रविवार, नवंबर 20, 2011

क्‍योंकि हमारा रोम रोम भी सूर्य से ही निर्मित है

सबसे पहले तो यह बात जान लेनी जरूरी है कि वैज्ञानिक दृष्‍टि से सूर्य से समस्‍त सौर परिवार का । मंगल का । बृहस्‍पति का । चंद्र का । पृथ्‍वी का जन्‍म हुआ है । ये सब सुर्य के ही अंग है । फिर पृथ्‍वी पर जीवन का जन्‍म हुआ । पौधों से लेकर मनुष्‍य तक । मनुष्‍य पृथ्‍वी का अंग है ।  पृथ्‍वी सूरज का अंग है । अगर हम इसे ऐसा समझें । एक मां है । उसकी 1 बेटी है । उन तीनों के शरीर का निर्माण । 1 ही तरह के सेल्‍स से । 1 ही तरह के कोष्‍ठों से होता है ।
और वैज्ञानिक 1 शब्‍द का प्रयोग करते है । एम्‍पैथी का । समानुभूति का । जो चीजें 1 से ही पैदा होती है । सूर्य से पृथ्‍वी पैदा होती है । पृथ्‍वी से । हम सबके शरीर निर्मित होते है । थोड़े ही दूर फासले पर सूरज हमारा महा पिता है । सूर्य पर जो घटित होता है । वह हमारे रोम रोम में स्‍पंदित होता है । क्‍योंकि हमारा रोम रोम भी सूर्य से ही निर्मित है । सूर्य इतना दूर दिखाई पड़ता है । इतना दूर नहीं है । हमारे रक्‍त के 1-1 कण में । और हड्डी की 1-1 टुकड़े में । सूर्य के ही अणुओं का वास है । हम सूर्य के ही टुकड़े है । और यदि सूर्य से हम प्रभावित होते है । इसमें कुछ आश्‍चर्य नहीं है । एम्‍पैथी है । समानुभूति है ।
समानुभूति को भी थोड़ा समझ लेना जरूरी है । जो ज्‍योतिष के 1 आयाम में प्रवेश हो सकेगा । प्रयोग किए जा सकते है । और इस तरह के बहुत से प्रयोग पिछले 50 वर्षों में किए गए है । तो 1 ही अंडज । जुड़वां बच्‍चों को 2 कमरों में बंद कर दिया गया । फिर दोनों कमरों में 1 साथ घंटी बजायी गयी है । और दोनों बच्‍चों को कहा गया है । उनको जो पहला विचार जो ख्‍याल आता है । वह उसे कागज पर बना लें । या तो पहला चित्र उनके दिमाग में आता हो । तो उसे कागज पर बना लें ।
और बड़ी हैरानी की बात है कि अगर 20 चित्र बनवाए गए है । दोनों बच्‍चों से । तो उसमें 90% दोनों बच्‍चों के चित्र 1 जैसे है । उनके मन में । जो पहला विचारधारा पैदा होती है । जो पहला शब्‍द बनता है । या जो पहला चित्र बनता है । ठीक उसके ही करीब वैसा ही विचार जुड़वां बच्‍चे के भीतर भी बनता । और निर्मित होता हे ।
इसे वैज्ञानिक कहते है । एम्‍पैथी । समानुभूति । इन दोनों के बीच 1 समानता है कि ये 1 से प्रतिध्‍वनित होते है । इन दोनों के भीतर अनजाने मार्गों से जैसे कोई जोड़ है । कोई संवाद है । कोई कम्यूनिकेशन है । सूर्य और पृथ्‍वी के बीच भी ऐसा ही कम्यूनिकेशन । ऐसा ही संवाद सेतु है । ऐसा ही संबंध है । प्रतिपल । सूर्य । पृथ्‍वी । और मनुष्‍य । उन तीनों के बीच निरंतर संवाद है । 1 निरंतर डायलॉग है । लेकिन वह जो संवाद है । डायलॉग है । वह बहुत गुह्य है । और बहुत आंतरिक है । और बहुत सूक्ष्‍म है । उसके संबंध में थोड़ी सी बातें समझेंगे । तो खयाल में आएगा ।
अमरीका में 1 रिसर्च सेंटर है । tree ring research सेंटर । वृक्षों में । जो वृक्ष आप काटें । तो वृक्ष के तने में आपको बहुत से रिंग्‍स । बहुत से वर्तुल दिखाई पड़ेंगे । फर्नीचर पर जो सौंदर्य मालूम पड़ता है । वह उन्‍ही वर्तुलों के कारण है । 50 वर्ष से । यह रिसर्च केंद्र । वृक्षों में जो वर्तुल बनते है । उन पर काम कर रहा है । प्रो. डगलस । अब उसके डायरेक्‍टर है । जिन्‍होंने अपने जीवन को अधिकांश हिस्‍सा । वृक्षों में जो वर्तुल बनते है । चक्र बनते है । उन पर ही पूरा व्‍यय किया है । बहुत से तथ्‍य हाथ लगे है । पहला तथ्‍य तो सभी को ज्ञात है । साधारणत: कि वृक्ष की उमृ । उसमें बने हुए रिंग्‍स के द्वारा जानी जा सकती है । जानी जाती है । क्‍योंकि प्रतिवर्ष 1 रंग वृक्ष में निर्मित होता है । 1 छाल । वृक्ष की कितनी उमृ है । उसके भीतर कितने रिंग बने हैं । इनसे तय हो जाता है । अगर 50 साल पुराना है । उसने 50 पतझड़ देखे है । तो 50 रिंग उसके तने में निर्मित हो जाते है । और हैरानी की बात यह है कि इन तनों पर जो रिंग निर्मित होते है । वह मौसम की भी खबर देते है ।
अगर मौसम बहुत गर्म और गीला रहा हो । तो जो रिंग है । वह चौड़ा निर्मित होता है । अगर मौसम बहुत सर्द और सूखा रहा हो । तो जो रिंग है । वह बहुत सकरा निर्मित होता है । हजारों साल पुरानी लकड़ी को काटकर पता लगाया जा सकता है कि उस वर्ष जब यह रिंग बना था । तो मौसम कैसा था । बहुत वर्षा हुई थी । या नहीं हुई थी । सूखा पडा था । या नहीं पडा था । अगर बुद्ध ने कहा है कि इस वर्ष बहुत वर्षा हुई । तो जिस बोधिवृक्ष के नीचे वह बैठे थे । वह भी खबर देगा कि वर्षा हुई कि नहीं हुई । बुद्ध से भूल चूक हो जाए । वह जो वृक्ष है । बोधिवृक्ष । उससे भूल चूक नहीं होती । उसका रिंग बड़ा होगा । या छोटा होगा ।
डगलस इन वर्तुलों की खोज करते करते 1 ऐसी जगह पहुंच गया है । जिसकी उसे कल्‍पना भी नहीं थी । उसने अनुभव किया कि प्रत्‍येक 11 वर्ष पर रिंग जितना बड़ा होता है । उतना फिर कभी बड़ा नहीं होता है । और वह 11 वर्ष वही है । जब सूर्य पर सर्वाधिक गतिविधि होती है । हर 11 वर्ष पर सूरज में 1 रिदम । 1 लयबद्धता है । हर 11 वर्ष में । सूरज बहुत सक्रिय हो जाता हे । उस पर रेडियो एक्‍टिविटी बहुत तीवृ होती है । सारी पृथ्‍वी पर उस वर्ष सभी वृक्ष मोटा रिंग बनाते है । एकाध जगह नही । एकाध जगह जंगल में नहीं । सारी पृथ्‍वी पर । सारे वृक्ष । रेडियो एक्टिविटी से । अपनी रक्षा के लिए मोटा रिंग बनाते है । वह जो सूरज पर तीवृ घटना घटती है । ऊर्जा की । उससे बचाव के लिए । उनको मोटी चमड़ी बनानी पड़ती है । हर 11 वर्ष में ।
इससे वैज्ञानिकों में 1 नया शब्‍द और नयी बात शुरू हुई । मौसम सब जगह अलग होते है  । कहीं सर्दी है । कहीं गर्मी है । कहीं वर्षा है । कहीं शीत है । सब जगह मौसम अलग है । इसलिए अब तक कभी पृथ्‍वी का मौसम । क्‍लाइमेट ऑफ दी अर्थ । ऐसा कोई शब्‍द प्रयोग नहीं होता था । लेकिन अब डगलस ने इस शब्‍द का प्रयोग करना शुरू कर दिया है । क्‍लाइमेट ऑफ दी अर्थ । ये सब छोटे मोटे फर्क तो है ही । लेकिन पूरी पृथ्‍वी पर भी सूरज के कारण 1 विशेष मौसम चलता है । जो हम नहीं पकड़ पाते । लेकिन वृक्ष पकड़ते है । हर 11 वर्ष पर । वृक्ष मोटा रिंग बनाते है । फिर रिंग छोटे होते जाते है । फिर 5 साल के बाद । बड़े होने शुरू होते है । फिर 11 साल पर जाकर । पूरे बड़े हो जाते है ।
अगर वृक्ष इतने संवेदनशील है । और सूरज पर होती हुई कोई भी घटना को । इतनी व्‍यवस्‍था से । अंकित करते है । तो क्‍या आदमी के चित में भी कोई पर्त होगी । क्‍या आदमी के शरीर में भी कोई संवेदन का सूक्ष्‍म रूप होगा । क्‍या आदमी भी । कोई रिंग और वर्तुल । निर्मित करता होगा । अपने व्‍यक्‍तित्‍व में ? अब तक साफ नहीं हो सका । अभी वैज्ञानिकों को साफ नहीं है । कोई बात कि आदमी के भी क्‍या होता है । लेकिन यह असंभव मालूम होता है कि जब वृक्ष भी सूर्य पर घटती घटनाओं को संवेदित करते हों । तो आदमी किसी भांति संवेदित न करता हो । ज्‍योतिष । जो जगत में कहीं भी घटित होता है । वह मनुष्‍य के चित में भी घटित होता है । इसकी ही खोज है ।
इस पर हम पीछे बात करेंगे कि मनुष्‍य भी वृक्षों जैसी ही खबरें अपने भीतर लिए चलता है । लेकिन उसे खोलने का ढंग उतना आसान नहीं है । जितना वृक्ष को खोलने का ढंग आसान है । वृक्ष को काटकर जितनी सुविधा से हम पता लगा सकते । उतनी सुविधा से आदमी को काटकर पता नहीं लगा सकते । आदमी को काटना सूक्ष्‍म मामला है । और आदमी के पास चित है । इसलिए आदमी का शरीर उन घटनाओं को नहीं रिकार्ड करता । चित रिकार्ड करता है । वृक्षों के पास चित नहीं है । इसलिए शरीर ही उन घटनाओं को रिकार्ड करता है ।
1 और बात इस संबंध में ख्‍याल में ले लेने जैसी है । जैसा मैंने कहा । 11 वर्ष में सूरज पर तीवृ रेडियो एक्टिविटी । तीवृ वैधुतिक तूफान चलते हैं । ऐसा प्रति 11 वर्ष पर एक रिदम । ठीक ऐसा ही 1 दूसरा बड़ा रिदम भी पता चलना शुरू हुआ है । और वह है 90 वर्ष का । सूरज के ऊपर । और वह और हैरान करने वाला है ।
और यह जो मैं कहा रहा हूं । ये सब वैज्ञानिक तथ्‍य है । ज्‍योतिष इस संबंध में कुछ नहीं कहते है । लेकिन मैं इसलिए यह कह रहा हूं कि उनके आधार पर ज्‍योतिष को वैज्ञानिक ढंग से समझना आपके लिए आसान हो सकेगा । 90  वर्ष का एक दूसरा वर्तुल है । जो कि अनुभव किया गया है । उसके अनुभव की कथा बड़ी अद्भुत है ।

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