रविवार, नवंबर 20, 2011

जब तक तुम स्वयं एक कमल की तरह ही न खिलो

तुमने बहुत सी स्वतंत्रताओं के बारे में सुना होगा । राजनीतिक स्वतंत्रता । मनोवैज्ञानिक स्वतंत्रता ।  आर्थिक स्वतंत्रता ।  स्वतंत्रताएं कई तरह की होती हैं । लेकिन अंतिम स्वतंत्रता है । झेन ।, स्वयं स्वतंत्र होना । इसे एक विश्वास की भांति स्वीकार नहीं करना है । इसका अनुभव करना है । केवल तभी तुम उसे जानोगे । यह एक स्वाद है । कोई भी व्यक्ति चीनी का वर्णन करते हुए कह सकता है कि वह मीठी होती है ।, लेकिन यदि तुमने कभी चीनी को चखा नहीं है  । तो तुम  मीठा शब्द तो सुनते हो  । लेकिन तुम समझते नहीं  कि वह क्या होता है । केवल एक ही उपाय है कि कोई आदमी तुम्हारे मुंह में बरबस कोई मीठी चीज डाल दे ।
झेन में सदगुरु का कार्य होता है । तुम्हारे अनुभव में शून्यता को शामिल करना ।  या दूसरे शब्दों में कहा जाए । तो तुम्हें तुम्हारी शून्यता के सम्मुख लाना । सदगुरु विधियां खोजता है ।  और जब वे पुरानी और घिसी पिटी हो जाती हैं । तो वह उन्हें छोडकर फिर नए उपाय और नई विधियां तलाशता है ।
लेकिन इस बात को हुए 25 शताब्दियां गुजर गई । जब गौतम बुद्ध ने बिना एक शब्द कहे महाकाश्यप को कमल का फूल दिया था । और उस सभा में कहा था ।  जो कुछ कहा जा सकता था । वह मैंने तुमसे कह दिया । जो नहीं कहा जा सकता था ।  यद्यपि मैं उसे भी अभिव्यक्त करना चाहता हूं ।  लेकिन जो कतई संभव नहीं है ।  वह मैं महाकाश्यप को हस्तांतरित कर रहा हूं ।
वह कमल का फूल तो केवल एक प्रतीक था ।  जब तक तुम स्वयं एक कमल की तरह ही न खिलो ।  जिसके पत्तों पर सुबह के सूरज में ओस कण मोतियों की भांति चमकते हैं ।  यह एक जलते दीये का हस्तांतरण है ।  इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता । महाकाश्यप पहली बार बुद्ध के निकट आया ।  उनके चरण स्पर्श किए ।  उनसे कमल का फूल लिया । और लौटकर वृक्ष के नीचे जाकर मौन बैठा रहा । महाकाश्यप ही झेन का प्रथम कुलपति है । इसलिए झेन की परंपरा ।  झेन का परिवार एक शाखा है ।  बौद्ध धर्म की एक मौन शाखा । वे लोग गौतम बुद्ध से प्रेम करते हैं ।  क्योंकि वास्तव में झेन का जन्म उनकी शून्यता से हुआ । उन्होंने उसे महाकाश्यप को हस्तांतरित किया । और फिर यह महाकाश्यप का दायित्व हो गया कि वह उन लोगों को खोजे । जिन्हें यह संपदा सौंपी जा सकती हो ।
इसलिए 25 शताब्दियों पूर्व ।  उस क्षण से वह हस्तांतरित होती रही । बिना किन्हीं सुनिश्चित साधनों के ।  बिना किसी भाषा के ।  सदगुरु से शिष्य को ।  किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा । जो अपने घर वापस लौट आया था ।  उस व्यक्ति को । जो चारों ओर भटकता हुआ । अपना मार्ग नहीं खोज पा रहा था ।

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