रविवार, जुलाई 04, 2010

आपके पत्र..

लेखकीय-- ये उन फ़ोनकाल्स और ई मेल का विवरण है । जो लगभग प्रतिदिन मुझे प्राप्त होते हैं । * मैं रोहतक से बोल रहा हूँ । मेरा नाम सुरेश है । कृपया बताईये मोक्ष क्या है ? मैं मोक्ष के बारे में जानना चाहता हूँ । और आजकल मेरा मन ज्यादा अशान्त रहता है । क्या करूँ ? मेरे पास पैसे आदि की कोई कमी नहीं है । पर शान्ति नहीं है ?
* मेरा नाम अलका है । मैं लखीमपुर से बोल रही हूँ । घर में बेहद अशान्ति रहती है । पहले सब कुछ ठीक था । क्या ये ग्रह नक्षत्रों की कोई बात है । मेरा जन्म....हुआ था । मैं कानपुर में पैदा हुयी थी । पति से सम्बन्ध भी तनावपूर्ण हैं ? कृपया मार्ग सुझायें । बेहद परेशान हूँ । क्या मुझे जनम कुन्डली भेजनी होगी ? * मेरा नाम विजयदास है । मैं आत्महत्या करने की स्थिति में आ गया हूँ । मेरे ऊपर काफ़ी कर्जा हो गया है । और अभी एक एक पैसे का मोहताज हूँ । आपका नम्बर मुझे दिल्ली के मेरे परिचित सुशील राठोर ने दिया था । समझ में नहीं आता । क्या करूँ ? आप मेरी समस्या किस प्रकार हल कर सकते हैं ?
* मैं वैष्णवी बोल रही हूँ । मैं काफ़ी टेंशन में रहती हूँ । इनफ़ेक्ट..........? क्या आप मेरी सहायता कर सकते हैं ?
* मैंने आपका ब्लाग पढा । पढकर कुछ शान्ति सी मिली । बङी आशा से यह पत्र ( मेल ) लिख रही हूँ । ( लिख रहा हूँ ) आजकल मेरी स्थिति ठीक नहीं है । कभी कभी.....? अब तो बङी ऊब सी होती है । क्या यही जीवन है ? मुझे आशा है । आप कुछ समाधान करेंगे ?
* मैंने आज दिन तक बहुत सतसंग सुने । बहुत साधु संतो के सम्पर्क में आया । पर तसल्ली नहीं हुयी । आपके ब्लाग में मुझे कुछ सच्चाई सी नजर आयी । क्या आप अध्यात्म से जुङी मेरी कुछ शंकाओं का समाधान करेंगें ?
* हेय ..बाबाजी..क्या आप वाकई गाड से मिलने का तरीका जानते हैं ?
* राजीव जी ! गाड वगैरा कुछ नहीं है । जो कुछ है । यही जीवन है । इसलिये मेरी आपको सलाह है । मस्ती से जीवन काटो । देखो दुनियाँ में कितनी हरियाली ( इनका मतलब लेडी ) फ़ैली हुयी है । आप रेगिस्तान में क्यूँ भटक रहे हैं ?
* बाबाजी क्या संसार में एक तुम ही ग्यानी हो । या ग्यान का पूरा ठेका तुम्हारे ही पास है । आपकी बातें पङकर तो ऐसा लगता है । भगवान रोज तुम्हारे घर चाय पीने आतें हों ?
* राजीव जी मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ । क्योंकि मुझे spirituality में बेहद रुचि है । मुझे भारत में भी बेहद रुचि है.... । ( विदेशों से प्रायः 3 पत्र प्रतिदिन ) ।
* my name is monika...wants to say..hi..चलो मौज करते हैं । i am easily going with...?
* I should confess that I’m a very romantic person whose heart is filled with a big desire to create a nice family with all the warmth and coziness in the world. I’m dreaming about such a nice family where everything will have only one reason – deep love….
** * मैंने एक बात अपने जीवन में देखी है । आप कुछ भी क्यों न हों । आप कुछ भी क्यों न कहें । लोग आपसे अपने ही अंदाज में बात करते हैं ? कबीर साहब ने कितना लोगों को समझाया । और एक बार तो उनको पढकर ऐसा लगता है । कि मानों वे समझा समझाकर हार गये हों । तब उन्होंने कहा था ।
" कहे हूँ कह जात हूँ । कहूँ बजाकर ढोल । स्वांसा खाली जात है । तीन लोक का मोल । "
" रात गंवायी सोय के । दिवस गंवाया खाय । हीरा जनम अमोल था । कौङी बदले जाय । "
कभी कभी मुझे लगता है । कि मेरा भी हाल internet पर कुछ ऐसा न हो जाय कि " आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास " कभी कभी ऐसा भी लगता है कि " काजल की कोठरी में कैसो हू सयानो जाय " तीन सालों के अन्दर आंशिक प्रलय होने वाली है । और संसार अपनी मस्ती में मस्त है । और प्रलय की बात थोङी देर को छोङ भी दें । तो ये मानव जीवन बङा अनमोल है । देवताओं को दुर्लभ है । इसमें हमें " वो " प्राप्ति हो सकती है । जिसके लिये हम करोंङो सालों से न जाने कौन कौन सी योनियों में भटके थे । " कौन जोनि जामें भरमे नाहीं । "
इस तरह के प्राप्त होने वाले प्रायः सभी संदेशो का संतुष्टिजनक उत्तर मैं देने की कोशिश करता हूँ । सिवाय शादी । चैटिंग । सेटिंग और डेटिंग को छोङकर । मेरा आप लोगों से यही कहना है । सतसंग करो । आध्यात्म चर्चा करो । प्रभु भक्ति करो । इससे आप भी सुखी होंगे । और आपके द्वारा दूसरों को भी सुख प्राप्त होगा । रहना नहीं देश विराना है । यह संसार कागद की पुङिया बूँद परे गल जाना है । जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । "

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