शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

विभिन्न नरकों का वर्णन

लेखकीय - अक्सर इंसान कहता है कि नरक स्वर्ग जो कुछ है । यहीं है । आईये देखते हैं । नरक क्या है ?
*****रौरव नरक । अन्य नरकों की अपेक्षा प्रधान है । झूठी गवाही देने वाला । झूठ बोलने वाला रौरव नरक मेंजाता है । इसका विस्तार दो हजार योजन यानी चौबीस हजार किलोमीटर है । एक योजन में चार कोस होते हैं । एक कोस में दो मील होते हैं । एक मील में डेढ किलोमीटर होता है । इस तरह एक योजन में बारह किलोमीटर हुये । शास्त्रों में लोकों की दूरी का वर्णन योजन में किया गया है । तीन चार फ़ुट की गहराई में वहां दहकते हुये अंगारो से भरा गढ्ढा है । वहां की भूमि भी अत्यन्त तप्त है । उस जलती आग में पापी इधर उधर भागता है ।पैरों में छाले पड जाते हैं । इस प्रकार वह पैर उठा उठाकर चलता है । इस प्रकार हजार योजन यानी बारह हजार किलोमीटर पार करने के बाद पाप शुद्धि के लिये दूसरे नरक में ले जाते हैं ।
महारौरव नरक । पांच हजार योजन यानी साठ हजार किलोमीटर में फ़ैला हुआ है । भूमि की बिजली के समान तांबे जैसी दिखने वाली इसकी भूमि है । जिसके नीचे सदा आग जलती है । यह महा डरावनी दिखती है । इसमें पापी के हाथ पैर बांधकर लुढका दिया जाता है । इसमें लुढककर ही चलना पडता है । रास्ते में कौआ । बगुला । भेडिया । उल्लू मच्छर । बिच्छू । आक्रमण करते हैं । इससे पापी की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है । और वह घबराकर बार बार चिल्लाता है । इसी स्थिति में हजारों वर्ष बीत जाने पर उसकी यहां से मुक्ति होती है ।
अतिशीत । नामका नरक अत्यन्त शीतल है । अत्यन्त अंधकार से युक्त इस नरक में पापिओं को यमदूतों द्वारा लाकर बांध दिया जाता है । वहां लाये गये पापी एक दूसरे का आलिंगन करके ठंड से बचने का प्रयास करते हैं । यहां भूख प्यास अधिक लगती है । वहां पर्वतों को उडा सके ऐसी वायु चलती है । जो शरीर की हड्डियों को तोड देती है । प्राणी भूख लगने पर मज्जा । रक्त । और गली हड्डियां खाता है । इस प्रकार के और भी अनेकों कष्ट हैं ।
निकृन्तन । इस नरक में कुम्हार के चाक के समान चक्र चलते रहते हैं । इनके ऊपर पापियो को खडा करके
यमदूतों द्वारा उंगली में स्थित कालसूत्र द्वारा सिर से पैर तक छेदा जाता है । उनके शरीर के सैकडों भाग हो जाते हैं ।फ़िर वापस जुड जाते हैं पर उनका प्राणान्त नहीं होता । इस प्रकार हजारों वर्ष तक चक्कर लगाने के बाद जब जीव के पापों का विनाश हो जाता है । तब उसे नरक से मुक्त करते हैं ।
अप्रतिष्ठ । इस नरक में चक्र और रहट लगा रहता है । वह हजारों वर्ष बाद ही रुकता है । पापी इस पर बांध दिये जाते हैं । वे घट की भांति घूमते रहते हैं । खून की उल्टी करते हुये उनकी आंते मुख की ओर से बाहर आ जाती हैं । और नेत्र आंतो में घुस जाते हैं ।
असिपत्रवन । ये नरक एक हजार योजन में फ़ैला हुआ है । इसकी भूमि अग्नि से व्याप्त होकर निरंतर जलती
है । इस भयंकर नरक में सात सूर्य निरंतर तीव्रता के सात तपते हैं । जिसके संताप से पापी जलते रहते हैं ।
इसी नरक के मध्य एक चौथाई भाग में " शीतस्निग्धपत्र " नाम का वन है । उसमें वृक्षों से टूटकर गिरे पत्ते और फ़ल पडे रहते हैं । इस वन में मांसाहारी बलबान कुत्ते विचरण करते रहते हैं । अत्यन्त शीत और छायायुक्त उस स्थान को देखकर भूख प्यास और ताप से पीडित प्राणी रोते हुये वहां जाते हैं । जलती हुयी प्रथ्वी से पापियों के दोनों पैर जल जाते हैं । अत्यन्त शीतल वायु बहने लगती है । जिसके कारण उन पापियों के ऊपर तलवार की धार के समान पत्ते गिरते हैं । इससे उनके शरीर छिन्न भिन्न हो जाते हैं । और फ़िर कुत्ते आक्रमण कर देते हैं । और उन का मांस नोच नोचकर खाने लगते हैं ।
तप्तकुम्भ । इस नरक में चारों ओर अत्यन्त गरम घडे हैं । जिनके चारों ओर अग्नि जलती रहती है । इसमें
उबलता हुआ तेल ओर लोहे का चूर्ण पडा होता है । पापी को ओंधा मुख करके डाल दिया जाता है । जिस से पापिओं की मज्जा गलती है । और अंग फ़ूटने लगते हैं । इस तरह पापियों का काडा सा बना दिया जाता है । यमदूत नुकीले हथियारों से उनकी खोपडी । आंख । तथा हड्डियों को छेदते हैं । गिद्ध झपट्टा मारकर पापियों को नोचते हैं और फ़िर उसी में छोड देते हैं । इसी स्थिति में यमदूत कष्ट देते रहते हैं ।
इस प्रकार ये सात मुख्य नरक हैं । अन्य नरकों के नाम इस प्रकार हैं ।
रोध । सूकर । ताल । महाज्वाल । शवल । विमोहन । कृमि । कृमिभक्ष । लालाभक्ष । विषज्जन । अधःशिर ।
पूयवह । रुधिरान्ध । विडभुज । वैतरणी । अग्निज्वाल । महाघोर ।संदंश । अभोजन ।तमस । कालसूत्र ।
लौहतापी । अभिद । अवीचि आदि ।

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