शनिवार, जून 26, 2010

एकोह्म द्वितीयोनास्ति ना भूतो ना भविष्यति


कहते हैं कि हरेक काम का समय निश्चित होता है । हमें ऐसा भ्रम अवश्य हो जाता है । कि वो काम हमने किया । ये काम उसने किया । पर मुझे तो लगता है । कि वास्तविक करने वाला कोई और ही है । हम तो सिर्फ़ निमित्त मात्र है । मैं आपको सच्चे दिल से एक अनुभव बताना चाहता हूँ । कि तमाम लोगों से सतसंग करने के बाद जब कभी उनका अपने प्रति आदर भाव देखकर मेरे मन में भी " अहम "
हो जाता है । कि मैं कितना बङा ग्यानी हूँ ? पर कहते हैं कि प्रभु अपने भक्तों का मान हरण करने में क्षण की देर नहीं लगाते ( ताकि उनका भक्त कहीं " पथभ्रष्ट " न हो जाय ) । तो उसी समय ऐसा होता है । कि एक छोटा बालक या निपट अनपढ ( जिसको संसार के लोग गंवार भी कहते हैं । ) भी मेरे सामने ऐसी विलक्षण बात कहता है । कि मुझे एकदम उसका कोई उत्तर तक नहीं सूझता । और मेरा सारा अभिमान चूर चूर हो जाता है । पर उस समय मैं तिलमिलाने के बजाय प्रभु की अपने ऊपर इस अपार कृपा को अनुभव कर गदगद हो उठता हूँ । प्रेम से मेरे आँसू निकल आते है । और मुझे स्मरण हो आता है । चींटी से लेकर कुंजर तक । तुच्छ से लेकर विराट तक प्रभु आप ही आप हो ।
आप कण कण में हो । ग्यान ध्यान सब भरम ही तो है । स्त्री पुत्र , कुटुम्ब . परिवार , धन , वैभव सब माया का भुलावा ही तो है । शाश्वत सत्य तो प्रभु स्वयं आप हो । और आप आप ही आप हो । आप के सिवाय दूसरा कोई भी
तो नहीं है । " एकोह्म द्वितीयोनास्ति ना भूतो ना भविष्यति " प्रभु ये आप के ही वचन हैं । कि एक मैं ही सर्वत्र हूँ । दूसरा कोई नहीं । न भूतकाल में था । न भविष्य में होगा । तो ये मेरा अभिमान ही तो है । गुरु भी आप ही है । शिष्य भी आप ही है । भक्त भी आप ही हैं । भगवान भी आप ही है । आप ही सुन रहे हैं । आप ही सुना रहें हैं ।
मैं लगभग तीन महीने से ब्लाग और इंटरनेट पर हूँ । तीन महीने में 100 से अधिक लोगों से सम्पर्क हुआ । जो अध्यात्म ग्यान में रुचि रखते हैं । या किसी प्रकार की वास्तविक साधना । फ़लदायी साधना के इच्छुक थे । मैंने उन्हें जितना जानता था । उतना हरसंभव बताया । जिन लोगों ने " गुरुदेव " से मिलने की इच्छा व्यक्त की । उन्हें गुरुदेव से मिलाया । कुछ लोग जो विदेश या दूरस्थ प्रान्तों में थे । उनका फ़ोन द्वारा समाधान किया । और जब तक वो मिलने में असमर्थ हैं । फ़ौरी तौर पर उन्हें कुछ सरल मन्त्र आदि दिये । जिनका वे बताये अनुसार अपनी श्रद्धा से जप आदि कर रहें हैं । और परिणाम स्वरूप उनके तीन या चार दिन बाद ही आने वाले मेल और फ़ोन संदेश इस बात की सूचना दे रहे हैं । कि वे अपने में परिवर्तन महसूस कर रहे हैं । और वाँछित दिशा या दशा की और तेजी से
बङ रहे हैं ।
यह सब चल ही रहा था । कि न्यूयार्क ( अमेरिका ) निवासी श्री त्रयम्बक उपाध्याय , साफ़्टवेयर इंजीनियर ने मेरा ध्यान इस बात की तरफ़ दिलाया । कि मैंने अपने ब्लाग्स में गुरुजी या अलौकिक ग्यान साधनाओं के बारे में तो विस्तार से लिखा है । पर श्री महाराज जी का फ़ोटो नहीं प्रकाशित किया । मुझे ये बात उचित लगी । और मैंने " श्री महाराज जी का संक्षिप्त परिचय और तस्वीर " नामक पोस्ट यथाश्रीघ्र प्रकाशित की । मैंने ऊपर लिखा है । मैं या त्रयम्बक या अन्य ये सब निमित्त मात्र ही तो हैं । वास्तविक लीला तो प्रभु की ही है । गुरुदेव की तस्वीर प्रकाशित होते ही कुछ लोग जो वास्तविक ग्यान की तलाश में थे । उनके कम्प्यूटर पर मेरा ब्लाग मामूली प्रयास से ही खुल गया ।
जबकि इससे पहले वे मेरे ब्लाग से अपरचित थे । ऐसे ही कुछ नये प्रेमीजनों ने बताया । कि महाराज जी की तस्वीर देखते ही वो अजीब सा लगाव अजीब सा प्रेम महसूस करने लगे । क्योंकि उसी पोस्ट में मैंने श्री महाराज जी का न. 0 9639892934 भी प्रकाशित किया था । अतः लोगों ने सीधे ही महाराज से बात कर अपनी शकाओं का समाधान किया । और महाराज जी की दिव्यवाणी शीतल वचनों से आनन्द महसूस किया । तथा शाश्वत सत्य का मार्ग भी जाना । और कई लोग उस आनन्द मार्ग के पथिक बन चुके हैं । इसके विपरीत कुछ लोग जो महाराज जी से सीधे बात करने में संकोच का अनुभव करते थे । और मेरे ब्लाग से या मुझसे भावनात्मक रूप से जुङे हुये हैं । जिनमें कुछ ब्लागर भी हैं । उन्होनें मुझसे अध्यात्म समाधान हेतु प्रश्न किये । और संभवतः उन्हें मेरे उत्तर ने संतुष्ट किया होगा । क्योंकि उनमें से कुछ लोग मुझसे सरल मन्त्र लेकर गुरुजी की छवि को ह्रदय में धारण कर शाश्वत उपासना मार्ग पर चल दिये हैं । मैंने पहले ही कहा था । हम सब निमित्त मात्र हैं । वास्तविक कृपा तो प्रभु की है । वह जब और जैसा मार्ग उचित होता है । भक्त की भावना के अनुसार उसको मिला देते हैं ।

1 टिप्पणी:

bhagat ने कहा…

आपके ब्लॉग पर आकर रूह को शुकून आता है,
कुछ देर के लिए अनजाना भय रफूचक्कर हो जाता है,
आत्म विश्वास जो जीवन की भाग दोड़ में खो गया है,
कुछ देर के लिए हम पर मेहरवान हो जाता है.
-भगत सिंह पंथी

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