तुमने बहुत सी स्वतंत्रताओं के बारे में सुना होगा । राजनीतिक स्वतंत्रता । मनोवैज्ञानिक स्वतंत्रता । आर्थिक स्वतंत्रता । स्वतंत्रताएं कई तरह की होती हैं । लेकिन अंतिम स्वतंत्रता है । झेन ।, स्वयं स्वतंत्र होना । इसे एक विश्वास की भांति स्वीकार नहीं करना है । इसका अनुभव करना है । केवल तभी तुम उसे जानोगे । यह एक स्वाद है । कोई भी व्यक्ति चीनी का वर्णन करते हुए कह सकता है कि वह मीठी होती है ।, लेकिन यदि तुमने कभी चीनी को चखा नहीं है । तो तुम मीठा शब्द तो सुनते हो । लेकिन तुम समझते नहीं कि वह क्या होता है । केवल एक ही उपाय है कि कोई आदमी तुम्हारे मुंह में बरबस कोई मीठी चीज डाल दे ।
झेन में सदगुरु का कार्य होता है । तुम्हारे अनुभव में शून्यता को शामिल करना । या दूसरे शब्दों में कहा जाए । तो तुम्हें तुम्हारी शून्यता के सम्मुख लाना । सदगुरु विधियां खोजता है । और जब वे पुरानी और घिसी पिटी हो जाती हैं । तो वह उन्हें छोडकर फिर नए उपाय और नई विधियां तलाशता है ।
लेकिन इस बात को हुए 25 शताब्दियां गुजर गई । जब गौतम बुद्ध ने बिना एक शब्द कहे महाकाश्यप को कमल का फूल दिया था । और उस सभा में कहा था । जो कुछ कहा जा सकता था । वह मैंने तुमसे कह दिया । जो नहीं कहा जा सकता था । यद्यपि मैं उसे भी अभिव्यक्त करना चाहता हूं । लेकिन जो कतई संभव नहीं है । वह मैं महाकाश्यप को हस्तांतरित कर रहा हूं ।
वह कमल का फूल तो केवल एक प्रतीक था । जब तक तुम स्वयं एक कमल की तरह ही न खिलो । जिसके पत्तों पर सुबह के सूरज में ओस कण मोतियों की भांति चमकते हैं । यह एक जलते दीये का हस्तांतरण है । इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता । महाकाश्यप पहली बार बुद्ध के निकट आया । उनके चरण स्पर्श किए । उनसे कमल का फूल लिया । और लौटकर वृक्ष के नीचे जाकर मौन बैठा रहा । महाकाश्यप ही झेन का प्रथम कुलपति है । इसलिए झेन की परंपरा । झेन का परिवार एक शाखा है । बौद्ध धर्म की एक मौन शाखा । वे लोग गौतम बुद्ध से प्रेम करते हैं । क्योंकि वास्तव में झेन का जन्म उनकी शून्यता से हुआ । उन्होंने उसे महाकाश्यप को हस्तांतरित किया । और फिर यह महाकाश्यप का दायित्व हो गया कि वह उन लोगों को खोजे । जिन्हें यह संपदा सौंपी जा सकती हो ।
इसलिए 25 शताब्दियों पूर्व । उस क्षण से वह हस्तांतरित होती रही । बिना किन्हीं सुनिश्चित साधनों के । बिना किसी भाषा के । सदगुरु से शिष्य को । किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा । जो अपने घर वापस लौट आया था । उस व्यक्ति को । जो चारों ओर भटकता हुआ । अपना मार्ग नहीं खोज पा रहा था ।
झेन में सदगुरु का कार्य होता है । तुम्हारे अनुभव में शून्यता को शामिल करना । या दूसरे शब्दों में कहा जाए । तो तुम्हें तुम्हारी शून्यता के सम्मुख लाना । सदगुरु विधियां खोजता है । और जब वे पुरानी और घिसी पिटी हो जाती हैं । तो वह उन्हें छोडकर फिर नए उपाय और नई विधियां तलाशता है ।
लेकिन इस बात को हुए 25 शताब्दियां गुजर गई । जब गौतम बुद्ध ने बिना एक शब्द कहे महाकाश्यप को कमल का फूल दिया था । और उस सभा में कहा था । जो कुछ कहा जा सकता था । वह मैंने तुमसे कह दिया । जो नहीं कहा जा सकता था । यद्यपि मैं उसे भी अभिव्यक्त करना चाहता हूं । लेकिन जो कतई संभव नहीं है । वह मैं महाकाश्यप को हस्तांतरित कर रहा हूं ।
वह कमल का फूल तो केवल एक प्रतीक था । जब तक तुम स्वयं एक कमल की तरह ही न खिलो । जिसके पत्तों पर सुबह के सूरज में ओस कण मोतियों की भांति चमकते हैं । यह एक जलते दीये का हस्तांतरण है । इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता । महाकाश्यप पहली बार बुद्ध के निकट आया । उनके चरण स्पर्श किए । उनसे कमल का फूल लिया । और लौटकर वृक्ष के नीचे जाकर मौन बैठा रहा । महाकाश्यप ही झेन का प्रथम कुलपति है । इसलिए झेन की परंपरा । झेन का परिवार एक शाखा है । बौद्ध धर्म की एक मौन शाखा । वे लोग गौतम बुद्ध से प्रेम करते हैं । क्योंकि वास्तव में झेन का जन्म उनकी शून्यता से हुआ । उन्होंने उसे महाकाश्यप को हस्तांतरित किया । और फिर यह महाकाश्यप का दायित्व हो गया कि वह उन लोगों को खोजे । जिन्हें यह संपदा सौंपी जा सकती हो ।
इसलिए 25 शताब्दियों पूर्व । उस क्षण से वह हस्तांतरित होती रही । बिना किन्हीं सुनिश्चित साधनों के । बिना किसी भाषा के । सदगुरु से शिष्य को । किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा । जो अपने घर वापस लौट आया था । उस व्यक्ति को । जो चारों ओर भटकता हुआ । अपना मार्ग नहीं खोज पा रहा था ।
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