रविवार, जून 27, 2010

सहज समाधि और सुरति की यात्रा..

इन स्थानों की यात्रा पूरी करती हुयी सुरति " भंवर गुफ़ा " में पहुँचती है । वहाँ एक " चक्र " है । जिसको झूला भी कहते हैं । वह हर समय घूमता रहता है । सुरति वहाँ सदैव झूलती रहती है । इसके इधर उधर " अनन्त चेतन दीप " बने हुये हैं । उन दीपों से " सोहंग " की आवाज उठ रही है । सुरति और हंस उन
धुनों से विलास कर रहे हैं । ये सभी वर्णन सांकेतिक रूप में किये जाते है । वास्तविक शोभा का वर्णन करना बेहद कठिन कार्य है । साधक या अभ्यासी को चाहिये । कि गुरु की बताई युक्ति पर चले । यही शुद्ध अभ्यास है । आसमानी झूला की सैर के बाद सुरति और आगे की तरफ़ चली । तो दूर से चन्दन की
अति मनमोहक खुशबू अनन्त सुगन्ध उसे महसूस हुयी । इस स्थान पर " बाँसुरी " की अनन्त धुन भी हो रही है । इस धुनि और सुगन्ध का आनन्द लेती हुयी सुरति और आगे बङी । और इस मैदान के आगे पहुँची । तो उसे " सतलोक " की सीमा दिखाई दी । वहाँ पर " तत्सत " की आवाज भी सुनाई देती है । और अनेक तरह के बीन बाजा वाधयन्त्र सुनाई पङते है । उनको सुनती हुयी । मस्ती में झूमती हुयी सुरति आगे चली । तो अनेक नहरें और सुन्दर दृश्य उसको दिखाई दिये । करोङ योजन ऊँचाई वाले वृक्षों के बाग उसको दिखाई दिये । उन वृक्षों पर करोङों सूर्य चन्द्रमा और अनेकानेक फ़ल फ़ूल
लगे हुये थे । सुरति उन पेङों पर पक्षियों के समान किलोल करती है । इन सब दृश्यों को देखती हुयी सुरति " सतलोक " पहुँची । और " सतपुरुष " का दर्शन पाया । सतपुरुष का एक एक रोम इतना प्रकाशवान है । कि करोङों सूर्य और चन्द्रमा उसके आगे लज्जित हैं । जब एक रोम की महिमा ऐसी है । तो सारे शरीर की शोभा का वर्णन कैसे किया जाय । स्वर्ण नेत्र नासिका हाथ पैर आदि की अतुलनीय शोभा है । जो अवर्णनीय ही है । वहाँ ज्योति प्रकाश का अथाह सागर ठाठे मार रहा है । एक " पद्मपालिंग " का विस्तार है । तीन लोक का " एक पालिंग " होता है । इस तरह उसकी पूरी लम्बाई चौङाई का वर्णन असंभव ही है । यहाँ पवित्र सुरति जिसको " हंस " भी कहते हैं । अपना निवास करती है । उसे " वीणा " की आवाज सुनाई देती है । अमृत ही उसका भोजन है । इस स्थान की शोभा देखकर सुरति " अलख लोक " में पहुँची । इस लोक का विस्तार असंख्य महापालिंग है । अनेकों अरब खरब सूर्यों का प्रकाश उस अलख पुरुष के रोम रोम से निकलता है । वहाँ से आगे चलकर सुरति " अगम लोक " में पहुँची । वहाँ के हंसो का स्वरूप भी अदभुत है । यहाँ से सुरति " अनामी लोक " में पहुँचकर अनामी पुरुष का दर्शन करती है । अब वह उसमें समा गयी । जो बेअन्त है । संतो का यही निज स्थान है । इस स्थान को पाकर संत शांत और मौन हो जाते हैं । यही सत्य है । यही सत्य है । यही सत्य है ।

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