुरू में उसने 1 छोटा सा वक्तव्य दिया है । P D आस्पेंस्की रूस 1 एक बहुत बड़ा गणितज्ञ था । बाद में पश्चिम के 1 बहुत अदभुत फकीर गुरजिएफ के साथ वह 1 रहस्यवादी saint हो गया । लेकिन उसकी समझ math की है । गहरे गणित की । उसने अपनी इस अदभुत किताब के पहले ही 1 वक्तव्य दिया है । जिसमें उसने कहा है कि दुनिया में केवल 3 अदभुत किताबें हैं - 1 किताब है अरिस्टोटल की । पश्चिम में जो तर्कशास्त्र का पिता है । उसकी उस किताब का नाम है - आर्गानम । आर्गानम का अर्थ होता है । ज्ञान का सिद्धांत ।
फिर आस्पेंस्की ने कहा है कि दूसरी महत्वपूर्ण किताब है - रोजर बैकन की । उस किताब का नाम है - नोवम आर्गानम - ज्ञान का नया सिद्धांत । और तीसरी किताब वह कहता है । मेरी है ।  खुद उसकी । उसका नाम है - टर्शियम आर्गानम - ज्ञान का तीसरा सिद्धांत । और इस वक्तव्य को देने के बाद उसने 1 छोटी सी पंक्ति लिखी है । जो बहुत हैरानी की है । उसमें उसने लिखा है - बिफोर दि फर्स्ट एक्झिस्टेड । दि थर्ड वाज़ । इसके पहले कि पहला सिद्धांत दुनिया में आया । उसके पहले भी तीसरा था । पहली किताब लिखी है । अरस्तू ने 2000 साल पहले । दूसरी किताब लिखी है । 300 साल पहले बैकन ने । और तीसरी किताब अभी लिखी गई है । कोई 40 साल पहले । लेकिन आस्पेंस्की कहता है कि पहली किताब थी दुनिया में उसके पहले तीसरी किताब मौजूद थी । और तीसरी किताब उसने अभी 40 साल पहले लिखी है ।
जब भी कोई उससे पूछता कि यह क्या पागलपन की बात है ? तो आस्पेंस्की कहता कि यह जो मैंने लिखा है । यह मैंने नहीं लिखा । यह मौजूद था । मैंने सिर्फ उदघाटित किया है । न्यूटन नहीं था । तब भी जमीन में ग्रेविटेशन था । तब भी जमीन पत्थर को ऐसे ही खींचती थी । जैसे न्यूटन के बाद खींचती है । न्यूटन ने ग्रेविटेशन के सिद्धांत को रचा नहीं । उघाड़ा । जो ढंका था । उसे खोला । जो अनजाना था । उसे परिचित बनाया । लेकिन न्यूटन से बहुत पहले ग्रेविटेशन था । नहीं तो न्यूटन भी नहीं हो सकता था । ग्रेविटेशन के बिना तो न्यूटन भी नहीं हो सकता । न्यूटन के बिना ग्रेविटेशन हो सकता है ।
जमीन की कशिश न्यूटन के बिना हो सकती है । लेकिन न्यूटन जमीन की कशिश के बिना नहीं हो सकता । न्यूटन के पहले भी जमीन की कशिश थी । लेकिन जमीन की कशिश का पता नहीं था । आस्पेंस्की कहता है कि उसका तीसरा सिद्धांत पहले सिद्धांत के भी पहले मौजूद था । पता नहीं था । यह दूसरी बात है । और पता नहीं था । यह कहना भी शायद ठीक नहीं । क्योंकि आस्पेंस्की ने अपनी पूरी किताब में जो कहा है, वह इस छोटे से सूत्र में आ गया है । आस्पेंस्की की टर्शियम आर्गानम जैसी बड़ी कीमती किताब ।
मैं भी कहता हूं कि उसका दावा झूठा नहीं है । जब वह कहता है कि दुनिया में 3 महत्वपूर्ण किताबें हैं और तीसरी मेरी है । तो किसी अहंकार के कारण नहीं कहता । यह तथ्य है । उसकी किताब इतनी ही कीमती है । अगर वह न कहता । तो वह झूठी विनमृता होती । वह सच कह रहा है । विनमृतापूर्वक कह रहा है । यही बात ठीक है । उसकी किताब इतनी ही महत्वपूर्ण है । लेकिन उसने जो भी कहा है । पूरी किताब में । वह इस छोटे से सूत्र में आ गया है ।
उसने पूरी किताब में यह सिद्ध करने की कोशिश की कि दुनिया में 2 तरह के गणित हैं । 1 गणित है । जो कहता है । 2 और दो 4 होते हैं । साधारण गणित है । हम सब जानते हैं । साधारण गणित कहता है कि अगर हम किसी चीज के अंशों को जोड़ें । तो वह उसके पूर्ण से ज्यादा कभी नहीं हो सकते । साधारण गणित कहता है । अगर हम किसी चीज को तोड़ लें । और उसके टुकड़ों को जोड़ें । तो टुकड़ों का जोड़ कभी भी पूरे से ज्यादा नहीं हो सकता है । यह सीधी बात है । अगर हम 1 रुपए को तोड़ लें । 100 नए पैसे में । तो 100 नए पैसे का जोड़ रुपए से ज्यादा कभी नहीं हो सकता । या कि कभी हो सकता है ?
अंश का जोड़ कभी भी अंशी से ज्यादा नहीं हो सकता । यह सीधा सा गणित है । लेकिन आस्पेंस्की कहता है । 1 और गणित है । हायर मैथमेटिक्स । 1 और ऊंचा गणित भी है । और वही जीवन का गहरा गणित है । वहां 2 और 2 जरूरी नहीं है कि 4 ही होते हों । कभी वहां 2 और दो 5 भी हो जाते हैं । और कभी वहां 2 और दो 3 भी रह जाते हैं । और वह कहता है कि कभी कभी अंशों का जोड़ पूर्ण से ज्यादा भी हो जाता है ।
दुनिया में अब तक धार्मिक क्रांतियां हुई हैं । 1 धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोग हो गए । कभी समझाने बुझाने से हुए । कभी तलवार छाती पर रखने से हो गए । लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा । हिंदू मुसलमान हो जाए । तो वैसे का वैसा आदमी रहता है । मुसलमान ईसाई हो जाए । तो वैसा का वैसा आदमी रहता है । कोई फर्क नहीं पड़ा । धार्मिक क्रांतियों से । राजनैतिक क्रांतियां हुई हैं । 1 सत्ताधारी बदल गया । दूसरा बैठ गया । कोई जरा दूर की जमीन पर रहता है । वह बदल गया । तो जो पास की जमीन पर रहता है । वह बैठ गया । किसी की चमड़ी गोरी थी । वह हट गया । तो किसी की चमड़ी काली थी । वह बैठ गया । लेकिन भीतर का सत्ताधारी । वही का वही है । आर्थिक क्रांतियां हो गई हैं । दुनिया में । मजदूर बैठ गए । पूंजीपति हट गए । लेकिन बैठने से मजदूर पूंजीपति हो गया । पूंजीवाद चला गया । तो उसकी जगह मैनेजर्स आ गए । वे उतने ही दुष्ट । उतने ही खतरनाक । कोई फर्क नहीं पड़ा । वर्ग बने रहे । पहले वर्ग था । जिसके पास धन है - वह । और जिसके पास धन नहीं है - वह । अब वर्ग हो गया - जिसमें धन वितरित किया जाता है - वह । और जो धन वितरित करता है - वह । जिसके पास ताकत है । स्टेट में जो है - वह । राज्य में जो है - वह । और राज्यहीन जो है - वह । नया वर्ग बन गया । लेकिन वर्ग कायम रहा । अब तक इन 5 - 6 हजार वर्षों में जितने प्रयोग हुए हैं । मनुष्य के लिए । कल्याण के लिए । सब असफल हो गए । अभी तक 1 प्रयोग नहीं हुआ है । वह है शिक्षा में क्रांति । वह प्रयोग शिक्षक के ऊपर है कि वह करे । और मुझे लगता है । यह सबसे बड़ी क्रांति हो सकती है । शिक्षा में क्रांति । सबसे बड़ी क्रांति हो सकती है । राजनीतिक । आर्थिक । या धार्मिक । कोई क्रांति का इतना मूल्य नहीं है । जितना शिक्षा में क्रांति का मूल्य है । लेकिन शिक्षा में क्रांति कौन करेगा ? वे विद्रोही लोग कर सकते हैं । जो सोचें । विचार करें । हम यह क्या कर रहे हैं ? और इतना तय समझ लें कि जो भी आप कर रहे हैं । वह जरूर गलत है । क्योंकि उसका परिणाम गलत है । यह जो मनुष्य पैदा हो रहा है । यह जो समाज बन रहा है । यह जो युद्ध हो रहे हैं । यह जो सारी हिंसा चल रही है । यह जो सफरिंग इतनी दुनिया में है । इतनी पीड़ा । इतनी दीनता । दरिद्रता है । यह कहां से आ रही है ? यह जरूर हम जो शिक्षा दे रहे हैं । उसमें कुछ बुनियादी भूलें हैं । तो यह विचार करें । जागें । लेकिन आप तो कुछ और हिसाब में पड़े रहते होंगे । ओशो ।

शनिवार, अगस्त 13, 2011

भविष्य के सपनों का रहस्य

काफ़ी पहले की बात है । कौशल राज्य के राजा बिम्बसार ने 1 रात को कुछ विचित्र सपने देखे । राजा को उन विचित्र सपनों का अर्थ बिलकुल भी समझ में नहीं आया । और उन्हें बेहद डर लगा कि कहीं इन अशुभ जैसे लगते सपनों का अर्थ भयंकर विपत्तिसूचक और विनाशकारी न हो । इसलिए सुबह होते ही उन्होंने अपने राज्य के सभी विद्वान दरबारियों को उन खास सपनों का रहस्य जानने के लिये बुलाया ।
तब वे सभी दरबारी राजा का भय जानकर बहुत खुश हुये । उन्होंने सोचा कि राजा से अधिक से अधिक धन ऐंठने का यह 1 सुनहरा मौक़ा है । यही सोचकर दरबारियों  ने तय किया कि राजा को इन सपनों का ऐसा अर्थ बतायेंगे । जिससे उनका पूरा पूरा धन लाभ हो ।
इसलिए उन सबने राजा से कहा - महाराज ! इन सपनों का अर्थ तुरन्त तो नहीं बताया जा सकता । हम इससे सम्बन्धित गृन्थों ( स्वपन विचार आदि ) को पढ़कर इनका सही अर्थ निकालेंगे । इसलिए कृपया आप हमें 2-4 दिन का समय दें
यह सुनकर राजा ने उन दरबारियों को 1 सप्ताह की मोहलत दी । 1 सप्ताह के बाद । वे सब दरबारी राजा के पास जाकर बोले - महाराज ! हम सबने आपके देखे

सपनों पर कई गृन्थों की सहायता से शोध किया है । और अन्त में इस निर्णय पर पहुँचे कि - ये सभी सपने किसी विपत्ति के सूचक हैं । यानी आपके परिवार और राज्य में कोई अनर्थ होने वाला है ।
यह सुनकर राजा बैचैन हो गया । और बोला - इस विपत्ति को रोकने का कोई उपाय तो अवश्य होगा ? आप लोग इस पर विचार करके हमें बताईये ।
तब उन दरबारियों ने कहा  - जी महाराज ! इस विपत्ति को टालने का 1  उपाय है । आप देश के हर चौराहे पर यज्ञ करायें । और यज्ञ पूर्ण होने पर दरबारियों को भोज और मुँहमाँगा पुरुस्कार पदवी आदि दें । इस प्रकार पुण्य यग्य से आने वाली आपत्ति टल जायेगी । और पूरे देश का कल्याण भी होगा ।
तब घवराये राजा बिम्बसार ने उन चालाक दरबारियों के कहे अनुसार कोषाध्यक्ष को यज्ञ कराने का आदेश दिया ।
लेकिन राजा बिम्बसार की रानी बड़ी बुद्धिमान थीं । उसने राजा से कहा - राजन आप शीघ्रता में इन सपनों के बारे में कोई निर्णय न करें । वास्तव में ये दरबारी विद्वान नहीं मालूम पङते । लेकिन समस्त विद्याओं के जानकार भगवान बुद्ध आजकल जेठवन में ठहरे हुये हैं । आप उनके पास जाकर अपने सपनों का हाल कहें । और वे जैसा कहें । वैसा ही करें ।
राजा को रानी की यह बात उचित ही लगी । वे स्वयं अधिकारियों के साथ जेठवन गये । और बुद्ध को सादर अपने महल में निमंत्रित किया ।
फ़िर बुद्ध के पधारते ही राजा ने कहा - भगवान ! आप सर्वज्ञ हैं । ग्यानी हैं । मैंने कुछ अजीव से सपने देखे हैं । और इस कारण मुझे बहुत चिंता है । आप कृपया इन सपनों का अर्थ बताकर आने वाली विपत्ति से मेरी और प्रजा की रक्षा करें  ।

बुद्ध मुस्कराते हुये बोले - राजन ! आप अपने सपनों के बारे में बताईये । फिर मैं उनका रहस्य बताऊँगा ।
तब राजा ने अपना सपना सुनाया - हे भगवन ! पहले मैंने 4 भैंसें देखे । वे 4 भैंसें रंभाते और लड़ते हुये राजमहल में घुस आये । कई लोग उन भैसों की लड़ाई देखने के लिए वहाँ एकत्र हो गये । परन्तु भैंसें लड़ना छोड़कर अलग अलग रास्ते पर चले गये । इसका क्या मतलब है भगवन ?
बुद्ध बोले - इस सपने का अर्थ है कि आपके वंश के बाद के राजा पापी होंगे । उनके राज्य काल में आसमान के बादल बिना वर्षा किये लौट जायेंगे । जिससे जनता को घोर निराशा का सामना करना होगा ।

तब राजा ने दूसरा सपना बताया - भगवन ! मैंने 1 और भी विचित्र सपना देखा कि छोटे पौधों में ही पूरी ऊँचाई तक बढ़े बिना मंजरी और फल भी लगे देखे । इसका क्या रहस्य है प्रभु ?
बुद्ध बोले - यह स्वप्न भी उसी युग से सम्बन्ध रखता है । उस युग में लड़कियों के बाल विवाह होंगे । और वयस्क होने के पूर्व ही वे माँ बन जायेंगी ।
फ़िर राजा ने कहा - भगवान ! मैंने बछड़ों से गायों को दूध पीते भी देखा ।
बुद्ध फ़िर से बोले - आने वाले युग में वृद्ध लोग अपना पेट भरने के लिए अपने छोटों पर निर्भर होंगे ।
राजा ने अगले सपने के बारे में बताया - मैंने देखा । किसान हलों में बैलों की जगह बछड़ों को बाँध रहे हैं ।
बुद्ध बोले - उस युग में राजा योग्य अनुभवी मंत्रियों को हटाकर अनुभव हीन और अयोग्य व्यक्तियों को उनके स्थान पर नियुक्त करेंगे ।
राजा ने कहा - इसके बाद मैंने खुली जगह पर 1 विचित्र घोड़ा देखा । उसके दोनों तरफ़ मुँह थे । वह दोनों मुँहों से दाना खा रहा था । इस विचित्र सपने का क्या रहस्य है ?
बुद्ध ने कहा - यह स्वप्न बड़ा अर्थपूर्ण है । राजन ! इस सपने का अर्थ यह है कि आने वाले युग में न्यायाधीश निष्पक्ष न्याय नहीं करेंगे । और दोनों पक्षों से रिश्वत लेंगे । फिर भी वे किसी के प्रति भी न्याय नहीं करेंगे ।
तब राजा बोला - 1 आदमी 1 रस्सा बाँट रहा था । रस्सा बाँटने के बाद बँटे हुए हिस्से को नीचे गिराता जा रहा था । उस आदमी की आँख बचाकर 1 मादा सियार नीचे पङे बँटे रस्से को चबाती जा रही थी ।

बुद्ध ने इस सपने का अर्थ बताया - आने वाले युग में पाप बढ़ जाने से बहुत अधिक लोग दरिद्र हो जायेंगे । पति का कड़ी मेहनत का धन । उनकी पत्नियाँ तुरन्त खर्च कर देंगी ।
फ़िर राजा ने खुश होकर 1 अन्य सपने के बारे में बताया -  मैंने राजमहल के पास जल से भरा 1 घड़ा देखा । उसके चारों तरफ़ कई और खाली घङे थे । वहाँ पर सभी जाति वर्ण के लोग पानी भर कर ला रहे थे । और भरे हुए घड़े में डाल रहे थे । जबकि भरा हुआ घड़ा पहले ही छलक रहा था । खाली घड़े में कोई पानी नहीं डाल रहा था । आ़खिर ऐसा क्यों ?
बुद्ध बोले - भविष्य में अन्याय और अधर्म बढेगा । प्रजा कठिन परिश्रम से धन कमाकर राजा के भय से खज़ाने में डाल देगी । जहाँ पहले ही बहुत धन भरा होगा । लेकिन प्रजा के घर खाली घड़ों की भाँति खाली रहेंगे ।
राजा बोला - 1 अन्य स्वप्न में मैंने 1 पात्र में कुछ अनाज पकते हुये देखा । लेकिन अन्न समान रूप में नहीं पक रहा था । पात्र के 1 हिस्से में तो अन्न पककर गल चुका था । जबकि दूसरे हिस्से का अन्न ठीक से पका हुआ था । और 1 और हिस्से का तो अन्न कच्चा ही था ।
तब बुद्ध बोले - भविष्य में खेती बाड़ी कुछ ऐसी ही होगी । कुछ लोग भविष्य में अति बरसात से पीड़ित रहेंगे । और कुछ हिस्सों में सूखा पड़ेगा ।
अपना 1 और स्वप्न बताते हुये राजा बोला - मैंने स्वपन कुछ लोगों को गली गली घूमकर चन्दन बेचकर धन लेते हुये देखा ।
बुद्ध बोले - इसका अर्थ यह है कि आने वाले युग में नीच व्यक्ति धर्म का उपदेश देकर तुच्छ भौतिक सुख प्राप्त करेंगे ।

फ़िर राजा बोला - मैंने 1 सपना और देखा । पानी पर पत्थर तैर रहे थे । और राजहंसों का 1 झुण्ड कौओं के पीछे रेंग रहा था । 1 अन्य स्थान पर कुछ बकरियों को बाघ को मारकर भी खाते देखा ।
बुद्ध ने कहा - भविष्य में बड़े बड़े महात्मा भी समाज में अनादरित होकर समय के बहाव में पत्थरों की तरह वह जायेंगे । नीच लोगों के हाथ में शासन होने के कारण राजहंस जैसे सन्त कौओं के समान दुष्ट लोगों के  चिन्हों पर चलेंगे । दुष्ट व्यक्तियों के हाथों में अधिकार आ जाने से सात्विक गुण वाले व्यक्ति भी उनसे भयभीत रहेंगे । इतना ही नहीं । वे नीच व्यक्ति अवसर पाकर अच्छे व्यक्तियों का अन्त भी कर देंगे ।
बुद्ध के इन सारयुक्त वचनों से राजा बिम्बसार के सभी सन्देह दूर हो गये । साथ ही उनका भय और चिन्ता भी दूर हो गई । वे समझ गये कि दरबारियों ने अपने स्वार्थ के कारण ऐसा परामर्श दिया था । उन्होंने यज्ञ  का विचार छोड़ दिया । और महात्मा बुद्ध को भोजन आदि के उपरांत उन्हें आदर के साथ विदा किया ।

गुरुवार, अप्रैल 28, 2011

मैं तो बस सपनों में जी रहा हूँ

बात सुन ले लाला ! मैं मजाक नहीं कर रहा । मैं तेरे को 1 फोटो भेज रहा हूँ । ये फोटो कल तक मेरे ई-मेल के उत्तर के साथ लेख में छपनी चाहिये । अगर फ़ोटो के साथ काट-छाँट की । तो { अपशब्द } तोड दूँगा । छोङूँगा नहीं । पूरी फ़ुल फोटो छापना । ताकि लोगो को पता चले कि " श्री विनोद त्रिपाठी जी " की पसन्द कितनी धमाकेदार और पटाकेदार है ।
अब मैं आता हूँ । असली पोइन्ट पर । मेरा सवाल ये है बनारसी बाबू कि ये जो फोटो में माल है । मैं ऐसे माल के साथ अगले जनम में शादी करना चाहता हूँ । इस जनम में हो नही सकती । क्युँ कि उमर 50 के आसपास है । और मैं इतना अमीर भी नही कि दूसरी शादी कर लूँ ।
 मेरी धर्मपत्नी बेचारी ( अब मैं कहूँ कि ना कहूँ.....रहने ही देता हूँ ) कसम सब्जी मन्डी की । आज तक बिल्कुल सुख नही मिला । मेरी पत्नी की शकल ( क्या बताऊँ.... बस लानत है ) और न बेचारी के पीछे कोई गोलाई है । और ना ही सामने मलाई है । मैं तो ससुर प्यासा ही रह गया ।
कसम सबजी मन्डी की । मैं तो बस सपनों में जी रहा हूँ । इसलिये मेरे लाला । ये बता कि मैं ऐसा कौन सा काम करुँ । या ऐसा कौन सा पुन्य करुँ । या ऐसी कौन सी साधना करुँ । ताकि मुझे अगले जनम में इस फोटो में जो लडकी है । ऐसी पत्नी या माशुका मिले । क्या ऐसी पत्नी या माशुका के लिये द्वैत साधना ठीक रहेगी ? या अद्वैत साधना ठीक रहेगी ?  जरा खुलकर पोस्टर छाप दे ।
कल..मेरा मतलब कल रविवार है । मुझे भी छुटी है । इसलिये कल तक मेरी इस समस्या का समाधान कर दे । मैं तरस रहा हूँ । प्यार करने के लिये । आशिकी ने बरबाद कर दिया । ये इश्क बडा बेदर्दी है । मुझको लगती सर्दी है । बस कल तक मेरे इस जवाब रुपी बम्ब को अपनी तोप रुपी सवाल से उडा दे । और सुन ले भालु । अगर मेरे मैसेज मे कोई काट-छाँट की । तो फ़िर ( अब मैं कहूँ कि ना कहूँ....समझ गये न )

- ये एक प्रोफ़ेसर का ई मेल है । { जैसा कि इन्होंने स्वयँ मुझे ई मेल द्वारा बताया । } कोई भी सोच सकता है । इस मेल का क्या उत्तर दिया जा सकता है । साधना करना लोग हँसी मजाक समझते हैं । वास्तविक साधना तो पहले चरण में कामवासना कामभावना के त्याग की जोरदार माँग करती है ।

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अच्छी पत्नी । सर्वांग सुन्दर पत्नी । बच्चे । परिवार । धन आदि का मिलना सभी कुछ इस जन्म के पुण्यकर्म । धर्म । दान । परोपकार आदि पर निर्भर होता है । जैसा बोओगे । वैसा काटोगे । वाला ही नियम है । भक्ति से भी भाग्य बनता है । लेकिन इससे पहले जो बुरे कर्म हो चुके हैं । उसका भोग के रूप में एक लम्बा निपटारा करना होता है ।

*** ये इनके द्वारा भेजी गयी फ़ोटो नहीं है । नेट पर आते ही  किसी भी फ़ोटो की आटोमेटिक एक नम्बर ID बन जाती है । और बहुत से फ़ोटो कापीराइट होते है । अतः किसी भी प्रकार का झमेला हो सकता है । और दूसरी बात इंटरनेट का क्राल ऐसी ID को पहचान कर बिना किसी चेतावनी के ब्लाग को डिलीट कर देता है । ये सिस्टम फ़ुल्ली आटोमेटिक है । अतः नेट की फ़ोटो छापना खतरनाक हो सकता है ।
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