सोमवार, जुलाई 26, 2010

बहुत से सवाल हैं जिनका कोई जवाब नहीं देता..1

मार्च 2010 में जब मैंने अध्यात्म के गूढ रहस्यों के आदान प्रदान के उद्देश्य से ब्लागिंग शुरू की थी और अपने ऐसे ही विचार वाले इंटरनेटी मित्रों की तलाश में सर्फ़िंग कर रहा था । मुझे एक ब्लाग मिला । जिसका नाम " नास्तिकों का ब्लाग " था । जिसमें नास्तिक लोगों को आमन्त्रित किया गया था । और उस समय दस के लगभग उसमें (शायद ) सदस्य भी बन चुके थे । जिनमें मैं किसी से भी वाकिफ़ न था ।
उस समय तक ब्लाग में सिर्फ़ एक आमन्त्रण वाली पोस्ट ही प्रकाशित हुयी थी । खैर..पढकर बेहद हंसी आयी । ये लोग नास्तिकता का क्या अर्थ लगाते हैं और आगे क्या धमाका करने वाले हैं । इसकी कल्पना मेरे लिये बेहद दिलचस्प थी । मैंने इसी पहली पोस्ट में विपक्ष यानी आस्तिकता
के रूप में अपना पक्ष रखने हेतु comment किया । इसके बाद जीवन की आपाधापी और अपने दस ब्लाग्स पर काम करने के कारण मैं " नास्तिकों का ब्लाग " को लगभग भूल ही गया । लेकिन पिछली 20 july को सर्फ़िंग के समय ये ब्लाग अक्समात मेरे सामने आ गया । और मैंने april to july इसको पोस्ट और कमेंट के साथ पूरा पढा । ज्यादातार धर्म और अध्यात्म विषयक चर्चा के रूप में इस ब्लाग में मैंने क्या पाया और उस पर मेरा नजरिया क्या है । आईये आपके साथ बांटता हूं । कोई संजय ग्रोवर जी है । जिन्हें मैं इसी ब्लाग @ नास्तिकों का ब्लाग , के लेखों द्वारा ही जितना जान पाया । जानता हूं । लेकिन मेरी बात संजय जी को लेकर नहीं तथ्यों को लेकर हैं । और तथ्य ब्लाग में स्पष्ट हैं । अतः भ्रम की स्थिति का कोई प्रश्न ही नहीं है । मैंने इस ब्लाग से मुख्य प्रश्नों या तथ्यों को छांटा और अपनी मोटी बुद्धि से उनको समझने की कोशिश की । आईये आप भी देखें ... संजय जी को जब अपनी नास्तिकता का अहसास हुआ और...
प्रश्न - जब मैने ईश्वर और धर्म की सत्ता को मानने से इंकार किया तो कुछ लोगों ने कहा भ्रमित हो गया ।ईश्वर के अस्तित्व को साबित करने के लिए लोग तमाम तर्क - बितर्क करने लगे.फिर मेरे न मानने पर कहा - धार्मिक हउवे बिना आदमी अच्छा इन्सान नहीं हो सकता ?
उत्तर - संजय जी आप एक नास्तिक के तौर पर । और आपको समझाने वाले आस्तिक के तौर पर । दोनों की ही स्थिति एक जैसी है । और दोनों को ही आस्तिक या नास्तिक होने का कोई लाभ नहीं है । हां थोडा सा तो है । पर वो ना के बराबर है । लेकिन एक आश्चर्य की भांति विपरीत स्थिति होते हुये भी फ़ल में समान ही है ? जरा सोचिये ?
आपने ईश्वर को देखा नहीं । उसकी कहीं किसी प्रकार की कोई भूमिका आपको नजर नहीं आती । उसका
मानवीय जीवन में आपको कोई सहयोग नजर नहीं आता । ऐसे ही कुछ और मिलते जुलते कारण है । जिनकी वजह से आप नास्तिक हैं । जरा सोचिये ? ठीक यही स्थिति क्या तमाम आस्तिकों की नहीं है । उन्होंने कौन सा ईश्वर को देखा है । वे किसी कार्य में ईश्वर की भूमिका के वारे में कोई ठोस दावा किस बिना पर कर सकते हैं । ईश्वर वास्तव में है । इस बात का प्रमाणिक सबूत वे क्या दे सकते हैं । यानी ईश्वर को लेकर जितना अंधेरे में आप ( नास्तिक ) हैं । उतने ही तमाम आस्तिक ? आप उसके न होने को साबित नहीं कर सकते । और आस्तिक उसके होने को साबित नहीं कर सकते । "धार्मिक हउवे बिना आदमी अच्छा इन्सान नहीं हो सकता ? " यह बात काफ़ी हद तक सत्य है । संजय जी मुझे नहीं मालूम आप सज्जन स्वभाव के हैं । या खलनायक ? जरा फ़िर से सोचिये ? एक सीधे साधे बच्चे को नियन्त्रण में रखने के लिये मां बाप को कोई कोशिश नहीं करनी पडती । कोई परेशानी नहीं होती । वहीं एक शरारती और उदंड बच्चे को काबू में रखने के लिये मां बाप को क्या क्या पापड बेलने पडते हैं ? ये धार्मिक हउवा । कर्मों का दन्ड । और समय समय पर इसके प्रत्यक्ष प्रमाण । दुष्ट स्वभाव के लोगों को नियन्त्रण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । जरा सोचिये । भगवान की वो " अदृश्य लाठी " काम न कर रही होती । और आप जैसे विचार के लोग । जो मृत्यु के बाद जीवन नहीं मानते । पाप पुण्य नहीं मानते । खुद को ही सब कुछ मानते हैं ।
यानी ऐसे ही विचार और पक्की धारणा किसी दुष्ट स्वभाव के व्यक्ति की हो जाय । तो वो निर्भय होकर सीधे सरल और निर्बल लोगों का जीना मुश्किल कर देगा । क्योंकि भरपूर ऐशोआराम । कामक्रीडा हेतु अनेकों बालाएं । बेशुमार धन दौलत । मनमर्जी से जीना । बिना मेहनत के मजे लूटना । कौन नहीं चाहता ? अब जबकि उसे पहले से मालूम हो कि बाद में इसका अच्छा बुरा कोई फ़ल ही नहीं होगा और ये एक ही जिंदगी है । यानी जितने मजे लूट सको लूटो । तो सोचिये वो किस स्तर की मनमानी करेगा ? इसलिये आप व्यवहारिक तौर पर ये परीक्षण करके देखिये । कि इस " धार्मिक हउवा " की समाज को नियन्त्रण करने में कितनी महत्वपूर्ण और प्रभावशाली भूमिका है ।
प्रश्न - कुछ का कहना है ब्राह्मणों ने हिन्दू धर्म में कई बुराइयों का प्रवेश कराया है. तर्क था कि ईश्वर है बस उसेखोजो । धर्म को जानने की जरुरत है,कुछ लोगों ने इस गन्दा बनाया है ।
उत्तर - यह बात एकदम सत्य है । पर उस रूप में नहीं जिस रूप में सब जानते हैं । " वास्तविक ब्राह्मण क्या होता है ? " बुराई क्या है । इस विषय पर मैं अपने लेखों में काफ़ी लिखा है । फ़िर भी " वास्तविक ब्राह्मण क्या होता है ? " इस विषय पर मैं एक विस्त्रत लेख समय मिलने पर आने वाले समय में लिखूंगा ।
लेकिन फ़िलहाल...ब्राह्मणों ने हिन्दू धर्म में कई बुराइयों का प्रवेश ..पर बात करते हैं । बुराई किस क्षेत्र में नहीं है और कब नहीं थी । चलिये गिनते हैं । दूध वाला भेंस को " आक्सीटोक्सिन " लगाकर आपको बुरा दूध पिला रहा है । किसान मानव के लिये अत्यधिक जहरीले कीटनाशकों और हानिकारक खादों का प्रयोग करते हुये । अनाज । सब्जी आदि के माध्यम से बुराई की सप्लाई कर रहा है । वैश्यावृति को अपना चुकी " नगरवधुएं " समाज का निरंतर पतन कर रही हैं । तो ये सब तो आपके जीवन को वास्तविक रूप में हानि पहुंचा रहे है । धर्म आप खाते पीते तो नहीं है । नहीं पसन्द आ रहा । मत अपनाइये । कोई आपको वाध्य तो नहीं कर रहा । आप लोगों को बताते हैं कि मैं नास्तिक हूं । किसी पूजा करने वाले ने आपसे जाकर वोला कि वो आस्तिक है ? अगर वोला होगा तो वो व्यक्ति दुर्लभ ही कहलायेगा ? पुलिस । शासन । प्रशासन । केन्द्रीय शासन । समाज । घर । परिवार । वातावरण । मन्दिर । तीर्थ । गंगा । यमुना । हिन्दू । मुसलमान । सिख । ईसाई । अमेरिकन । रसियन । देवी । देवता । भूत । प्रेत । जितने आप जानते हैं । और जिन्हें नहीं जानते । कोई ऐसा क्षेत्र बता सकते हैं जो एकदम पाक साफ़ हो । या भूतकाल में कभी रहा हो । ग्यान - अग्यान । प्रकाश - अंधकार । दिन - रात । दुष्ट - सज्जन । ये एक दूसरे के पूरक हैं । एक के होने से दूसरे का अस्तित्व है । इसी तरह अच्छाई - बुराई का हमेशा का साथ है । अतः सब में सब तरह के लोग हैं । तो ये कहना कि " ब्राह्मणों ने हिन्दू धर्म में कई बुराइयों का प्रवेश कराया है । " सभी ब्राह्मणों के लिये नहीं कहा जा सकता । अच्छा बुरा आदमी तो हो सकता है । पर इसको ब्राह्मण । यादव । वैश्य । कायस्थ । इस तरह कहना मेरे हिसाब से तो उचित नहीं हैं । फ़िर आपकी मर्जी ?

2 टिप्‍पणियां:

सुज्ञ ने कहा…

राजीव जी,
आस्तिकता पर एक अभिनव दृष्टिकोण!!
इस सुन्दर लेख के लिये आपको बधाई देता हूं
नास्तिक ये क्युं मानते हैं,कि जरा भी नास्तिकता की बातें की तो सारे आस्तिक आकर पिल पडेंगे।
वस्तुतः आस्तिकता एक सौम्य अवधारणा ही है, किन्तु आप जानकर किसी अल्पज्ञानी आस्तिक को छेडेंगे तो सम्भव है कुछ आक्रोश प्रकट हो। लेकिन नास्तिको में एक मनोग्रंथी है कि,नास्तिक हुए बिना व्यक्ति आधुनिक और विकासवादी हो ही नहिं सकता।

Asha Joglekar ने कहा…

Achcha laga aapka blog. Bramhan shayad Brahmadnya shabd ka prakrut roop hai. Jo brahm ko janta samazta hai wahi brahman hai klantar me isme anek pakhnad ghus gaye warna Brahman ka kam to adhyayan aur adhyapan hee tha. Kisi kal me bhee samaj buraeeyon se mukt nahee tha ye aapi bat theek hai.

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