शनिवार, जून 26, 2010

पिंडी चक्रों को जानें ..?

आईये पिंडी चक्रों के बारे में भी कुछ जानें । पिंड हमारे शरीर को कहते हैं । और आँखो के नीचे से पैर तक के शरीर को पिंड कहा गया है । इनमें स्थिति चक्रों को जाने । कुन्डलिनी आदि साधनाओं में हमारा वास्ता इन चक्रों से पङता है ।
1-- मूलाधार या गुदाचक्र-- इसका स्थान गुदा और लिंग के मध्य है । इसकी आकृति चार दल के कमल की है । इसका रंग लाल है । इसका देवता गणेश है । इसका जाप शब्द " कलिंग " है । यहाँ स्वांसो की गिनती
1600 है ।
2--स्वाधिष्ठान या इन्द्रियचक्र--इसका स्थान लिंग है । इसकी आकृति छह दल का कमल है ।इसका रंग सोने जैसा पीला है । इसका देवता ब्रह्मा तथा सावित्री है । इसका जाप शब्द " हरिंग " है । स्वांस की गिनती 6000 है ।
3-- मणिपूरक या नाभिचक्र --इसका स्थान नाभि है । इसकी आकृति दस दल का कमल है । इसका रंग नीला है । इसका देवता विष्णु तथा लक्ष्मी है । इसका जाप शब्द " शरिंग " है । स्वांस 6000 है ।
4--- अनाहत या ह्रदयचक्र---इसका स्थान ह्रदय है । इसकी आकृति बारह दल का कमल है । इसका रंग सफ़ेद है । इसके देवता शिव पार्वती हैं ।इसका जाप शब्द " ॐ " है । स्वांस 6000 है ।
5-- विशुद्ध या कंठचक्र-- इसका स्थान कंठ है । इसकी आकृति सोलह दल का कमल है । इसका रंग चन्द्रमा
के समान सफ़ेद है । इसका देवता दुर्गा देवी या इच्छा शक्ति है । इसका जाप शब्द " सोहंग " है । स्वांस 1000 है ।
6--आग्याचक्र या दिव्यनेत्र या तीसरा नेत्र या शिव नेत्र इसी को कहते है---इसका स्थान आँखो के मध्य है ।इसकी आकृति दो दल का कमल है । इसका रंग ज्योति के समान है । इसका देवता परमात्मा है । इसका जाप शब्द " शिवोsहं " है । स्वांस 1000 है ।
7--सहस्त्रदल कमल-- इसका स्थान भृकटि के मध्य है । इसकी आकृति हजार दल का कमल है । इसका रंग सफ़ेद है । इसका देवता ज्योति निरंजन है । इसका शब्द जाप ( ? ) है । स्वांसो की गिनती 21600 है । यानी छह चक्रों की कुल संख्या का योग है । यहाँ तक पिंडी चक्रों का वर्णन पूरा हुआ । इसके ऊपर ब्रह्माण्ड देश की सीमा शुरु होती है ।
विशेष चेतावनी-- ऊपर दिये गये मन्त्र आदि वर्णन से किसी प्रकार का ध्यान या जाप आदि करने की चेष्टा न करें । ये कुन्डलिनी आदि ग्यान मजाक नहीं है । बिना सच्चे संत की शरण में जाय । इस प्रकार की चेष्टा से कोई लाभ तो नहीं होगा । हानि बहुत होगी । ये वर्णन मात्र भारत की अदभुत और आत्म ग्यान रूपी धरोहर के प्रति जनसामान्य की रुचि जाग्रत करने हेतु है । और ये वर्णन न सिर्फ़ संक्षिप्त है । बल्कि कुछ गूढ बातों का खुलासा यहाँ नहीं हैं । इसलिये " मनमुखी " प्रक्टीकल से बचें । ऐसा आग्रह किया जाता है ।
शब्द----इसके ऊपर यानी यहाँ से " ब्रह्माण्ड देश " की सीमा शुरु होती है । यहाँ से दो आवाजें आसमानी निकलती हैं । अर्थात यहीं से " शब्द " प्रकट होता है । जिसको सुरती शब्द साधना में " शब्द " कहा गया है ।
सुरती किसे कहते हैं ----अंतकरण में मन , बुद्धि , चित्त , अहम चार छिद्र होते हैं । जिनसे हम संसार को जानते और कार्य करते हैं । मन शब्द प्रचलन में अवश्य है । पर इसका वास्तविक नाम " अंतकरण " है । ये चारों छिद्र कुन्डलिनी क्रिया द्वारा जब एक हो जाते हैं तब उसको सुरती कहते है । इसी " एकीकरण " द्वारा प्रभु को जाना जा सकता है । अन्य कोई दूसरा मार्ग नहीं हैं । यही सुरती प्रकट हुये शब्द को पकङकर ऊपर चङती है ।इस तरह हमने पिंड के चक्रों के बारे में जाना । इसके आगे ब्रह्माण्ड देश और चक्रों आदि का वर्णन किया जायेगा । कृपया इस जानकारी का उपयोग सिर्फ़ अपनी पुरातन परम्परा को जानने हेतु ही करें ।

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