सोमवार, जुलाई 26, 2010

बहुत से सवाल हैं जिनका कोई जवाब नहीं देता..2

प्रश्न - धर्म को जानने की जरुरत है । कुछ लोगों ने इस गन्दा बनाया है ?
उत्तर - जिसने भी आपको ये उत्तर दिया है । ये एकदम सटीक उत्तर है । दरअसल धर्म को लेकर आपका नजरिया स्थूल और सतही ग्यान पर आधारित है । जैसा कि पूजा पाठ करने वाले आस्तिको का भी होता है । वास्तविक धर्म को जानना कोई हंसी खेल नहीं है ? पहले " धर्म " को जानिये । धर्म का अर्थ है । धारण करना । यदि आप शादीशुदा हैं तो ये ग्रहस्थ धर्म है । यदि आप लडाका की भूमिका में है । तो ये क्षत्रिय धर्म है । पत्नी धर्म । पति धर्म । विध्या धर्म । संतान धर्म । मित्र धर्म । शत्रु धर्म । ये सब धर्म ही है ।
जिस कर्म से आप संयुक्त होते हो । वही धर्म हो जाता है । ये सब " देहधर्म " के अन्तर्गत आते हैं । इनमें मत भिन्नता और विभिन्नता ही तकरार का कारण है । परन्तु आत्मा का धर्म या सनातन धर्म सबके लिये समान है । इसमें राग । द्वेश । ऊंच । नीच । जाति । पांति । भगवान । देवी । देवता । कर्मकांडी पूजा पद्धित आदि का कोई स्थान नहीं है । बल्कि इसमें खुद को जानना । मैं कौन हूं । इस चमत्कारिक सृष्टि के पीछे क्या रहस्य है । मृत्यु के बाद जीवन है या नहीं ? स्वर्ग नरक की सत्यता क्या है । जीवन का सच क्या है ? जीवन का वास्तविक लक्ष्य क्या है ? जैसी चीजों को । जैसे प्रश्नों को " आत्मविग्यान " द्वारा प्रत्यक्ष किया जाता है । वैसे ही जैसे आप प्रकृति को देखते है । सांसारिक पदार्थों को देखते उपयोग करते हैं । आप
माया के " परदे के पीछे " का रहस्य जानने लगते हैं और वहां की चीजों का उपयोग करते हैं ।
कुछ लोगों ने इस गन्दा बनाया है ?..एक चमचमाता शीशा ( धर्म ) किसी की नादानी या अग्यानतावश धुंधला । मैला ( धर्म में मिलाबट ) हो जाय और आप उसमें अपना स्वरूप नहीं देख पा रहे । तो कुछ गलती आपकी भी है । उस पर ( ग्यान रूपी ) कपडा फ़िराइये । शीशा अपनी पूर्व अवस्था में चमकने लगेगा । और आप अपने को ठीक से देख पायेंगे । 2 - दूध ( धर्म ) में मक्खी ( धर्म में मिलाबट ) गिर गयी । आप दूध का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे । सीधी सी बात है । अक्ल का इस्तेमाल करें । मक्खी को निकालकर फ़ेंक दे । आप धर्म ( दूध ) का लाभ निश्चित उठा सकते हैं । फ़िर आपकी मर्जी ?
प्रश्न -जब ईश्वर निरंकारी है तो आकार वाली धरती और इंसान जानवर बनाने की जरुरत क्या थी ?
उत्तर - लगता है । यहां आप निरंकार शब्द का अर्थ निराकार समझ बैठे है । जो पूर्णतया गलत है ।निरंकार शब्द आकाश तक की सत्ता को बताता है । अर्थात निरंकार को जानने वाला । प्रथ्वी । जल । अग्नि । वायु । आकाश । इन पांचो तत्वों को तत्व से जानने वाला साधु निरंकारी कहलाता है । निरंकार । ररंकार । ये दो योग की उच्च स्थितियां है । जिनमें निरंकार आकाश का घोतक है । और ररंकार । रमता राम का । इन शब्दों को साधारण ग्यान रखने वाले प्रायः नहीं जानते । जैसे रसायन बिग्यान का विध्यार्थी घर में नमक मांगने के लिये सोडियम क्लोराइड या Nacl कहने लगे । तो भला कौन समझ पायेगा ?
आकार वाली धरती और इंसान जानवर बनाने की जरुरत ...? जरा सोचिये कि मिट्टी का आकार क्या है ? बिजली का आकार क्या है ? बिजली क्या बल्ब है ? टयूबलाइट है । फ़ैन है । ए सी है । टेलीविजन है ? इनमें से कुछ नहीं है । लेकिन जिसके साथ संयुक्त हो जाती है । उसी को गति देने लगती है । मिट्टी का आकार क्या है ? घर । घडा । खिलौने । सकोरे । खेत । क्यारी । गमला । और अन्य उपयोग । अर्थात जहां जैसी जरूरत होती है । वहां वैसा आकार हो जाता है । यही सिद्धांत हर चीज पर लागू होता है । आप इसी उदाहरण के आधार पर अन्य चीजों के वारे में विचार करें ।
प्रश्न -जब खुदा, ईश्वर या भगवान निरंकारी है तो अपने समारोहों में क्यों एक आदमी को सफ़ेद धोती कुरता पहना के और सफ़ेद चादर ओढा कर पूजा करते है ?
उत्तर - निरंकारी निराकार नहीं होता । ये बात मैंने ऊपर ही स्पष्ट कर दी है । रही किसी आदमी को कपडे पहना के बैठाने की बात । तो वो उस ग्यान का प्रतिनिधित्व करता है । जो परम्परा से चला आ रहा है । अगर कोई बताने वाला शिक्षक के रूप में मौजूद नहीं होगा । तो नये अथवा पुराने लोगों की शंका का समाधान कैसे होगा । नये जुडने वाले लोग ग्यान के बारे में कैसे जानेंगे ?
प्रश्न -क्या ईश्वर चापलूस है जो इंसान को केवल पूजा पाठ के लिए बनाया है ? जब निरंकारी की पूजा करते हैं तो साकार भगवान राम,कृष्ण और शंकर की स्तुति क्यों करते हैं ?
उत्तर - मैंने एक 10 + 2 में पढने वाले student से कहा । क्या तुम्हें मालूम है । कि सरकार तुम्हारी पढाई पर लगभग डेढ लाख रुपया खर्च कर चुकी है । उसने हैरत से मुझे देखा । और बोला । क्या बात कर रहे हो ? सरकार ने मुझे एक रुपया तक नहीं दिया । ऐसा ही कुछ अग्यान का मामला ईश्वर सत्ता को लेकर लोगों में होता है । अनंत ब्रह्माण्ड । अनन्त सृष्टि का शासन । प्रशासन कैसे चल रहा है । ये मजाक की बात नहीं है । ये चारों तरफ़ खाने पीने की वस्तुओं से लेकर । धूप । हवा । पानी आदि सारी व्यवस्था उसके आदेश से ही कार्य कर रही है ।फ़िर भी मैंने आज तक ऐसा नहीं सुना कि ईश्वर ने किसी से कहा हो कि तुम मेरी पूजा करो ? राम । कृष्ण । ये दोनों वास्तव में एक ही सत्ता के दो रूप हैं । जिसे ररंकार कहते हैं । इस त्रिलोकी सत्ता । जिसमें कि यह प्रथ्वीलोक है । का आधिपत्य राम का ही है । इसलिये वृन्दावन मे रहोगे । तो राधे राधे कहोगे । और फ़िर राम,कृष्ण और शंकर किसकी भेंस खोल ले गये । जो लोग इनसे नफ़रत करें । एक परम्परा के रूप में जो पूजा चली आ रही है । वही है । ये पूजा एक अदृश्य रहस्यमय संतुलन करती हैं । जिसे विशेष ग्यान के द्वारा जाना जा सकता है ।
प्रश्न - पता नहीं कितने करोड़ भगवानो को ढ़ोने वाली अपनी गधों वाली पीठ पे एक और भगवान को लादने की जरुरत क्या है ?
उत्तर - आप करोड छोडिये । सिर्फ़ दो सौ भगवान के नाम मुझे बता दीजिये । वैसे कितने नहीं " तैतीसकरोड " हैं । पर कैसे हैं ? ये मैं अपने लेख " क्या है तैतीस करोड देवताओं का रहस्य " में विस्तार से लिख चुका हूं । अतः उसको बार बार लिखने से कोई फ़ायदा नहीं ।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

धर्म का अर्थ - मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता (सदाचरण) ।
व्यक्तिगत धर्म- सत्य, न्याय एवं नैतिक दृष्टि से उत्तम कर्म करना, व्यक्तिगत धर्म है ।
सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है ।
धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । धर्म के विरुद्ध किया गया कर्म, अधर्म होता है ।
व्यक्ति के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
धर्म सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।
धर्म एवं ‘उपासना द्वारा मोक्ष’ एक दूसरे आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है । ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है ।
कृपया इस ज्ञान को सर्वत्र फैलावें । by- kpopsbjri

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...